सूर्य का १२ भावों में फल

वैदिक ज्योतिष मे सूर्या को आत्मा ,पिता ,अहं और सम्मान का कारक माना गया है। सूर्य देव को शनि का पिता भी कहा जाता है। 

सूर्य का गुरु के साथ सात्विक ,चन्द्र के साथ राजस और मंगल के साथ तामस व्यवहार करता है। वहीं सूर्य का शनि ,शुक्र ,राहु और केतु के साथ वैर भाव होता है। 

सूर्य का अन्य ग्रहों से युति होने पर व्यक्ति को जीवन मे सफलता मिलती रहती है। व्यक्ति को धन ,वैभव और पद प्रतिष्ठा मिलता रहता है।

जातक की रूचि अन्य कारकों के साथ इस बात पर भी निर्भर करता हैं जातक के जन्मकुंडली के भाव पर सूर्य का क्या असर पड़ रहा है। 

सूर्य जन्मकुंडली के अलग-अलग भावों मे बैठकर अलग-अलग फल प्रदान करता है। 

आइये जानते हैं कि सूर्य का कुंडली के बारह भावों मे क्या फल मिलता है। 

सूर्य का प्रथम भाव मे फल:-

ज्योतिषशास्त्र में  प्रथम भाव को लग्न भाव भी कहते हैं।  यदि सूर्य जातक की जम्ङकुंडली के प्रथम भाव मे विद्यमान हो तो जातक का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक होता है। 

जातक का समाज मे मान-सम्मान और प्रतिष्ठा होता है। जातक को राजनीति मे आने का अवसर मिल सकता है। वह व्यक्ति का वैवाहिक जीवन बहुत सुखमय होगा। जातक को व्यापार मे अपने सहयोगी से मदद मिल सकता है।यदि लग्न भाव मे सूर्य पीड़ित होगा तो जातक को चर्मरोग संबंधी बीमारी हो सकती है। जातक आँख की समस्याओ से पीड़ित रह सकता है। 

सूर्य का द्वितीय भाव मे फल:-

द्वितीय भाव धन का भाव है। ज्योतिष मेंं द्वितीय भाव धन, वाणी, नेत्र व परिवार इत्यादि का होता है। सूर्य यदि जातक के द्वितीय भाव में विद्यामान हो तो जातक के पिता जी परिवार के मुख्य सदस्य के रूप मे अपनी भूमिका निभाएगे। सूर्य दूसरे भाव मे पीड़ित होने पर जातक का अपने पिता जी से मतभेद हो सकता है। ऐसे मे जातक का पिता जी से अच्छे संबंध नहीं होंगे। जातक का कुटुंब उच्च कुल का होगा और समाज मे इनका बहुत आदर-सम्मान होगा। जातक का परिवार राजनीति अथवा व्यापार से जुड़ा हो सकता है। सूर्य यदि जातक के द्वितीय भाव मे विद्यमान हो तो जातक अहंकारी हो सकता है जो कि उसे लोगो के विरुद्ध बना सकता है। ऐसे मे द्वितीय भाव मे सूर्य की उपस्थिति  अहंकार भाव के कारण परिवार के सदस्यो से कुछ कहासुनी हो सकती है। द्वितीय भाव धन का भाव होने से जातक अपनी संपत्ति को धन कमाने मे निवेश कर सकता है।

 ऐसे जातक मे भौतिक सुख भोगने की तीव्र इच्छा होती है। द्वितीयेश सूर्य जातक को दृष्टि अथवा वाणी संबंधी कोई समस्या दे सकता है। 

सूर्य का तृतीय भाव मे फल:-

तृतीय भाव को प्रयास करते रहने का भाव माना जाता हैं। ज्योतिष में तृतीय भाव पराक्रम, छोटे भाई-बहिन, कंठ-गला एवं साहस का होता है। जन्मकुंडली के तृतीय  भाव में सूर्य उपस्थित होने पर ऐसे जातक केवल आवश्यकता पड़ने पर बात करते हैं  तभी बात करते हैं। व्यक्ति का जीवन के प्रति सकारात्मक नजरिया होता है। जातक की छोटी-छोटी यात्राएं करने मे रूचि हो सकती है। वह व्यक्ति औसत स्तर का पढ़ा लिखा हो सकता है। ऐसा जातक एक अच्छा लेखक हो सकता है। जातक धन संग्रह के लिए मीडिया ,मनोरंजन अथवा लेखन आदि को अपना सकता है। जातक के पेशेवर जीवन मे उतार-चड़ाव आते रहेंगे। 

सूर्य का चतुर्थ भाव मे फल:-

चतुर्थ भाव को सुख का भाव माना जाता है। ज्योतिष में कुंडली में चतुर्थ भाव माता, वाहन, प्रॉपर्टी, भूमि, मन, ख़ुशी, शिक्षा तथा भौतिक सुख इत्यादि का कारक भाव होता है। अगर जातक के जन्मकुंडली में सूर्य चतुर्थ भाव में उपस्थित हो तो जातक नाखुश और अक्सर चिंतित रहने वाला होता है। जातक के जीवन मे उसकी माता जी का खास भूमिका हो सकता है। जातक को विद्यालय से अच्छी शिक्षा मिलेगी। चतुर्थ भाव वाहन, प्रॉपर्टी, भूमि का होने के कारण जातक को इन सब मे गहरी रूचि हो सकती है। ऐसा जातक अपने आस-पास के क्षेत्र मे प्रसिद्ध हो सकता है। जातक आध्यात्मिक और दयालु स्वभाव का होता है। वह व्यक्ति किसी नौकरी अथवा रियल स्टेट का बिजनेस करने वाला हो सकता है। 

सूर्य का पंचम भाव मे फल:-

पंचम भाव को त्रिकोण अथवा लक्ष्मी का भाव  माना जाता है। ज्योतिष में पंचम भाव उच्च शिक्षा, संतान, प्रेम एवं टेलेंट का होता है। सूर्य यदि जातक के पंचम भाव में विद्यमान हो तो ऐसा जातक बहुत टाइलेंटेड होता है। वह जातक अच्छा अभिनेता या राजनीतिक बन सकता है। ऐसे जातक स्टेज पर अपना प्रदर्शन दिखाने मे माहिर होते है । सूर्य का पंचम भाव मे होना दर्शाता है कि जातक बहुत भाग्यशाली है। संतान की दृष्टि से सूर्य का पंचम भाव मे होना शुभ नहीं माना जाता है। ऐसे जातक की स्त्री का गर्भपात हो सकता है। पंचम भाव मे सूर्य के अशुभ ऐसे जातक कभी-कभी हृदय रोग से पीड़ित हो सकते हैं। 

सूर्य का षष्ठम भाव मे फल:-

षष्ठम भाव को शत्रु ,कर्ज एवम व्याधियों का भाव माना जाता है। ज्योतिष में छ्टा भाव रोग, ऋण, शत्रु व मामा का भी होता है। यहाँ पर षष्ठम भाव और सूर्य दोनों ही अशुभ है इसलिए ये दोनों की उपस्थि शुभ फतिल प्रदान कर सकता है। सूर्य जातक के जन्मकुंडली के षष्ठम भाव में विद्यामान होने पर जातक बहुत धनवान हो सकता है। जातक को अपने शत्रुओ पर विजय मिलेगी। 

वह व्यक्ति एक अच्छा राजनीतिक बन सकता है। जातक अपने पेशेवर जीवन से खुश न होने पर वह अपने पेशे को बार-बार  बदलता रह सकता है। सूर्य का षष्ठम भाव मे उपस्थित होना दर्शाता है कि वह व्यक्ति अपने बातों पर दृढ़ रहने वाला होगा। वह व्यक्ति अनुशाषित होगा और दूसरों का आदर-सम्मान करने वाला होगा। तथा यहीं कामना दूसरों से खुद के लिए करने वाला हो सकता है। 

सूर्य का सप्तम भाव मे फल:-

सप्तम भाव को विवाह तथा व्यापार का भाव माना जाता हैं। ज्योतिष में सप्तम भाव जीवनसाथी, व्यापार, साझेदार, व विदेश यात्रा का होता है। जन्मकुंडली में यदि सूर्य जातक के सप्तम भाव में विद्यमान हो तो जातक को स्वास्थ्य और एक ऐसा आत्मविश्वास प्रदान करेगा जिससे जातक किसी भी समस्या का सामना बड़े ही आसानी से कर लेगा। सूर्य के सप्तम भाव मे उपस्थित होने से जातक के विवाह मे देरी हो सकती है अथवा वह व्यक्ति अपने वैवाहिक जीवन से असंतुष्ट हो सकता है। ऐसे जातक का विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित हो सकता है जिससे उस व्यक्ति के जीवन मे समस्याए हो सकती है।  अतः जातक मानसिक रूप से तनाव ग्रस्त हो सकता है अतवा उसके नीड़ मे कमी आ सकती है। 

सूर्य का अष्टम भाव मे फल:-

ज्योतिष में अष्टम भाव आयु, मृत्यु, आकस्मिक घटना, पूर्व-जन्म के पाप कर्म, गुप्त-विद्या एवं आध्यात्म का होता है।  यदि जातक की जन्मकुंडली में सूर्य देव अष्टम भाव मेंं उपस्थित हो तो जातक विद्वानो का आदर करने वाला होता है। ऐसे जातक दूसरों पर अधिक विश्वास करते हैं जिसके कारण इसको नुकसान उठाना पड़ सकता है।   जातक के नौकर विश्वस्थ नहीं होते हैं जिससे घर की गुप्त बाते घर के बाहर चली जाती है। जातक के जीवनसाथी के वाणी मे अहम का भाव हो सकता है। वह व्यक्ति का अपने ससुराल वालों से किसी बात को लेकर मतभेद हो सकता है।

सूर्य का अष्टम भाव मे होना दर्शाता है की जातक को आग से नुकसान हो सकता है ऐसे मे जातक को ज्वानलशील पदार्थों ,पटाखों आदि से दूर रहना चाहिए। अष्टम भाव का सूर्या जाता को रीड की हड्डी या हार्ट की समस्या दे सकता है। जातक मे संभोग करने की क्षमता अधिक होने से बहुत ज्यादा संभोग करने के कारण जातक को गुप्त रोग हो सकता है। यदि अष्टमेश सूर्य कन्या राशि चंद्रमा के साथ हो विष अथवा किसी जहरीली चीज के सेवन के कारण जातक की मृत्यु हो सकती है। 

सूर्य का नवम भाव मे फल:-

ज्योतिष में नवम भाव भाग्य, धर्म, पिता, उच्च-शिक्षा एवं विदेश यात्रा का होता है। नवम भाव को पूरी कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव माना जाता है। यदि जातक की जन्मकुंडली मेंं सूर्यदेवता नवम भाव मेंं उपस्थित हो तो ऐसे जातक का झुकाव  अध्यात्मिकता की ओर होता है। वह व्यक्ति की पास उच्च कोटी का ज्ञान होता है। आमतौर पर जातक को लाबी यात्रा करने का अवसर मिलता रहता है। वह व्यक्ति अलग-अलग संस्कृति ,भाषा और लोगों को जानने मे रूचि रखता है। नवम भाव मे सूर्य पीड़ित होने पर जातक अपना धर्म परिवर्तन कर सकता है। जातक का अपने पिता जी ,छोटे भाई और अपने गुरु से संबंध बिगड़ सकते हैं। 

सूर्य का दशम भाव मे फल:-

दशम भाव को कर्म का भाव माना जाता हैं। ज्योतिष में दशम भाव कर्म, राज्य, नेतृत्व क्षमता, उत्तरदायित्व एवं प्रसिद्धि का होता है। यदि सूर्य जातक के जन्मकुंडली के  दशम भाव में प्रबल रूप से स्थित हो तो जातक राजनीतिक ,मैनेजिंग डाइरेक्टर ,मैनेजर बन सकता है। वह व्यक्ति किसी सरकारी सेवा मे भी हो सकता है।चतुर्थ भाव का सूर्य पीड़ित होने पर जातक अपने कुटुंब और पेशेवर जीवन को लेकर चिंतित रह सकता है। ऐसे जातक सामाजिक प्रतिष्ठा ,अपने कैरियर को लेकर बहुत गंभीर होते हैं। जिन जातको के चतुर्थ भाव मे विद्यमान होता है ऐसे जातक दूसरों का लीडर बनना पसंद करते हैं न कि किसी को अपना लीडर बनाना।  

सूर्य का एकादश भाव मे फल:-

एकादश भाव को लाभ का भाव माना जाता हैं। ज्योतिष में एकादश भाव आय, लाभ, बड़े भाई-बहिन, मित्र एवं आभूषण का होता है। जातक की जन्मकुंडली में सूर्य एकादश भाव में विद्यामान हो तो ऐसे जातक के उच्च शिक्षा ,बिजनेस या जॉब करने का सपना पूरा होता है। एकादश भाव सूर्य के साथ शुभ स्थिति मे हो तो ऐसे जातक लोगो का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना पसंद करते हैं। ये जातक लोगो,दोस्तो और समाज मे  अच्छी कीर्ति प्राप्त करते हैं। ऐसे जातको के लिए लोगों का समूह और दोस्ती बहुत माने रखती है। ज्योतिष मे माना जाता है कि सूर्य का एकादश भाव मे होने से जातक धनवान ,बुद्धिमान ,सफल और दीर्घायु होता है। जातक मार्केटिंग, मैनेजमेंट ,एमएनसी अथवा सरकारी सेवा से अपनी आजीविका कमा सकता है। 

सूर्य का द्वादश भाव मे फल:-

ज्योतिष में द्वादश भाव व्यय, हानि, मोक्ष, विदेश प्रवास एवं गूढ़ विद्या का होता है।

यदि जातक के जन्मकुंडली के द्वादश भाव में सूर्य देव विराजमान हो तो यह जातक के भौतिक सुख की दृष्टि से अच्छा नहीं है लेकिन आध्यात्मिक उन्नति की दृष्टि से यह अच्छा है। द्वादश भाव का सूर्य जातक को अपने जीवन का मकसद जानने मे मदद करेगा तथा यह जातक के आध्यात्मिक जीवन को ऊचाइयों पर लेकर जाएगा। लेकिन यह आध्यात्मिकता तभी आएगी जब जातक अपने पारिवारिक जीवन से समझौता कर लेगा। इसके लिए जातक को अपने जीवनसाथी को तलाक भी देना पड़ सकता है। सूर्य का द्वादश भाव मे उपस्थिति जातक के लिए विदेश जाने अथवा वहाँ निवास करने का योग बनाता है। जिन जातको के द्वादश भाव मे सूर्य होता है उन्हे अपने पिता जी से कुछ मतभेद हो सकता है। सूर्य का द्वादश भाव मे होना दृष्टि और रूपये-पैसे के लिए शुभ नहीं हैं। 

सूर्य का कुंडली के बारह भावों में फल (निष्कर्ष)

सूर्य जन्मकुंडली के अलग-अलग भावों मे बैठकर अलग-अलग फल प्रदान करता है। जन्मकुंडली के बारह भावों मेंं , विभिन्न  भाव के अनुसार फल मिलता है। आपने जाना कि आपको इसका शुभ फल भी मिल सकता है और अशुभ फल भी मिल सकता है।