त्रतीयेश का कुंडली के सभी बारह भावों में फल
ज्योतिशास्त्र में जन्मकुंडली के तृतीय भाव को प्रयास एवं परकरम पराक्रम का भाव माना जाता हैं तथा इस भाव के स्वामी को तृतीयेश कहते हैं। तृतीयेश कुंडली के अलग -अलग भावों में विद्यमान होकर अलग-अलग फल प्रदान करता है। आइये जानते हैं कि तृतीयेश का कुंडली के बारह भावों में स्थित होने से जातक के जीवन पर इसके क्या-क्या परिणाम देखने को मिलते हैं-
तृतीयेश का प्रथम भाव में फल
ज्योतिषशास्त्र में प्रथम भाव को लग्न भाव भी कहते हैं। यदि जातक के जन्मकुंडली में तृतीय भाव का स्वामी प्रथम भाव में विद्यमान होता है तो ऐसा जातक गायक ,कलाकार अथवा अभिनेता बनाने का सामर्थ्य रखता है।जातक अपने सामर्थ्य के बल पर धन का अर्जन करता है। जातक बहुत साहसी एवं बहादुर होता है लेकिन जातक का स्वभाव से ईर्ष्यालु और क्रोधी होता है।
अगर तृतीय भाव का स्वामी ग्रह अशुभ हो और वह प्रथम भाव में स्थित हो तो जातक शारीरिक रूप से कमजोर और दुर्बल होते हैं । वह जातक बहुत जल्दी ही रोगी हो जाता है।
तृतीयेश का द्वितीय भाव में फल
द्वितीय भाव को धन तथा परिवार का भाव माना जाता हैं। द्वितीय भाव धन एवं कुटुंब का भाव कहा जाता है। यदि तृतीय भाव का स्वामी जन्मकुंडली में द्वितीय भाव में उपस्थित हो तो ऐसे जातक का चरित्र निम्न कोटि का होता है।
जातक का स्वभाव भी अच्छा नहीं होता है। जातक धन संग्रह करने के लिए देह व्यापार जैसे घिनौने कार्य को करते हैं। ऐसे जातक अपने जीवन में अधिकतर नाखुश रहा करते हैं|
धन भाव स्वामी का अन्य भावों में फल
तृतीयेश का तृतीय भाव में फल
तृतीय भाव को प्रयास करते रहने का भाव माना जाता हैं।यदि जातक के जन्मकुंडली में तृतीय भाव का स्वामी तृतीय भाव में ही विद्यमान हो तो जातक आनंदपूर्वक अपने जीवन का यापन करता है उसका अत्यधिक सुखमय होता है।
जातक को अपने मित्र और बंधुओ का सान्निध्य प्राप्त होता है। जातक अपने छोटे भाई का भरपूर सहयोग प्राप्त होता है।तृतीय भाव के स्वामी का तृतीय भाव में ही विद्यामान होने से जातक का कोई बड़ा भाई नहीं होता है अथवा जातक स्वयं बड़ा भाई होता हैं।
तृतीयेश का चतुर्थ भाव में फल
चतुर्थ भाव को सुख का भाव माना जाता है। यदि जातक की जन्मकुंडली में तृतीय भाव का अधिपति चतुर्थ भाव में बैठा होता है तो ऐसा जातक बहुत धनी होते है और अपने जीवन में बहुत खुश होते हैं जिससे जीवन का भरपूर आनंद उठाते हैं।
बुध की स्थिति प्रबल हो तो जातक को जमीन जायदाद का लाभ मिलने का योग बनता है किन्तु यदि तृतीयेश का स्वामी ग्रह अशुभ हो तो जातक को जातक को इसके विपरीत जमीन-जायदाद का नुकसान होने की संभावना होती है। जातक को दयाहीन और क्रूर जीवन साथी का साथ मिलता है।
चतुर्थ भाव स्वामी का अन्य भावों में फल
तृतीयेश का पंचम भाव में फल
पंचम भाव को त्रिकोण अथवा लक्ष्मी का भाव भी माना जाता है। तृतीय भाव का पंचम भाव में होने से तथा नवमेश की प्रबल स्थिति होने से जातक बहुत भाग्यशाली और धनी होते हैं तथा विभिन्न तरह के सुख-सुविधाओ से युक्त होते हैं।
जातक को अपने बड़े भाई से बहुत लाभ मिलता है । जातक को कोई सरकारी जॉब मिलने का योग दिखाई देता है। शिशु अवस्था में जातक को कोई अमीर परिवार गोद भी ले सकता है।
तृतीयेश का स्वामी ग्रह पीड़ित हो और वह पंचम भाव में हो तो ऐसे में जातक वैवाहिक जीवन में संतान संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
पंचम भाव स्वामी का अन्य भावों में फल
तृतीयेश का षष्ठम भाव में फल
षष्ठम भाव को शत्रु ,कर्ज एवम व्याधियों का भाव माना जाता है। यदि तृतीय भाव का स्वामी जन्मकुंडली के षष्ठम भाव में विद्यमान हो तो जातक आगे चलकर खिलाड़ी अथवा पायलट के रूप में अपना जीवन यापन करता है।
ऐसे जातक का अनुज सैनिक अथवा चिकित्सक के रूप में अपना कैरियर चुनता हैं। तृतीय भाव के स्वामी ग्रह पीड़ित होने एवं वह षष्ठम भाव में स्थित होने पर जातक रिश्वत और अन्य अनैतिक कामो में संलग्न होता है और इसी के रूप में उसकी पहचान होती है।
जातक के परिवार वाले जातक को पसंद नहीं करते हैं । आय दिन जातक का तबियत खराब रहा करता है
तृतीयेश का सप्तम भाव में फल
अगर जातक की जन्मकुंडली में तृतीय भाव का स्वामी सप्तम भाव में प्रबल स्थिति में विद्यामान हो तो ऐसे जातक का अपने भाइयों के साथ स्नेह होता है। जातक अपने भाइयों के साथ शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत करता है।
जातक का तृतीयेश पीड़ित हो और वह सप्तम भाव में विद्यमान हो तो जातक का बचपन बहुत दुखमय होता है ऐसा जातक किसी दर्दनाक घटना का शिकार हो सकता है।
सप्तम भाव स्वामी का अन्य भावों में फल
तृतीयेश का अष्टम भाव में फल
अष्टम भाव को शुभ भाव नहीं माना जाता है। यदि तृतीय भाव का स्वामी जातक के जन्मकुंडली के अष्टम भाव में स्थित हो तो ऐसे जातक का विवाह में बहुत अड़चन आती हैं जिससे जातक का विवाह टूट जाता है।
जातक के ऊपर किसी तरह के मार-पीट अथवा हिंसा का आरोप भी लग सकता है। तृतीयेश पीड़ित होने पर जातक आमतौर पर किसी जानलेवा रोग से ग्रसित रहा करते हैं। जातक के अनुज की असमय छोटी उम्र में ही मृत्यु हो सकती है।
तृतीयेश का नवम भाव में फल
नवम भाव को पूरी कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव माना जाता है। यदि तृतीय भाव का स्वामी नवम भाव में विद्यमान हो तो जातक का विवाह के बाद का भाग्य चमक उठेगा। जातक के भाई को जमीन के मामले में लाभ मिलेगा जिससे जातक को भी इसका लाभ प्राप्त होगा। जातक को विदेश यात्रा पर जाने का अवसर मिलने के भी प्रबल योग दिखाई देते हैं।
यदि जातके के तृतीय भाव का स्वामी कोई अशुभ ग्रह हो और वह नवम भाव में विद्यामान हो तो ऐसे जातक का अपने पिता से थोड़ा मतभेद हो सकता है।
तृतीयेश का दशम भाव में फल
दशम भाव को कर्म का भाव माना जाता हैं। यदि जातक की जन्मकुंडली में तृतीय भाव का स्वामी दशम भाव में बैठा हो तो ऐसे जातक की जीवनसंगनी बहुत क्रोधी प्रकृति की होती है। लेकिन जातक बहुत चतुर एवं समृद्ध होता है। वह जातक आपने जीवन में पर्याप्त सफलता और समृद्धि प्राप्त करता है।
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तृतीयेश का एकादश भाव में फल
एकादश भाव को लाभ का भाव माना जाता हैं। अगर तृतीय भाव का स्वामी जातक की जन्मकुंडली के एकादश भाव में विद्यामान हो तो जातक अपने परिश्रम के बल पर ढेर सारे धन का संग्रह करता हैं और यश प्राप्त करता हैं । ऐसे जातक दूसरे के सेवा करने में रुचि रखने वाले होते हैं लेकिन जातक का स्वभाव थोड़ा गुस्सैल प्रकृति का होता है। जातक सुंदरता के मामले में दिखने में बहुत आकर्षक नहीं होता है। अपनी ही गलतियों के कारण जातक धन-दौलत खोकर गरीब हो सकते हैं।
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तृतीयेश का द्वादश भाव में फल
द्वादश भाव को व्यय का भाव माना जाता है। यदि तृतीय भाव का स्वामी द्वादश भाव में विद्यामान हो तो जातक अपने ही गलतियों के वजह से धन-दौलत खोकर अत्यंत गरीब हो सकता हैं।
ऐसा जातक अंतर्मुखी होने के कारण अकेले रहना पसंद करते हैं। जातक का भाई अपने बात पर अडिग रहने वाला एवं जिद्दी प्रकृति का होता है। जातक को अपने भाई तथा बहनो और पिता से विशेष लाभ प्राप्त नहीं होता है। जातक का चरित्र निम्न कोटि का होता हैं या बहुत चरित्रहीन होता है।
निष्कर्ष
जन्म कुंडली के तृतीय भाव के स्वामी तृतीयेश का कुंडली के बारह भावों में , विभिन्न भाव के अनुसार अलग-अलग फल मिलता है। आपने जाना कि आपको इसका अच्छा (सकारात्मक) फल भी मिल सकता है और नकारात्मक भी मिल सकता है।
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