विवाह का समय निर्धारण कृष्णामूर्ति पद्धति से कैसे करते हैं:

आम तौर पर जो सामान्य ज्योतिष प्रचलन में है उसमें विवाह के लिए सप्तम भाव को ही प्राथमिकता दी जाती है | ज्योतिषी गण सप्तम भाव, नवांश सप्तमांश से सम्बंधित दशाओं के अनुरूप ही विवाह का समय भी बताते हैं | लेकिन कृष्णामूर्ति पद्धति में तीन भावों को सामूहिक रूप से देखा जाता है | ये भाव हैं २,७,और ११ .

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इनको क्यों देखा जाता है ? दूसरा भाव कुटुंब भाव होता है – जब विवाह होता है तो घर के सदस्यों की संख्या बढ़ती है, अतः द्वीतीय भाव को सम्मिलित करा जाता है , सप्तम भाव विवाह का मूल स्थान होता ही है अतः उसके बिना हम गणना नहीं कर सकते हैं | ग्यारहवां भाव इच्छा पूर्ति का भाव होता है | इस भाव के बिना कुछ भी होना संभव नहीं होता है | अतः जब बात विवाह की आती है तो हमको दो , सात , और ग्यारह इन तीनों भावों को देखना होता है |

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देखते कैसे हैं? हमको इन तीनों भावों के कार्येष ग्रहों को देखना होता है – भावों के कार्येष ग्रहों कैसे देखे जाते हैं इसको आप मेरे इस विडियो से सीख सकते हैं | अगर ऐसा नहीं करते तो इसके विपरीत ग्रहों के कार्येष भावों को देखते हैं और यह भी इस विडियो में आप आसानी से सीख सकते हैं |

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जब हम दोनों में से किसी भी एक तरह से ग्रहों का निर्धारण कर लेते हैं तो हमको चलने वाली दशा देखनी होती है | जो भी महादशा अन्तर दशा और प्रत्यंतर दशा दो सात और ग्यारह भावों को सम्मिलित रूप से प्रदर्शित करेगी  उसी समय में जातक का विवाह होता है | यह नियम है अब इसको उदाहरण द्वारा समझते हैं :

जातक की जन्म विवरण इस प्रकार है :11-01-1973, समय सुबह के दस बजकर दस मिनिट, अमृतसर में हुआ और इनका विवाह हुआ सात अक्तूबर 2001 को |

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अब इनकी कुंडली के दो सात और ग्यारह भावों के हम सिग्निफिकेटर गृह निकालते हैं |

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अगर आपने भावों के कार्येष गृह या सिग्निफिकेटर गृह निकालने वाला विडियो देखा है तो आपको यह बहुत आराम से समझ में आ जाएगा अन्यथा उस विडियो को बार-बार देखिये और समझने का प्रयास कीजिये और फिर भी कोई शंका हो तो कमेंट्स में वर्णन कीजिये |

इस विडियो से सीखिए भावों के कार्येष गृह और ग्रहों के कार्येष भाव कैसे निकालते हैं ?

दूसरे भाव के सिग्निफिकेटर गृह: केतु , गुरु

सप्तम भाव के सिग्निफिकेटर गृह : सूर्य , गुरु

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लाभ भाव के सिग्निफिकेटर गृह : सूर्य , गुरु , बुध , राहू , केतु

जब एक ही भाव के बहुत सारे सिग्निफिकेटर गृह हो जाते हैं तो बड़ी समस्या होती है और ऐसे में गुरूजी कृष्णामूर्ति जी ने कहा था की हमको रूलिंग ग्रहों की सहायता लेनी चाहिए | लेकिन यहाँ हम ऐसा नहीं कर पायेंगे क्योंकि विवाह संपन्न हो चुका है |

अब हम दशा देखते हैं कि कौन सी दशा चल रही थी जब इन जातक का विवाह हुआ तो हम पायेंगे कि इन जातक का विवाह शुक्र की महादशा शुक्र की अंतर दशा और राहू की प्रत्यंतर दशा में संपन्न हुआ |

शुक्र भाव चक्र में दशम भाव में है किन्तु उसकी युति गुरु सूर्य बुध और राहू से है तथा वह गुरु की धनु राशि में स्थित है | शुक्र केतु के नक्षत्र और राहू के उप नक्षत्र में स्थित है | यहाँ सबसे ध्यान देने वाली बात यह है कि सप्तम भाव स्वयं ही शुक्र के नक्षत्र और शुक्र के ही उप नक्षत्र में स्थित है तथा यह बुध के उप -उप नक्षत्र में स्थित है |

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केतु पर सूर्य गुरु दोनों की द्रष्टि है और राहू इनके साथ युति में है अतः इनके बिना होना संभव नहीं है क्योंकि छाया गृह मूल ग्रहों से अधिक बलवान होते हैं |जब हम भाव के सिग्निफिकेटर ग्रहों के पंचम स्तम्भ पर आते हैं तो युति / द्रष्टि हमको मिलती है | अतः शुक्र पंचम स्तर का सिग्निफिकेटर गृह है | शुक्र का अधिपत्य चतुर्थ और नवम भावों पर है | शुक्र की युति २,७,११ के स्वामी के साथ है और शुक्र इस तरह से बहुत ही मजबूत सिग्निफिकेटर गृह बन जाता है | विवाह वाले दिन सूर्य बुध की राशि कन्या में , चंद्रमा के नक्षत्र में और शुक्र के उप नक्षत्र में गोचर कर रहा था | चंद्रमा भी शुक्र की राशि में अपने ही नक्षत्र में गोचर कर रहा था |

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के पी पद्धति में सूर्य का गोचर समय निर्धारण के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण होता है |

आइये अब एक और उदाहरण के द्वारा समझते हैं और इसको हम पहले की अपेक्षा कम डिटेल में देखेंगे जिस से आप अगर वास्तव में सीखना चाहते हैं तो स्वयं भी कुछ प्रयास करेंगे |

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जातक का जन्म विवरण इस प्रकार है :25 august 1985, time 11:40 place faizabad

जातक का विवाह  दस फरवरी 2018 को संपन्न हुआ | आइये देखते हैं की कैसे और क्यों :

विवाह के समय जातक की जो दशा चल रही थी वह इस प्रकार थी – चंद्रमा की महादशा में राहू की अन्तर दशा और बुध की प्रत्यंतर दशा | अब हम बजाय भावों के कार्येष देखने की जगह देखते हैं कि ये तीन गृह किन भावों के कार्येष होते हैं – चंद्रमा कुंडली में केतु के नक्षत्र और मंगल के नक्षत्र में है , चंद्रमा द्वीतीय भाव में केतु द्वादश भाव और मंगल नवम भाव में स्थित है |

राहू किन-किन भावों का कार्येष है यह आप लोग निकाल कर कमेंट्स में बताएं |

बुध नवम भाव में है और बुध के नक्षत्र और शुक्र के उप नक्षत्र में है |

कुंडली में मंगल की शुक्र बुध दोनों से युति है और मंगल सप्तम भाव का स्वामी है अतः कार्येष है और इस प्रकार शुक्र बुध भी युति में होने से कार्येष हुए |

चंद्रमा का उप नक्षत्र स्वामी मंगल है , केतु शुक्र की राशि में है और शनि के साथ युति में है और राहू के नक्षत्र और चंद्रमा के उप नक्षत्र में है | विवाह वाले दिन सूर्य मंगल के ही नक्षत्र में गोचर कर रहा था और गुरु के उप नक्षत्र में था साथ ही चंद्रमा मंगल की राशि में था और मंगल के साथ युति में था और बुध के ही नक्षत्र में था |

इस विडियो से सीखिए विवाह का समय निकालना 

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