पंचमेश का अन्य भावों में फल
जातक के जन्मकुंडली के पंचम भाव को शिक्षा और संतान का भाव माना जाता हैं। इस भाव के स्वामी को पंचमेश कहते हैं। पंचमेश जातक के जन्मकुंडली के विभिन्न भावों में विराजित होकर जातक को उनके भावानुसार फल प्रदान करता हैं। जातक की रूचि अन्य कारकों के साथ इस बात पर भी निर्भर करता हैं जातक कि जन्मकुंडली के भाव पर पंचमेश क्या प्रभाव डाल रहा हैं।
आइये जानते हैं कि पंचमेश का जातक के भावानुसार इसके क्या फल मिलते हैं।
पंचमेश का प्रथम भाव में फल:-
ज्योतिषशास्त्र में प्रथम भाव को लग्न भाव भी कहते हैं। यदि जातक की जन्मकुंडली में पंचम भाव का स्वामी प्रथम भाव में उपस्थित हो तो जातक चतुर ,चालक और अत्यधिक बुद्धिमान होता हैं। जातक की निर्णय क्षमता भी अत्यधिक सटीक होता हैं। ऐसे जातक न्यायधीश अथवा किसी पद विशेष के मंत्री बन सकते हैं।
प्रथम भाव स्वामी का अन्य भावों में फल
यदि पंचम भाव के स्वामी ग्रह पीड़ित हो और यह प्रथम भाव में स्थित हो तो जातक को कुछ परेशानियों से जूझना पड़ सकता है। पंचमेश पीड़ित होने की वजह से जातक कुटिल बुद्धि वाले बन सकते हैं। जातक धोखेबाज़ी और दूसरे अनैतिक कार्यों मे रूचि लेने वाला बन जाता है।
पंचमेश का द्वितीय भाव में फल:-
द्वितीय भाव को धन तथा परिवार का भाव माना जाता हैं। जातक की जन्मकुंडली मे पंचम भाव का स्वामी द्वितीय भाव में विद्यामान हो तो जातक को सरकार से धन का लाभ मिल सकता है। जातक की ज्योतिष संबंधी विषय में रूचि होती हैं ।ऐसे जातक ज्योतिष बन सकते हैं। जातक को गुणी एवं सुशील जीवनसंगनी मिलती है। जातक की संतान उत्तम आचरण करने वाले होते हैं।
अगर पंचम भाव का स्वामी ग्रह अशुभ हो और वह द्वितीय भाव में बैठा हो तो जातक को बिल्कुल विपरीत परिणाम मिलते हैं अर्थात जातक की पत्नी गुणहीन हो सकती और उसका संतान भी निम्न कोटि का आचरण करने वाला हो सकता है।
धन भाव स्वामी का अन्य भावों में फल
पंचमेश का तृतीय भाव में फल:-
तृतीय भाव को प्रयास करते रहने का भाव माना जाता हैं। जन्मकुंडली में यदि पंचम भाव का स्वामी तृतीय भाव में विद्यमान हो तो ऐसे जातक को अपने भाइयों से सहयोग मिलता है तथा संतान मध्यम स्तर के चरित्र वाला होता है।
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जातक को अपने संतान से भरपूर सुख मिलता है। लेकिन यदि पंचम भाव का स्वामी ग्रह पीड़ित हो और वह तृतीय भाव में विद्यामान हो तो ऐसी स्थिति में जातक को न तो अपने भाइयों से सहयोग मिलता है और न ही संतान सुख की प्राप्ति होती है।
पंचमेश का चतुर्थ भाव में फल:-
चतुर्थ भाव को सुख का भाव माना जाता है। पंचम भाव का अधिपति यदि जातक के चतुर्थ भाव में विद्यामान हो और चतुर्थ भाव प्रबल स्थिति में हो तो जातक को पुत्री रत्न की प्राप्ति होती है।
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जातक के जीवन संतुलन में होता है न तो अधिक समस्याए आती हैं और न ही बहुत अधिक सुख मिलता है। जातक के माता जी की उम्र लंबी होती है। जातक शिक्षक अथवा किसी राजनेता या फिर किसी ख्याति प्राप्त व्यक्ति के सलाहकार बन सकते हैं।
चतुर्थ भाव स्वामी का अन्य भावों में फल
यदि पंचम भाव का स्वामी ग्रह अशुभ हो और वह चतुर्थ भाव में विराजमान हो तो ऐसी स्थिति में जातक की संतान अल्प आयु में ही संसार को अलविदा कह सकती है।
पंचमेश का पंचम भाव में फल:-
पंचम भाव को त्रिकोण अथवा लक्ष्मी का भाव भी माना जाता है। पंचम भाव के स्वामी का जातक के पंचम भाव में ही स्थित होना जातक की शिक्षा संतान तथा व्यापार के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
ऐसे जातक को कई पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। जातक किसी धार्मिक संस्थान का संचालन कर्ता हो सकता है। जातक का मंत्र-शास्त्र तथा गणित में मजबूत पकड़ होता है।
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पंचमेश का षष्ठम भाव में फल:-
षष्ठम भाव को शत्रु ,कर्ज एवम व्याधियों का भाव माना जाता है। अगर जातक के जन्मकुंडली में पंचम भाव का स्वामी जातक के षष्ठम भाव में उपस्थित हो तो जातक के चाचा मामा में से कोई प्रभावी व्यक्ति हो सकता है।
यदि पंचम भाव का स्वामी ग्रह पीड़ित हो और वह षष्ठम भाव में बैठा हो तो जातक का अपने पुत्र से मतभेद होता है। पिता-पुत्र के बीच जैसा संबंध होना चाहिए उसके विपरीत संबंध होता है। जातक अपने चाचा या मामा के कुटुंब में से किसी को गोद से सकता है।
पंचमेश का सप्तम भाव में फल:-
जन्मकुंडली के सप्तम भाव में पंचम भाव का स्वामी उपस्थित होने पर जातक का पुत्र विदेश में निवास करता हैं। जातक धन-दौलत के मामले में संपन्न होते हैं। जातक का व्यक्तित्व बहुत प्रभावी होता है।
ऐसे जातक को अपने जीवनसंगनी से अटूट प्रेम होता है। यदि पंचम भाव का स्वामी ग्रह पीड़ित हो और वह सप्तम भाव में विद्यामान हो तो ऐसी स्थिति में जातक संतानहीन हो सकता हैं।
पंचमेश का अष्टम भाव में फल:-
अष्टम भाव को शुभ भाव नहीं माना जाता है। यदि जातक के जन्मकुंडली के अष्टम भाव में पंचम भाव का अधिपति विराजमान हो तो ऐसा जातक ऋण को चुकाते-चुकाते अपना धन-संपत्ति खो सकता हैं।
ऐसे जातक के जीवन में अनेक तरह के समस्याए बनी रहती हैं। जातक फेफड़े से संबन्धित किसी रोग से पीड़ित हो सकता है। जातक का जीवन दुखी और उदासी में बीतता है। गुरु गोचर का फल जानिये
पंचमेश का नवम भाव में फल:-
नवम भाव को पूरी कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव माना जाता है। यदि पंचम भाव का स्वामी जातक के जन्मकुंडली के नवम भाव में स्थित हो तो ऐसा जातक पेशे से शिक्षक होते हैं तथा जातक का पुत्र वक्ता या फिर लेखक के रूप में यश प्राप्त करता है।
यदि पंचम भाव का स्वामी ग्रह अशुभ हो और वह नवम भाव में विद्यमान हो तो जातक को जीवन में अनेक तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता हैं।
पंचमेश का दशम भाव में फल:-
दशम भाव को कर्म का भाव माना जाता हैं। यदि पंचम भाव का स्वामी जातक के जन्मकुंडली के दशम भाव में विद्यामान हो तो ऐसा जातक जातक बहुत प्रसिद्धि प्राप्त करता है। ऐसे जातक का आगामी जीवन उसके शिक्षा पर निर्भर करता है।
जातक धार्मिक प्रकृति का होता है। धन-दौलत के मामले में जातक बहुत संपत्तिवान होता है। यदि पंचम भाव का स्वामी ग्रह निर्बल हो और वह दशम भाव में विद्यमान हो तो जातक को शिक्षा एवं व्यापार में नुकसान हो सकता है।
दशम भाव स्वामी का अन्य भावों में फल
पंचमेश का एकादश भाव में फल:-
एकादश भाव को लाभ का भाव माना जाता हैं। पंचम भाव यदि जातक के एकादश भाव में विद्यमान हो तो ऐसा जातक पेशे से लेखक बनते है। जातक धनी ,कार्य में दक्ष और मददगार होते हैं। जातक को अपने पुत्रों से भरपूर लाभ मिलता है।
यदि पंचम भाव का स्वामी ग्रह पीड़ित हो और वह एकादश भाव में विद्यमान हो तो जातक को इन सुखों में कमी हो सकती है अर्थात जातक धनी के बजाय निर्धन हो सकता है और पिता-पुत्र में मतभेद हो सकता है जिससे जातक का अपने पुत्र से संबंध बिगड़ सकता है।
लाभ भाव स्वामी का अन्य भावों में फल
पंचमेश का द्वादश भाव में फल:-
द्वादश भाव को व्यय का भाव माना जाता है। यदि जातक की जन्मकुंडली मे पंचम भाव का स्वामी द्वादश भाव में उपस्थित हो तो जातक को सत्य की तलाश में होता है। अपने पूरे जीवन भर जातक इसी खोज में लगा रहता है।
जातक संत बनकर अपना जीवन यापन करता है। अंत में जातक को परम सत्य की प्राप्ति हो जाती है और जातक को मोक्ष मिल जाता है।
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पंचमेश का कुंडली के बारह भावों में फल (निष्कर्ष)
जन्म कुंडली के पंचम भाव के स्वामी पंचमेश का कुंडली के बारह भावों में , विभिन्न भाव के अनुसार अलग-अलग फल मिलता है। आपने जाना कि आपको इसका अच्छा (सकारात्मक) फल भी मिल सकता है और नकारात्मक भी मिल सकता है।
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