धनेश का कुंडली के बारह भावों में फल

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जातक के जन्म कुंडली के द्वितीय भाव को धन का भाव कहा जाता है और इस भाव स्वामी को द्वितियेश कहते हैं। इसे धनेश भी कहते हैं। ज्योतिष में द्वितीय भाव को  रूपये -पैसे (धन ), वाणी  इत्यादि का भाव माना जाता है।ज्योतिषशास्त्र के अनुसार धनेश का कुंडली के बारह भावों में अलग-अलग फल मिलता है। धनेश भिन्न -भिन्न  भावों विद्यमान  होकर भिन्न -भिन्न परिणाम प्रदान करता है। आइये जानते हैं कि  धनेश का कुंडली के  विभिन्न भावों में विद्यमान होकर किस भाव में कौन से फल प्रदान करता है-  

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धनेश का प्रथम भाव में में फल 

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दूसरे भाव का स्वामी कुंडली के प्रथम भाव में विद्यमान होकर जातक को निष्ठुर और क्रूर स्वभाव वाला बनाता है। लेकिन  यदि दूसरे भाव का स्वामी शुभ स्थिति में हो तो जातक व्यवसाय के क्षेत्र में काफी सफलता प्राप्त करता है। 

ऐसा जातक ढेर सारा धन कमाता है जिससे जातक अपने परिवार में सबसे प्रिय होता है किन्तु ऐसे जातक स्वार्थी किस्म के भी हुआ करते हैं जो सिर्फ अपने लिए ही नाम कमाना चाहते हैं। सूर्य एवं नवमेश का सहायता प्राप्त होने पर व्यक्ति को अपने पिता की संपत्ति का लाभ मिलता है। 

लग्नेश का अन्य भावों में फल 

धनेश का द्वितीय भाव में में फल

द्वितीय भाव को धन तथा परिवार का भाव माना जाता हैं। यदि जातक के कुंडली में द्वितीय भाव का स्वामी द्वितीय भाव में ही उपस्थित होता है तो जातक आपने जीवन में बहुत सफलता प्राप्त करता है। 

जातक की संतान बहुत देर से उत्पन्न होती हैं। ऐसे जातक बहुत बड़े धनवान होते हैं और अपने धन के बल पर कीर्ति प्राप्त करते हैं। ढेर सारे धन का संग्रह कर लेने के वजह से ये जातक बहुत घमंडी और नीच प्रकृति के होते हैं तथा अपने बच्चों से दूर रहते हैं।

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धनेश का तृतीय भाव में में फल

तृतीय भाव को प्रयास करते रहने का भाव माना जाता हैं। यदि जातक के जन्म कुंडली के तृतीय भाव में दूसरे भाव का स्वामी बैठा होता है तो ऐसा जातक बहुत पराक्रमी तथा साहसी होता हैं और अपने दम पर अपने सपनों को पूरा करने में सक्षम होता है।

तृतीय भाव स्वामी का अन्य भावों में फल 

अपने पराक्रम और साहस के कारण वह बहुत अभिमानी भी हो जाता है। 

 इन जातको को संगीत, नृत्‍य और कला से विशेष लाभ मिलता है। 

 यदि दूसरे भाव का स्वामी ग्रह पीड़ित होता और वह तृतीय भाव में विद्यमान होता है तो वह व्यक्ति अपने भाई-बहनो से स्नेह करने वाला होता हैं।  

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लेकिन दूसरे भाव के स्वामी  ग्रह का स्थिति  इसके विपरीत होने पर जातक अपने भाई-बहनो से भेदभाव करने वाला बन जाता हैं। 

धनेश का चतुर्थ भाव में में फल

चतुर्थ भाव को सुख का भाव माना जाता है। जन्म कुंडली में जातक के दूसरे भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में होने पर व्यक्ति के जीवन में सुखों की वृद्धि होती है वाहन ,भवन  का सुख भी मिलता है तथा ऐसा जातक अपने घर-परिवार में सुख प्रदान करता है। 

जातक को अपने माता -पिता की ओर से भरपूर सुख मिलता है। यदि जातक के दूसरे भाव का अधिपति अशुभ ग्रह हो और वह चतुर्थ भाव में स्थित हो तो जातक कंजूस प्रकृति  वाले बन जाते हैं

 किसी की परवाह नहीं करते और सिर्फ और सिर्फ अपने ऊपर ही पैसे खर्च करना पसंद करते हैं। जातक की भौतिक सुखों में कमी होती है साथ ही जातक माता के सुख से भी वंचित हो सकता है। 

धनेश का पंचम भाव में में फल

पंचम भाव को त्रिकोण अथवा लक्ष्मी का भाव भी माना जाता है। अगर दूसरे भाव का अधिपति पंचम भाव में हो तो जातक का लड़का बहुत धनवान होता है तथा विद्या के क्षेत्र में न्यूनता प्रदान करने वाला होता हैं। 

जातक को अपने जीवन में तरह-तरह के कष्टों से गुजरना पड़ता है। व्यक्ति को अपने परिवार से प्रेम नहीं होता है और ऐसे जातक कामवासना का आनंद लेने के लिए यौन संबंध बनाने में अत्यधिक रूचि रखते हैं।

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धनेश का षष्ठम भाव में में फल

षष्ठम भाव को शत्रु ,कर्ज एवम व्याधियों का भाव माना जाता है यदि जातक की जन्म कुंडली में दूसरे भाव का स्वामी षष्ठम भाव में बैठा हो तो ऐसे जातक धोखाधड़ी से धन का अर्जन करते हैं इसलिए इनके कई शत्रु बन जाते हैं और

इनके शत्रु से पैसो का लेनदेन होता है यद्यपि ये जातक अपने शत्रुओ पर विजय प्राप्त करने वाले होते हैं। ऐसे जातक का संग्रह किया हुआ धन उसके पुत्र के जरिये उजड़ जाता है।  

दूसरे भाव का स्वामी पीड़ित होने पर ये जातक निर्धन हो जाते हैं और ऐसे जातको के शरीर के निचले हिस्से में कोई रोग हो जाता है अथवा पेट के रोग से ग्रसित होते हैं। 

धनेश का सप्तम भाव में में फल

जन्म कुंडली में जातक के द्वितीय भाव का स्वामी सप्तम भाव में होने पर जातक को ससुराल पक्ष से धन संग्रह होता है अर्थात ऐसे जातक को धन संग्रह करने वाली पत्नी मिलती है।

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व्यक्ति को विदेश यात्रा के अवसर भी मिलते रहते तथा ऐसे व्यक्ति को  चिकित्सा के क्षेत्र में पर्याप्त सफलता मिलती है।  यदि दूसरे भाव का अधिपति अशुभ ग्रह में हो और 

वह सप्तम भाव में विद्यमान हो तो जातक की पत्नी बांझ अथवा व्यभिचारिणी  हो सकती हैं। इस भाव का स्वामी ग्रह पीड़ित होने से जातक में सदाचार और नैतिकता की कमी होती है। 

धनेश का अष्टम भाव में में फल

अष्टम भाव को शुभ भाव नहीं माना जाता है। किसी जातक के द्वितीय भाव का स्वामी  अष्टम भाव में होने पर जातक अपने पैतृक संपत्ति को स्वयं ही बर्बाद कर देता है जिससे जातक आगे चलकर बहुत निर्धन हो जाता है। 

वह व्यक्ति हिंसक स्वभाव का होता है धन संग्रह करने के लिए अनैतिक कार्यों जैसे की जुआ ,सट्टा आदि का सहारा लेता है। जातक की पत्नी प्रायः रोगिनी हुआ करती है। 

धनेश का नवम भाव में फल

नवम भाव को पूरी कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव माना जाता है। यदि दूसरे भाव का स्वामी नवम भाव में स्थित होता है तो जातक को दान करना अच्छा लगता है जिससे वह दानी स्वभाव वाला व्यक्ति  होता है। 

ऐसे जातक बहुत सौभाग्यशाली होते हैं साथ-साथ आर्थिक रूप से भी भाग्यवान होते हैं जिससे अपने जीवन में खूब धन अर्जित करता है।  

लेकिन दूसरे भाव का स्वामी ग्रह अशुभ होता है और वह नवम भाव में स्थित होता है  तो ऐसा जातक दरिद्र होता है।  

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धनेश का दशम भाव में में फल

दशम भाव स्वामी का अन्य भावों में फल 

दशम भाव को कर्म का भाव माना जाता हैं। यदि दूसरे भाव का स्वामी जन्म कुंडली के दशम भाव में उपस्थित हो तो ऐसा जातक सरकार से धन अर्जित करने वाला होता है। और वह अपने जीवन में खूब धन संग्रह करता है। ऐसा जातक भोग-विलास में अधिक रूचि रखता है। 

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यदि दूसरे भाव का स्वामी ग्रह अशुभ हो और वह दशम भाव में स्थित हो तो जातक कई क्षेत्रों में व्‍यापार करने का प्रयास करते हैं  किन्तु  इन्‍हें हर क्षेत्र में असफलता हाथ लगती है।

धनेश का एकादश भाव में में फल

लाभ भाव स्वामी का अन्य भावों में फल 

एकादश भाव को लाभ का भाव माना जाता हैं। जन्म कुंडली में यदि दूसरे भाव का स्वामी एकादश भाव में हो तो जातक बाल्‍यावस्‍था में अस्‍वस्‍थ होता है लेकिन आगे चलकर जातक को कई प्रकार के लाभ की प्राप्ति होती रहती है जिससे जातक आर्थिक रूप से बहुत मजबूत होता है।  

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धनेश का द्वादश भाव में में फल

द्वादश भाव को व्यय का भाव माना जाता है। यदि जातक की जन्म कुंडली में दूसरे भाव का स्वामी द्वादश भाव में विद्यामान हो तो जातक के जीवन में खर्चों की अधिकता होती हैजिससे जातक पिजूलखर्ची होने की वजह से अपने जीवन में अधिक धन संग्रह नहीं कर पाता है। 

दूसरे भाव का स्वामी ग्रह अशुभ होने और वह द्वादश भाव में होने पर जातक का अपने बड़े भाई से भेदभाव बना रहता है जिससे आपस में स्‍नेह नहीं नहीं होता है।

मृत्यु भाव स्वामी का अन्य भावों में फल 

निष्कर्ष 

जन्म कुंडली के द्वितीय भाव के स्वामी धनेश का कुंडली के बारह भावों में , विभिन्न  भाव के अनुसार अलग-अलग फल मिलता है। आपने जाना कि आपको इसका अच्छा (सकारात्मक) फल भी मिल सकता है और नकारात्मक  भी मिल सकता है।