नक्षत्र विवेचन

नक्षत्र भारतीय पंचांग ( तिथि, वार, नक्षत्र, योग तथा करण) का तीसरा अंग है। ‘न क्षरतीति नक्षत्राणि अर्थात् जिनका क्षरण नहीं होता, वे ‘नक्षत्र’ होते हैं। नक्षत्र सदैव अपने स्थानपर ही रहते हैं जबकि ग्रह नक्षत्रों में संचार करते हैं।

नक्षत्रोंकी संख्या प्राचीन कालमें 24 थी, जो कि आजकल 27 है मुहूर्तज्योतिष में ‘अभिजित्’ को भी गिनतीमें शामिल करनेसे 28 नक्षत्रोंकी भी गणना होती है। प्राचीन कालमें फाल्गुनी, आषाढ़ा तथा भाद्रपदा- इन तीन नक्षत्रों में पूर्वा तथा उत्तरा- इस प्रकारके विभाजन नहीं थे। ये विभाजन बादमें होनेसे 24+3-27 नक्षत्र गिने जाते हैं। राशियोंके साथ समन्वय करनेकी दृष्टिसे नक्षत्रोंके समान विभाग किये गये हैं जिनमें प्रत्येक विभाग तेरह अंश, बीस कलाका होता है, परंतु आकाशमें इनका विस्तार वास्तविक रूपमें तुल्य नहीं है।

अस्तु, इस आधारपर इनमें चन्द्रमाके रहनेकी अवधि बराबर नहीं होती। इस कारण नक्षत्रोंका विभाजन मुहूर्तोमें भी किया गया है। कोई नक्षत्र 15 मुहूर्त, कोई 30 मुहूर्त तथा कुछ नक्षत्र 45 मुहूर्तवाले होते हैं। एक मुहूर्त 2 घटी अर्थात् अड़तालीस मिनटका होता है। पंचांगमें जिस नक्षत्र में चन्द्रमा स्थित होता है, उसीका भोगकाल लिखते हैं। वही दिननक्षत्र होता है।

नक्षत्रोंको अँगरेजीमें कॉन्स्टेलेशन्स (Constellations) कहते हैं। अथर्ववेद (19।7।1) में चित्रादि 28 नक्षत्रोंका उल्लेख है

चित्राणि साकं दिवि रोचनानि सरीसृपाणि भुवने जवानि ।
तुर्मिषं सुमतिमिच्छमानो अहानि गीर्भिः सपर्यामि नाकम् ॥

नक्षत्रोंका वर्गीकरण — नक्षत्रोंका वर्गीकरण दो प्रकारसे मिलता है: प्रथम प्राप्त वर्णन उनके मुखानुसार है, जिसमें ऊर्ध्वमुख, अधोमुख तथा तिर्यङ्मुख (तिरछे मुखवाले) – इस प्रकारके तीन वर्गीकरण हैं।

दूसरे प्रकारका वर्गीकरण सात वारोंकी प्रकृतिके अनुसार सात प्रकारका प्राप्त होता है। यथा- ध्रुव (स्थिर), चर (चल), उग्र (क्रूर), मिश्र (साधारण), लघु (क्षिप्र), मृदु (मैत्र) तथा तीक्ष्ण (दारुण)। यहाँ संक्षेपमें नक्षत्रोंका कुछ विवेचन प्रस्तुत है।

1- अश्विनी नक्षत्र (Beta Arietis) 

यह यजुर्वेदियोंका विशेष विवाह-नक्षत्र है। इस प्रथम नक्षत्रके देवता अश्विनीकुमार हैं, जो देवताओंके चिकित्सक हैं। शरत्पूर्णिमाका चन्द्र इसी नक्षत्रमें होता है, अत: इसे शारदीय कहते हैं। इसका अरबी नाम ‘शर्ती’ है। यह घोड़ेके मुखके आकारका तीन तारोंका पुंज होता है। यह लघु तथा क्षिप्रसंज्ञक तथा तिर्यक्मुख है। अतः इस नक्षत्रमें यन्त्र, मशीनरी, कल-कारखाने, यात्रा, दूरसंचार, कम्प्यूटर, चिकित्सा, औषधि तथा रसायनसम्बन्धी कार्य करने चाहिये। यह तीसमुहूर्ती नक्षत्र है। इसे पुल्लिंग माना जाता है और इसका प्रथम चरण गण्डान्त दोषसे युक्त होता है।

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2- भरणी नक्षत्र (Arietis)

 इस नक्षत्रके देवता यमराज हैं। इसका आकार योनिसदृश होता है। इसमें दो तारे होते हैं। यमराजको संस्कृतमें ‘वाटिन’ कहते हैं। अत: इसे अरबी भाषामें ‘वतीन’ कहते हैं। यह पन्द्रहमुहूर्ती नक्षत्र है तथा पुल्लिंग है। उग्र तथा क्रूर संज्ञावाला नक्षत्र होनेसे इसमें शुभ कार्य वर्जित हैं। यह अधोमुख नक्षत्र है, अत: इसमें आखेट कर्म तथा आकाशसे धरतीमें प्रहार करनेवाले अस्त्रादिके प्रयोग सफल होते हैं। भरणी नक्षत्रमें सर्पादिका दंश कष्टप्रद होता है।

3- कृत्तिका नक्षत्र (Eta Tauri)

 इसके स्वामी अग्निदेव हैं। इसे अरबीमें ‘सुरैया’ कहते हैं। तीस मुहूर्ती यह नक्षत्र क्षुरिकाके आकारका दिखायी देता है। यह अधोमुख नक्षत्र साधारण तथा मिश्रसंज्ञावाला है। इसमें सामान्य कार्य, अग्निस्थापन, यज्ञ-हवनका प्रारम्भ भट्टेमें अग्नि डालना, फसलकी कटाई, मड़ाई, बुवाई आदि कार्य उपयुक्त होते हैं। यह छः तारोंका झुण्ड होता है। यह भी पुल्लिंग नक्षत्र है। इसे सूर्यका नक्षत्र कहा जाता है।

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4- रोहिणी नक्षत्र (Alpha Tauri)

 इसके स्वामी ब्रह्मा हैं। इसका अरबी नाम ‘दब्बात’ है। पाँच तारोंका यह पुंज आकाशमें लम्बे त्रिभुज (बैलगाड़ीके ढाँचे) की तरह दिखायी देता है। यह पुल्लिंग नक्षत्र ध्रुव तथा स्थिर प्रकृतिका एवं ऊर्ध्वमुख है अतः इसमें समस्त शुभ कार्योंके अतिरिक्त भवन, मकान, मठ, मन्दिरोंकी छतोंका निर्माण, दीवारोंकी चिनाई, बुर्ज, मीनारें, गुम्बद तोरण, छत्र आदिका निर्माण, अभिषेक, कृत्रिम उपग्रहों, राकेटों तथा अन्तरिक्ष स्टेशनोंको आकाशमें भेजना, नवनिर्मित वायुयानका उड़ाना आदि कार्य शुभ होते हैं। अरबीमें ‘दब्बार:’ का अर्थ बार-बार घूमनेवाला होता है।

5- मृगशिरा नक्षत्र (Lambda Orionis)

 यह पुल्लिंग नक्षत्र अरबीमें ‘हकुआ’ कहलाता है। इसके स्वामी चन्द्रदेव हैं। इसमें तीन तारे मृगोंके सिर (तीन सिरों) की भाँति दिखते हैं। यह मृदु तथा मैत्र स्वभाववाला 30 मुहूर्ती नक्षत्र तिर्यक् मुख है। इस नक्षत्रमें हाथी, घोड़ा, कैट, गाड़ी, ट्रैक्टर, ट्रक, दोपहिया वाहन, वायुयान, जलयान, हल जोतना, दौड़ आदिका आयोजन करना उत्तम रहता है। नयी रेलगाड़ीका संचालन तथा नये लोको इंजनका प्रारम्भ इस नक्षत्र में शुभ रहता है। नौकाविहार, तैराकी, विविध खेलों तथा वनसंचार जैसे कामके लिये भी यह नक्षत्र अनुकूल होता है।

6- आर्द्रा नक्षत्र (Alpha Orionis) 

इसके स्वामी रुद्र हैं। इस स्त्रीलिंगी नक्षत्रको अरबीमें ‘हनजा’ कहते हैं। तीक्ष्ण तथा दारुण स्वभावका नक्षत्र होनेसे इसमें शुभ कार्य नहीं किये जाते यह विषैला नक्षत्र है। इसमें विषाक प्राणियों तथा विषाक्त द्रव्योंका सम्पर्क शुभ नहीं होता। यह ऊर्ध्वमुख नक्षत्र है।

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7- पुनर्वसु नक्षत्र (Beta Geminariurm)

 इसे अरबी में ‘जिरा’ कहते हैं। इसमें 4 तारे घरके आकारके दिखते हैं। यह 45 मुहूर्ती नक्षत्र स्त्रीलिंगी है। इसकी प्रकृति चर या चल होती है। यह तिर्यक्मुख है। इस नक्षत्रको स्वामिनी देवमाता अदिति हैं। इस नक्षत्रमें वास्तुकर्म, गृहनिर्माण आदि कार्य उत्तम रहते हैं। औषधनिर्माण, गृहप्रवेश, वधूप्रवेश आदिके लिये यह नक्षत्र अनुकूल होता है। यह नक्षत्र पुनर्वास (Rehabilitation) करानेवाला होता है। अतः इसमें गृहका निर्माण, मण्डलों एवं बस्तियोंका उद्घाटन शुभ होता है।

8- पुष्य नक्षत्र (Delta Cancri)

 इस नक्षत्रके स्वामी देवगुरु बृहस्पति हैं। इस 30 मुहूर्ती नक्षत्रको अरबीमें ‘नसरा’ कहा जाता है। यह स्त्रीलिंगी, लघु क्षिप्रसंज्ञक नक्षत्र ऊर्ध्वमुख होता है। विवाहको छोड़कर इस नक्षत्र में शेष सभी शुभ कार्य किये जा सकते हैं। पुष्यका अर्थ पोषक होता है। गुरुवार तथा रविवारको पुष्य नक्षत्र होनेपर विशेष शुभ फल देता है। इस दिन यदि किसी कार्यका मुहूर्त न निकलता हो तो भी उस कार्यको किया जा सकता है। सोमवार, मंगलवार, बुधवार तथा शनिवारको यह मध्यम फल देता है; परंतु शुक्रवार के दिन यदि पुष्य नक्षत्र हो तो उतने समयतक ‘उत्पात’ नामक योग होता है। इसमें कोई शुभ कार्य प्रारम्भ नहीं करना चाहिये।

9- श्लेषा नक्षत्र (Epsilon Hydrae)

इसे ‘आश्लेषा’ भी कहते हैं। इसके स्वामी सर्प तथा इसका अरबी नाम ‘तुर्फा’ है। तीक्ष्ण, दारुण तथा अधोमुख होनेसे यद्यपि इसमें शुभ कर्म नहीं किये जाते; फिर भी बीज बोना, हल जोतना आदि कार्य इसमें किये जाते हैं। यह गण्डान्त नक्षत्र है। इसका अन्तिम चरण जन्म लेनेवाले के लिये अशुभ होता है तथा इसके समाप्ति समयकी तीन घटी (1 घण्टा 12 मिनट) का समय विशेष दोषपूर्ण होता है। इसमें जन्म लेनेवाले बालक-बालिकाओंके लिये शान्ति करानी चाहिये।

10- मघा नक्षत्र (Alpha Leonis)

 इस नक्षत्रके स्वामी पितर होते हैं। इसे अरबीमें ‘जबहा’ कहते हैं। यह तीस मुहूर्ती स्त्रीलिंगी नक्षत्र है। यह उग्र, क्रूर प्रकृतिका अधोमुख नक्षत्र है और इसमें विवाह किया जाता है। खेती, बाग-बगीचा, वृक्षारोपण, बीजवपन, हलप्रवहणादि कार्य इसमें किये जाते हैं। यह भी गण्डान्त नक्षत्र है। अतः इसके प्रारम्भकी तीन घटी समस्त शुभ कार्यों में निषिद्ध है। इन घटियोंमें जन्म लेनेवालेको विशेष गण्डान्त दोष होता है। इस नक्षत्रका प्रथम चरण प्रारम्भकी तीन घटियोंके पश्चात् मध्यम दोषकारक होता है और शेष तीन चरण सामान्य दोष करते हैं। इसकी शान्ति करायी जाती है। यह विष नक्षत्र है।

11 पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र (Delta Leonis)

 इसमें दो तारे होते हैं और इसे अरबीमें ‘जोहरा’ कहते हैं, जिसके स्वामी भग देवता होते हैं। यह उग्र क्रूर प्रकृतिका तीस मुहूर्तवाला अधोमुख नक्षत्र होता है। इसका आकार खाटकी तरह होता है। इसमें कुआँ खोदना तालाब बनवाना, जमीनका समतलीकरण, सड़क बनाना, रेलवे लाइन बिछाना, खदान प्रारम्भ करना, खदानमें प्रवेश, गुफाका निर्माण आदि कर्म शुभ होते हैं यह नक्षत्र गणितकार्य, हिसाब-किताब, मुनीमीका कार्य करनेमें अनुकूलता प्रदान करता है। प्राचीन कालमें केवल एक ही फाल्गुनी था, परंतु बादमें ये दो हो गये।

12- उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र (Beta Leonis)

 इसे अरबीमें ‘सर्फा’ कहते हैं, इसके स्वामी अर्यमा हैं। इसमें 2 तारे होते हैं। इसका आकार पर्यंककी तरह माना गया है। यह 45 मुहूर्ती ऊर्ध्वमुखी, ध्रुव एवं स्थिर प्रकृतिका नक्षत्र स्त्रीसंज्ञक है। यह विवाहसहित समस्त शुभ कर्मोंके लिये उपयुक्त होता है। यह विद्यादायक नक्षत्र है। अत: इसमें अक्षरारम्भ, विद्यारम्भ, अध्ययन-अध्यापन, पुराण-कथा-प्रवचन, वास्तुकर्म, कूप खोदना, नलकूप लगाना, पुस्तकालय, वाचनालय, विद्यालय, प्रशिक्षण केन्द्र आदिका प्रारम्भ करना शुभ होता है।

13- हस्त नक्षत्र (Delta Carvi)

 इसे अरबी में “अव्वाब’ कहते हैं, जिसका अर्थ प्रार्थना करनेवाला या माला फेरनेवाला होता है। इसके 5 तारे हाथके पंजेकी आकृतिके होते हैं। यह लक्ष्मीदायक नक्षत्र है और इसके स्वामी सूर्य हैं। तिर्यक्मुख एवं लघु प्रकृतिवाला यह नक्षत्र उद्योग, व्यापार एवं वाणिज्यके लिये उपयुक्त होता है, लेकिन इसमें विवाह तथा समस्त धर्मकार्य एवं संस्कार किये जाते हैं। जब सूर्य इस नक्षत्रपर रहते हैं, तब यदि वर्षा होती है तो उस वर्षाके कारण गेहूँ की फसल बहुत अच्छी होती है। यज्ञ, हवन, धर्मप्रचार आदिके लिये यह नक्षत्र विशेष अनुकूल रहता है। इसके स्वामी सूर्य हैं।

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14- चित्रा नक्षत्र (Spica) 

यह अकेला ही चमकदार तारा है, जिसे अरबीमें ‘सम्वक’ कहते हैं। यह मोती जैसा दिखता है और इसका स्वामी त्वष्टा है। यह मृदु मैत्र प्रकृतिका तिर्यक्मुख नक्षत्र शुभ फलदायक होता है। इसमें यन्त्र, कल-कारखाना आदिका प्रारम्भ करना शुभ होता है। यजुर्वेदियोंके लिये यह विवाहनक्षत्र भी है। इसमें साझेदारी करना, मैत्री सम्बन्ध बनाना, मैत्री सन्देश, शुभकामना आदि भेजना शुभ होता है। सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक सम्बन्धोंको विस्तृत करनेके लिये इसमें भेंट मुलाकात करनी चाहिये।

15- स्वाति नक्षत्र (Alpha Bootes)

इसके स्वामी वायुदेव हैं। स्वातिका एक गणतारा प्रवालसदृश होता है। इसे अरबीमें ‘गफरा’ कहते हैं, जिसका अर्थ वरदान देनेवाला होता है। स्वाति नक्षत्रमें जब सूर्य होता है, तब उसमें होनेवाली वृष्टि फसलके लिये अमृततुल्य लाभकारी होती है। स्वाति नक्षत्र विवाह नक्षत्रोंमेंसे है। यह तिर्यकुमुख चर नक्षत्र है और इसमें समस्त शुभ कार्य किये जा सकते हैं यात्रा, यानकी सवारी, वाहनोंका क्रय-विक्रय, मुद्रण- यन्त्रोंका आरम्भ- ये समस्त कार्य शुभ होते हैं।

16- विशाखा नक्षत्र (Alpha Librae)

 विशाखाके स्वामी इन्द्राग्नि हैं। इसे अरबीमें ‘जबअ’ कहते हैं। वैशाखकी पूर्णिमाका चन्द्रमा प्रायः विशाखा नक्षत्रमें ही रहता है। इसमें चार तारे होते हैं। यह अधोमुख नक्षत्र मिश्र तथा साधारण प्रकृतिका होता है। अग्निसम्बन्धी कार्य, जैसे-चूल्हा, स्टोव, गैस, मिट्टीतेल, इंट-चुनेका भट्टा, आयुर्वेदीय रस भस्में तैयार करना, बिजली सम्बन्धी तथा दूरसंचार आदिका कार्य विशाखा नक्षत्र में करना श्रेष्ठ होता है।

17- अनुराधा नक्षत्र (Delta Scorpii)

अनुराधाके चार या छः तारे रथके आकारके होते हैं। अनुराधा नक्षत्र में विवाह, गन्धकर्म-सुगन्धित पदार्थोंका व्यवसाय, हाथी, घोड़ा, ऊँट, दोपहिया या चारपहिया वाहनोंका संचालन तथा इनके लिये गैरजको व्यवस्था शुभ होती है। चिकित्साकार्य, सर्जरीका कार्य, शवच्छेदन सीखना आदिके लिये यह नक्षत्र शुभ होता है। हड्डियोंका ऑपरेशन करनेके लिये अनुराधा नक्षत्र शुभ होता है। इसमें प्लास्टर करनेसे हड्डियाँ शीघ्रतापूर्वक जुड़ती हैं। यह मैत्रसंज्ञक नक्षत्र विवाहका नक्षत्र है।

18- ज्येष्ठा नक्षत्र (Alpha Scorpii)

 ज्येष्ठकी पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा प्रायः ज्येष्ठा नक्षत्रमें रहता है। यह गण्डान्तका नक्षत्र है। ज्येष्ठाका चतुर्थ चरण अधिक दोषकारक होता है। इसके स्वामी इन्द्र होते हैं। ज्येष्ठाके अन्तको तीन घटियाँ विशेष दोषपूर्ण होती हैं। इनमें जन्म लेनेवाले जातकके लिये गण्डान्तदोषकी शान्ति करानी चाहिये राज्याभिषेक, पदग्रहण, शपथग्रहण, शासकीय कर्मचारियों की नियुकिहेतु ज्येष्ठा नक्षत्र उत्तम होता है।

19- मूल नक्षत्र (Lambda Saggittarii)

 मूल नक्षत्रका स्वामी निर्ऋति नामक राक्षस होता है। यह भी गण्डान्त नक्षत्र है। इसका प्रथम चरण तथा उसमें भी प्रारम्भकी तीन घटी विशेष दोषपूर्ण मानी गयी हैं। इसमें जन्म लेनेवाले के लिये शान्तिका अनुष्ठान भी आवश्यक होता है। मूल में मंगलकार्य नहीं किये जाते, परंतु विवाह शुभ होता है। इसमें उग्र तथा दारुण कर्म] प्रशस्त माने जाते हैं। अस्त्र-शस्त्रक अभ्यास एवं क्रय-विक्रयहेतु मूल नक्षत्र ठीक माना गया है। मूलमें ग्यारह या बारह तारे माने जाते है।

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20- पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र (Delta Saggittarii)

 पूर्वाषाढ़ा में 4 तारे होते हैं। इसके देवता अप् (जल) । इसीलिये यह नक्षत्र जलकर्मके लिये प्रशस्त माना गया है। तालाब, कुआँ, नहर आदि खोदना, तेलकी लाइन बिछाना, प्याऊ लगाना, पानीकी टंकी लगाना- ये समस्त कार्य पूर्वाषाढ़ामें प्रसिद्ध हैं। इसके अतिरिक्त इस नक्षत्र में उग्र कर्म तथा अग्निकर्म भी किये जा सकते हैं। प्राचीन कालमें दोनों उत्तराषाढ़ा एक ही थे। आषाढ़ मासकी पूर्णिमा तिथिके दिन दोनों आषाढ़ामेंसे कोई-न कोई आषाढ़ा नक्षत्र अवश्य होता है।

21- उत्तराषाढ़ा नक्षत्र (Sigma Saggittarii)

 इस नक्षत्रके स्वामी विश्वेदेव हैं। यह विवाहके नक्षत्रोंमेंसे है। इसमें 2 तारे होते हैं। यह ध्रुव स्थिर प्रकृतिका ऊर्ध्वमुख नक्षत्र है। इसमें क्षत्र (छत), ध्वज, पताका, तोरण, पुल एवं पुलिया बनाना, हल चलाना, बीज बोना, ट्रैक्टर चलाना, रेलवे लाइन बिछाना, सड़क बनाना आदि कर्म अति प्रशस्त हैं। मुकुट आदिके निर्माण एवं धारणहेतु यह नक्षत्र प्रशस्त है। इसमें यानभूमि आदिका निर्माण कराना शुभ होता है। यह बुद्धिप्रदाता नक्षत्र है।

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22- अभिजित् नक्षत्र (Vega)

इसके स्वामी ब्रह्माजी हैं। यह नक्षत्र आकाशगंगासे बाहर है, अतः इसकी गिनती मुहूर्तको छोड़कर शेष कार्योंमें नक्षत्रों के अन्तर्गत नहीं की जाती। इसके तीन तारे त्रिकोणाकृतिवाले दिखते हैं। इसमें यात्रागार (यात्री प्रतीक्षालय) का निर्माण विशेष प्रशस्त माना गया है। इसका गणितीय विस्तार राशि 9 अंश 6 तथा कला 40 से राशि 9 अंश 10 कला 53 विकला 20 तक होता है। यह आकाशके सर्वाधिक चमकदार तारोंमेंसे एक है।

23- श्रवण नक्षत्र (Alpha Aquilae)

 इसमें तारे विष्णुके तीन पगों या कानके आकारके माने जाते है। इसमें यज्ञशालाका निर्माण, चौलकर्म (मुण्डन), उपनयन (जनेऊ), कृषिकर्म, कथारम्भ, प्रवचन, -धर्मग्रन्थका लेखनारम्भ आदि शुभ है। यह चमकीला -नक्षत्र है। श्रवण नक्षत्र गजुर्वेदियोंके लिये विवाहका नक्षत्र है। इसमें यानकी सवारी, पहाड़ोंकी यात्रा आदि करना उत्तम रहता है। इसके स्वामी विष्णुभगवान् कहे गये हैं। यह ऊर्ध्वमुख नक्षत्र है और दूरसंचार माध्यमोंके उपयोग हेतु शुभ है।

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24- धनिष्ठा नक्षत्र (Beta Delphini)

इसके स्वामी वसु हैं। धनमें इसकी स्थिति होनेसे इसे धनिष्ठा कहते हैं। यजुर्वेदियोंके लिये यह विवाहका नक्षत्र । इसमें चार तारे मृदंगके आकारके होते हैं । इस नक्षत्रमें सभी विद्याओंको सीखना प्रारम्भ किया जा सकता है। बीजवपन आदि कार्यहेतु यह श्रेष्ठ नक्षत्र गिना जाता है। वाहन-प्रयोग, यात्रा, चौलकर्म, उपनयन आदि कार्यों में यह शुभ माना गया है। रोजगार, व्यवसाय, विपणि, वाणिज्यहेतु भी यह नक्षत्र शुभ होता है।

25- शतभिषा नक्षत्र (Lambda Aquarii ) 

शतभिषाके स्वामी वरुणदेव हैं। यह नक्षत्र औषधसेवनके लिये अति उत्तम होता है। इसमें मैत्रीकर्म, चुनाव प्रचार, व्यावसायिक विज्ञापन, क्रय-विक्रय, विपणि, व्यापार, कृषिकार्य, यात्रा आदि कर्म भी अनुकूल रहते हैं । इस नक्षत्रमें जन्म लेनेवाला जातक विद्वान्, कलाकुशल तथा ओजस्वी वक्ता होता है। वह वाद-विवादमें कुशल होता है। गोशाला, गजशाला, अश्वशाला, उष्ट्रशाला, गैरेज आदिके निर्माण एवं प्रवेशके लिये इस नक्षत्रको सर्वथा प्रशस्त माना गया है।

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26 – पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र (Alpha Pegasi)

 इसके स्वामी अजैकपात् नामक देव हैं। इस नक्षत्रको पूर्वाप्रौष्ठपदा भी कहते हैं। इस नक्षत्रमें जलसम्बन्धी कार्य, वापी, कूप, तडाग, नहर आदिके काम, पानीकी टंकी, टैंक आदिका निर्माण प्रशस्त होता है। इसके अतिरिक्त जलपात्र आदिका निर्माण एवं उपयोगहेतु भी यह नक्षत्र उत्तम होता है। भाद्रपद मासकी पूर्णिमाके दिन दोनों भाद्रपद (प्रौष्ठपदा) नक्षत्रों में से कोई एक अवश्य होता है। यह उग्र एवं क्रूर स्वभावका नक्षत्र होता है ।

27- उत्तराभाद्रपदा नक्षत्र (Gamma Pegasi )

 इस नक्षत्रके स्वामी अहिर्बुध्न्य हैं। इसमें दो तारे होते हैं तथा इसे ‘उत्तरप्रौष्ठपदा’ भी कहते हैं । इस नक्षत्रमें गृहत्याग, वानप्रस्थग्रहण, संन्यासग्रहण, भिक्षु होना आदि कार्य किये जाते हैं। इस नक्षत्रमें त्यागसम्बन्धी कार्य सफल होते हैं। यह विवाहका नक्षत्र है। इसमें स्थिर कार्य, कृषिकर्म, वापी, कूप, तडाग आदिका निर्माण, मैत्री सम्बन्ध जोड़ना, अश्वशालादिका निर्माण, वाहनप्रयोग, भाड़ेके वाहनका संचालन आदि शुभ होता है।

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28 – रेवती नक्षत्र (Zeeta Piscium)

 इस नक्षत्रके देवता पूषा हैं । 32 तारोंवाले इस नक्षत्रको ‘पौष्ण’ भी कहते हैं। इसमें विवाह तथा मैत्रीकर्म एवं धार्मिक कार्य करना प्रशस्त होता है, परंतु धनिष्ठाके उत्तरार्धसे रेवतीपर्यन्त ईंधनका संग्रह, खाट या कुर्सीका बुनना, छत डालना, फर्नीचरका काम इत्यादि कार्य नहीं करना चाहिये। ये नक्षत्रपंचक कहलाते हैं। खेतीका कार्य, मकान बनाना, यात्रा, देवप्रतिष्ठा आदि काम इसमें शुभ होते हैं।