चतुर्थ भाव स्वामी का अन्य भावों में फल

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ज्योतिशास्त्र में जातक के जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव सुख का भाव माना जाता है। चतुर्थ भाव के स्वामी को चतुर्थेश कहते हैं। चतुर्थेश कुंडली के विभिन्न भावों में  बैठकर संबन्धित भाव के  अनुसार जातक को फल प्रदान करता है।  जातक का भावी जीवन कैसा होगा यह अन्य कारकों के साथ चतुर्थेश के ऊपर भी निर्भर करता है। आइये जानते हैं कि चतुर्थ भाव के स्वामी चतुर्थेश का 12 भावों में  क्या प्रभाव पड़ता है।

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चतुर्थेश का प्रथम भाव में  फल 

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ज्योतिषशास्त्र में  प्रथम भाव को लग्न भाव भी कहते हैं। यदि जातक के जन्मकुंडली में  चतुर्थ भाव का स्वामी प्रथम भाव में  उपस्थित हो तो ऐसा जातक चतुर,चालक और  बुद्धिमान होता है। जातक किसी सभा को संबोधित करने से हिचकिचाता है। वह जातक ज़्यादातर ग्रहों के प्रभाव में  रहता है। यदि ग्रहों की स्थिति शुभ और प्रबल होती है तो जातक को भरपूर समृद्धि मिलती है लेकिन जब ग्रह अपने सामान्य अवस्था में  होते हैं तो जातक को औसत लाभ ही मिल पाता है। चतुर्थ भाव का स्वामी ग्रह पीड़ित हो और वह प्रथम भाव में  विद्यमान हो तो जातक निर्धन होता जाता है। 

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चतुर्थेश का द्वितीय भाव में  फल 

द्वितीय भाव को धन तथा परिवार का भाव माना जाता हैं।यदि चतुर्थ भाव का स्वामी द्वितीय भाव में  विद्यामान हो तो जातक साहसी ,सुखी और भाग्यशाली होता है। जातक को अपने माता पिता एवं कुटुंब के लोगों से धन लाभ होता है। चतुर्थ भाव का स्वामी ग्रह पीड़ित होने पर जातक फिजूलखर्ची बन जाता है। 

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चतुर्थेश का तृतीय भाव में  फल 

तृतीय भाव को प्रयास करते रहने का भाव माना जाता हैं। यदि जन्मकुंडली में  चतुर्थ भाव का स्वामी तृतीय में  स्थित हो तो ऐसा जातक अपने मेहनत के बल पर अपनी किस्मत बनाते हैं। जातक दयालु प्रकृति का होता है। ऐसा जातक अपने वसूलों पर अडिग होते हैं। यदि चतुर्थ भाव का स्वामी ग्रह अशुभ हो और वह जातक के तृतीय भाव में  विद्यमान हो तो ऐसा जातक अपने भाई एवं सौतेली माता से परेशान रहा करते हैं। आमतौर पर जातक का तबियत खराब रहा करता है।

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चतुर्थेश का चतुर्थ भाव में  फल 

चतुर्थ भाव को सुख का भाव माना जाता है। चतुर्थ भाव का स्वामी यदि चतुर्थ भाव में  ही विद्यमान हो तो जातक धार्मिक प्रकृति के होते हैं। ऐसे जातक लोग के प्रिय होते हैं और इन्हे  समृद्धि और भरपूर मान-सम्मान  मिलता है। जातक कृषि , वाहन अथवा भूमि संबन्धित कार्यों से धन का संग्रह करते हैं । ऐसे जातक परंपरागत ढंग के होते हैं।

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चतुर्थेश का पंचम भाव में  फल 

पंचम भाव स्वामी का अन्य भावों में फल 

पंचम भाव को त्रिकोण अथवा लक्ष्मी का भाव भी माना जाता है।यदि चतुर्थ भाव का स्वामी पंचम भाव में  उपस्थित हो तो जातक प्रेमी स्वभाव का होता है जिससे सभी को प्रेम करने वाला होता है। ऐसे जातक की माता सम्मानित कुटुंब से होती है। जातक भगवान विष्णु के आराधक होते हैं।जातक की संतान इनके कुल का नाम रौशन करने वाले होते हैं।  

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चतुर्थेश का षष्ठ भाव में  फल 

षष्ठम भाव को शत्रु ,कर्ज एवम व्याधियों का भाव माना जाता है। जातक की जन्मकुंडली में  यदि चतुर्थ भाव का स्वामी षष्ठम भाव में  स्थित हो तो ऐसा जातक दूसरों को धोखा देने वाले और स्वभाव से कपटी होते हैं।  जातक में  ऐसे कई और दूसरी बुराइयाँ भी होती हैं। जातक को वाहन दुर्घटना का सामना करना पड़ सकता है।

चतुर्थेश का सप्तम भाव में  फल 

चतुर्थ भाव का अधिपति सप्तम भाव में  होने पर जातक बहुत जमीन-जायदाद वाले होते हैं। जातक को अपने जीवन संगनी के जरिये धन दौलत की प्राप्ति होती है। ऐसे जातक सुखमय जीवन व्यतीत करते हैं। जातक के घर का निवास स्थान घर के चिन्ह पर ही निर्भर करता है। गतिशील चिन्ह होने पर जातक को अपने निवास स्थान से दूर जाकर कार्य करना पड़ता है। 

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चतुर्थेश का अष्टम भाव में  फल 

अष्टम भाव को शुभ भाव नहीं माना जाता है। यदि जातक की जन्मकुंडली में  चतुर्थ भाव का स्वामी  अष्टम भाव अष्टम भाव में  हो तो ऐसे जातक को संपत्ति का नुकसान होता है। जातक कानूरी कानूनी मामले में  फँसे होने के कारण जातक अत्यधिक तनाव में रहा करते हैं।चतुर्थ भाव का स्वामी ग्रह पीड़ित होने पर जातक की प्रजनन क्षमता बहुत कम होती हैं। जातक का अपने पिता और कुटुंब के लोगों से अच्छा प्रेमूर्ण संबंध एनएचएन होता हैं। इनके पिता असमय ही संसार को अलविदा कह जाते हैं।

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चतुर्थेश का नवम भाव में  फल 

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नवम भाव को पूरी कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव माना जाता है।चतुर्थ भाव के स्वामी का नवम भाव में  होने पर जातक आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत करता है। जातक का पिता बहुत धनवान होता है जिससे जातक को अपने पिता की संपत्ति का भरपूर लाभ मिलता है।जातक को हर तरह का लाभ प्राप्त होता रहता है। जातक क समाज में  अच्छा मान-सम्मान होता है। 

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चतुर्थेश का दशम भाव में  फल 

दशम भाव को कर्म का भाव माना जाता हैं। चतुर्थेश का दशम भाव में  होने पर जातक को राजनीतिक क्षेत्र में  पर्याप्त सफलता मिलती हैं। व्यवसाय से जुड़े जातक अपने व्यापार मे बहुत धन का अर्जन करते हैं । यदि जन्मकुंडली में  जातक  के चतुर्थ भाव का स्वामी ग्रह पीड़ित हो और वह दशम भाव में  विद्यमान हो तो जातक की प्रतिष्ठा का ह्रास होता है। 

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चतुर्थेश का एकादश भाव में  फल

एकादश भाव को लाभ का भाव माना जाता हैं। यदि चतुर्थ भाव का स्वामी जातक की जन्मकुंडली के एकादश भाव में  स्थित हो तो जातक को अपने माता से ढेर सारा सुख मिलता है। इन जातको की माँ सौतेली होने पर भी अपने सगे बेटे की तरह अपना प्रेम छिड़कती हैं। जातक स्वभाव से दयालु होते हैं।

यदि चतुर्थ भाव का स्वामी ग्रह अशुभ हो और वह एकादश भाव में  विद्यमान हो तो जातक सिर्फ अपने लिए ही धन का अर्जन करतें हैं। आय दिन जातक की सेहत बिगड़ी रहती है। जातक को हृदय रोग होने की संभावना भी होती है। 

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चतुर्थेश का द्वादश भाव में  फल 

द्वादश भाव को व्यय का भाव माना जाता अगर जातक की जन्म कुंडली में  चतुर्थ भाव का स्वामी द्वादश भाव में  विद्यमान हो तो जातक ख़र्चीले होते हैं और इनका जीवन निर्धनता और दुखों में व्यतीत हुआ करता है। इस वजह से जातक बहुत चिंता मे रहता है ।धन का अर्जन करने के लिए जातक को प्रदेश यात्रा का लाभ भी मिल सकता है। चतुर्थ भाव का स्वामी ग्रह पीड़ित होने पर जातक की माता अल्पायु होती है और अल्पसमय में ही जातक की माँ संसार-सागर को छोड़ जाती हैं। 

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चतुर्थेश का कुंडली के बारह भावों में फल (निष्कर्ष)  

जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव के स्वामी चतुर्थेश का कुंडली के बारह भावों में , विभिन्न  भाव के अनुसार अलग-अलग फल मिलता है। आपने जाना कि आपको इसका अच्छा (सकारात्मक) फल भी मिल सकता है और नकारात्मक  भी मिल सकता है।

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