षष्ठेश का बारह भावों में फल

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जातक के जन्मकुंडली के षष्ठ भाव को रोग,ऋण और शत्रु का भाव माना जाता हैं। इस भाव के स्वामी को षष्ठेश कहते हैं। षष्ठेश जातक के जन्मकुंडली के भिन्न भावों में विराजित होकर जातक को उनके भावानुसर फल प्रदान करता हैं। जातक की रूचि अन्य कारकों के साथ इस बात पर भी निर्भर करता हैं जातक के जन्मकुंडली के भाव पर षष्ठेश क्या प्रभाव डाल रहा हैं। 

आइये जानते हैं कि षष्ठेश  का जातक के भावानुसार इसके क्या फल मिलते हैं। 

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षष्ठेश का प्रथम भाव में  जातक को फल:-

ज्योतिषशास्त्र में  प्रथम भाव को लग्न भाव भी कहते हैं। यदि जातक की जन्मकुंडली में षष्ठ भाव का स्वामी प्रथम भाव में उपस्थित हो तो जातक सेना में कमांडर अथवा सैनिक बनने का सामर्थ्य रखता है।

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ऐसे जातक सत्ता भी खूब रूचि लेते हैं। जातक बहादुर और साहसी होता है। धन दौलत के मामले में जातक के पास पर्याप्त धन होता है जिससे वह भी धनिकों की श्रेणी में गिना जाता हैं। 

यदि षष्ठ भाव का स्वामी ग्रह पीड़ित हो और वह प्रथम भाव में स्थित हो तो जातक कमांडर या सैनिक बनने के विपरीत गुनहगारों का मुखिया बन सकता है। 

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षष्ठेश का द्वितीय भाव में  जातक को फल:-  

द्वितीय भाव को धन तथा परिवार का भाव माना जाता हैं। षष्ठ भाव का स्वामी यदि जातक के द्वितीय भाव में विद्यमान हो तो ऐसा जातक को अपने दुश्मनों के वजह से धन-संपत्ति का नुकसान हो सकता है। 

षष्ठम भाव का अधिपति ग्रह अशुभ हो और वह द्वितीय भाव में उपस्थित होने पर जातक को अपने परवारिक जीवन की चिंताएँ घेर लेती हैं। जातक समान्यतः कमजोर द्रष्टि ,हकलाने और दाँतो की परेशानियों से जूझता रहता है। जातक को अपने जीवनसंगनी से दूर रहकर काम करना पड़ सकता है। 

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षष्ठेश का तृतीय भाव में  जातक को फल:-

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तृतीय भाव को प्रयास करते रहने का भाव माना जाता हैं। यदि षष्ठ भाव का स्वामी जातक के जन्मकुंडली के तृतीय भाव में विद्यामान हो तो ऐसा जातक जातक हिंसक प्रकृति का होता है। 

जातक के मामा जातक के अनुज को जातक के विरूद्ध उकसा सकते हैं,जिससे जातक का अपने भाई के साथ वैर भाव बन सकता है या फिर जातक के अनुज का तबीयत खराब हो सकता है। 

जातक के भाई-बहन किसी तरह के परेशानी में उलझे रहा करते हैं। 

षष्ठेश का चतुर्थ भाव में  जातक को फल:-

चतुर्थ भाव को सुख का भाव माना जाता है। यदि षष्ठ भाव का स्वामी ग्रह अशुभ हो और वह जातक के जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव में स्थित हो तो ऐसा जातक का मकान राजसी ठाठ-बाट वला वाला न होकर जीर्ण-शीर्ण होता है। 

जातक को किसी कार्य विशेष के कारण घर से बाहर जाना पड़ सकता इस दौरान जातक को अपने माता से दूर रहना पड़ेगा। जातक को अपने शिक्षा ग्रहण करने में दिक्कते आएगी। षष्ठेश भाव पीड़ित होने पर जातक का अपने माता जी से किसी बात को लेकर कुछ  विवाद हो सकता है। 

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षष्ठेश का पंचम भाव में  जातक को फल:-

पंचम भाव को त्रिकोण अथवा लक्ष्मी का भाव भी माना जाता है। यदि जातक के जन्मकुंडली के पंचम भाव में  षष्ठ भाव का अधिपति विराजमान हो तो ऐसा जातक को उसके मामा गोद ले सकते हैं। 

ऐसे जातक अपने जीवन में पर्याप्त मात्र में धन का अर्जन करते हैं। धन के बल पर जातक समृद्धि और यश प्राप्त करता है। 

जातक के संतान का स्वास्थ्य आमतौर पर बिगड़ा रहता है। 

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षष्ठेश का षष्ठम भाव में जातक को फल:-

षष्ठम भाव को शत्रु ,कर्ज एवम व्याधियों का भाव माना जाता है। जन्मकुंडली के षष्ठम भाव में ही षष्ठ भाव का स्वामी उपस्थित होने पर जातक अपने शत्रुओ का नाश करने वाले होते हैं। जातक के मामा धन-दौलत के मामले में काफी समृद्ध होते हैं। 

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यदि षष्ठ भाव का स्वामी ग्रह अशुभ हो और वह षष्ठम भाव में स्थित हो तो जातक किसी गंभीर रोग से पीड़ित होता है। किसी कारणवश जातक के परिवार वाले शत्रुभाव से जातक को देखने लगते हैं। 

षष्ठेश का सप्तम भाव में जातक को फल:-

अगर जातक के जन्मकुंडली में षष्ठ भाव का स्वामी जातक के सप्तम भाव में उपस्थित हो तो जातक का विवाह निकट के परिजन की बेटी से हो सकता हैं। 

षष्ठेश के पीड़ित होने पर जातक का अपने जीवनसंगनी से विवाद होने के कारण अलगाव हो सकता है अथवा असमय पत्नी की मृत्यु  भी अलगाव का कारण बन सकता है। जातक की पत्नी बांझ हो सकती है या फिर जातक स्वयं हिजड़ा हो सकता है। 

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षष्ठेश का अष्टम भाव में  जातक को फल:-

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अष्टम भाव को शुभ भाव नहीं माना जाता है। यदि षष्ठ भाव का स्वामी जातक के अष्टम भाव में ही स्थित हो जातक के ऊपर ऋण का भार होता है। जातक अपने पत्नी से खुश नहीं होता है तथा जातक का वैवाहिक जीवन परेशानियों से घिरा रहता है।  

आमतौर जातक पर किसी दर्दनाक रोग से पीड़ित हो सकते हैं। 

जातक धन का अर्जन करने के लिए जोखिम तक उठाने को तैयार रहता है। 

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षष्ठेश का नवम भाव में  जातक को फल:-

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नवम भाव को पूरी कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव माना जाता है। षष्ठ भाव का अधिपति यदि जातक के नवम भाव में विद्यामान हो तो जातक के चरित्र में नैतिक मूल्यों का अभाव होता है। 

जातक न्यायधीश बनने का सामर्थ्य रखता है। जातक को आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ सकता है। जातक का अपने पिता के साथ किसी बात को लेकर मतभेद हो सकता हैं लेकिन जातक को उसके पिता के  के चचेरे भाई – बहनो से लाभ मिल सकता हैं। 

षष्ठेश का दशम भाव में  जातक को फल:-

दशम भाव को कर्म का भाव माना जाता हैं। जन्मकुंडली में यदि षष्ठ भाव का स्वामी दशम भाव में विद्यमान हो तो ऐसा जातक को नौकरी से निकाला जा सकता है। ऐसे जातक केवल अपने लिए जीते हैं।  

साथ ही ऐसे जातक भ्रष्ट भी होते हैं। यदि षष्ठ भाव का स्वामी पीड़ित हो और वह दशम भाव में स्थित हो तो जातक का पूरा जीवन गरीबी में बीतता है। 

षष्ठेश का एकादश भाव  में जातक को फल:-

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एकादश भाव को लाभ का भाव माना जाता हैं। जातक की जन्मकुंडली में षष्ठ भाव का स्वामी एकादश भाव में विद्यामान हो तो   आगे चलकर जातक का भाई न्यायाधीश के पद पर नियुक्त हो सकता है। 

यदि षष्ठ भाव का स्वामी ग्रह पीड़ित हो और वह एकादश भाव में विद्यमान हो तो जातक का जीवन गरीबी में व्यतीत होता है। जातक सट्टे और जुए खेलने में बहुत दिलचस्पी रखता है। इस कारण आमतौर पर ऐसे जातक को जेल की हवा भी खानी पड़ती हैं।  

षष्ठेश का द्वादश भाव में  जातक को फल:-

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यदि जातक की जन्मकुंडली में षष्ठ भाव का स्वामी ग्रह पीड़ित हो और वह द्वादश भाव में उपस्थित हो तो ऐसे जातक का पूरा जीवन गरीबी में व्यतीत होता है। 

जातक का स्वभाव रूखा-रूखा होता है ऐसे जातक कभी औरों के लिए काम नहीं करते हैं। अतः जातक अपने जीवन में बहुत दुखी रहा करता है। 

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षष्ठेश का कुंडली के बारह भावों में फल (निष्कर्ष)

जन्म कुंडली के  षष्ठ भाव के स्वामी षष्ठेश का कुंडली के बारह भावों में , विभिन्न  भाव के अनुसार अलग-अलग फल मिलता है। आपने जाना कि आपको इसका अच्छा (सकारात्मक) फल भी मिल सकता है और नकारात्मक  भी मिल सकता है।

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