वैदिक ज्योतिष में ग्रहों के मन्त्र
वैदिक ज्योतिष में सूर्य का मंत्र
ये जगमगाते हुए हीरे के समान, चन्द्रमा और अग्निको प्रकाशित करनेवाले तेज तथा त्रिलोकीका अन्धकार दूर करनेवाले प्रकाशसे सम्पन्न है| सात घोड़ोंके एकचक्र रथपर आरूढ़ होकर सुमेरुकी प्रदक्षिणा करते हुए, प्रकाशके समुद्र भगवान् सूर्यका ध्यान करना चाहिये|
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इनके अधिदेवता शिव है और प्रत्यधिदेवता अग्नि| इस प्रकार ध्यान करके मानस पूजा और बाह्य पूजाके अनन्तर मन्त्रजप करना चाहिये| सूर्यके अनेक मन्त्रोंमेंसे एक मन्त्र है— ‘ॐ ह्रीं ह्रौं सूर्याय नमः |’
वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा का मंत्र
भगवान् चन्द्रमा अत्रिगोत्रिय हैं| यामुन देशके स्वामी है| इनका शरीर अमृतमय है| दो हाथ है—एकमें वरमुद्रा है, दूसरेमें गदा| दूध के समान श्वेत शरीरपर श्वेत वस्त्र माला और अनुलेपन धारण किये हुए हैं| मोतीका हार है|
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अपनी सुधामयी किरणोंसे तीनों लोकोंको सींच रहे हैं| दस घोड़ोंके त्रिचक्र रथपर आरूढ़ होकर सुमेरुकी प्रदक्षिणा कर रहे हैं| इनके अधिदेवता हैं उमादेवी और प्रत्यधिदेवता जल हैं| इनका मन्त्र है— ‘ॐ ऐं क्लीं सोमाय नमः |’
वैदिक ज्योतिष में मंगल का मंत्र
मंगल भारद्वाज गोत्रके क्षत्रिय हैं| ये अवन्तिके स्वामी है| इनका आकार अग्निके समान रक्तवर्ण है, इनका वाहन मेष है, रक्तवस्त्र और माला धारण किये हुए हैं| हाथोंमें शक्ति, वर, अभय और गदा धारण किये हुए हैं|
इनके अंग—अंगसे कान्तिकी धारा छलक रही है| मेषके रथपर सुमेरुको प्रदक्षिणा करते हुए अपने अधिदेवता स्कन्द और प्रत्यधिदेवता पृथिवीके साथ सूर्यके अभिमुख जा रहे हैं| मंगलका मन्त्र है— ‘ॐ हूं श्री मङ्गलाय नमः|
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वैदिक ज्योतिष में बुध का मंत्र
बुध अत्रिगोत्र एवं मगधदेशके स्वामी हैं| इनके शरीरका वर्ण पीला है| चार हाथों में ढाल, गदा, वर और खड्ग है| पीला वस्त्र धारण किये हुए हैं, बड़ी ही सौम्य मूर्ति है, सिंहपर सवार हैं| इनके अधिदेवता है नारायण और प्रत्यधिदेवता हैं विष्णु| इनका मन्त्र है— ‘ॐ ऐं श्रीं श्रीं बुधाय नमः|’
वैदिक ज्योतिष में गुरु का मंत्र
बृहस्पति अंगिरा गोत्रके ब्राह्मण हैं| सिन्धु देशके अधिपति हैं| इनका वर्ण पीत है| पीताम्बर धारण किये हुए हैं, कमलपर बैठे हैं| चार हाथोंमें रुद्राक्ष, वरमुद्रा, शिला और दण्ड धारण किये हुए हैं| इनके अधिदेवता ब्रह्मा हैं और प्रत्यधिदेवता इन्द्र| इनका मन्त्र है— ‘ॐ ह्रीं क्लीं हूँ बृहस्पतये नमः |
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वैदिक ज्योतिष में शुक्र का मंत्र
शुक्र भृगु गोत्रके ब्राह्मण हैं| भोजकट देशके अधिपति हैं| कमलपर बैठे हुए हैं| श्वेत वर्ण है, चार हाथोंमें रुद्राक्ष, वरमुद्रा, शिला और दण्ड है, श्वेत वस्त्र धारण किये हुए हैं| इनके अधिदेवता इन्द्र हैं और प्रत्यधिदेवता चन्द्रमा है| इनका मन्त्र है— ‘ॐ ह्रीं श्रीं शुक्राय नमः|’
वैदिक ज्योतिष में शनि का मंत्र
ये कश्यप गोत्रके शूद्र हैं| सौराष्ट्र प्रदेशके अधिपति हैं| इनका वर्ण कृष्ण है, ये कृष्ण वस्त्र धारण किये हुए हैं| चार हाथोंमें बाण, वर, शूल और धनुष हैं| इनका वाहन गृध है| इनके अधिदेवता यमराज और प्रत्यधिदेवता प्रजापति हैं| इनका मन्त्र है— ‘ॐ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः |’
वैदिक ज्योतिष में राहू का मंत्र
राहु पैठीनस गोत्रके शुद्र हैं| मलय देशके अधिपति हैं| इनका वर्ण कृष्ण है और वस्त्र भी कृष्ण ही है| इनका वाहन है सिंह| चार हाथोंमें खड्ग, वर, शूल और ढाल लिये हैं| इनके अधिदेवता काल हैं और प्रत्यधिदेवता सर्प हैं| इनका मन्त्र है— ‘ॐ ऐं ह्रीं राहवे नमः|’
वैदिक ज्योतिष में केतु का मंत्र
ये जैमिनी गोत्रके शूद्र हैं| कुशद्वीपके अधिपति हैं| इनका वर्ण धुएँ—सा है और वैसा ही वस्त्र भी धारण किये हुए हैं| मुख विकृत है, गीध वाहन है| दो हाथों में वरमुद्रा तथा गदा है| इनके अधिदेवता हैं चित्रगुप्त तथा प्रत्यधिदेवता है ब्रह्मा इनका मन्त्र है— ‘ॐ ह्रीं ऐं केतवे नमः |’
ये सभी ग्रह अपनी—अपनी गतिसे सूर्य की ओर बढ़ रहे हैं| सबका मुख सूर्यकी ओर है| पृथिवीके साथ सबका सम्बन्ध है| प्रत्येक शान्ति और पुष्टिकर्ममें इनकी आराधना होती है| पृथक्—पृथक् अरिष्टके अनुसार भी इनकी पूजा की जाती है| इनमेंसे किसी एकको प्रसन्न करके उनसे वांछित फल भी प्राप्त किया जा सकता है|
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जिस ग्रहका जो वर्ण है, उसी रंगकी वस्तुएँ प्राय: पूजामें लगायी जाती हैं| मन्त्रका जितना जप होता है, उसका दशांश हवन होता है| हवनमें भिन्न—भिन्न प्रकारकी समिधाएँ काममें लायी जाती हैं| सूर्यके लिये मदार (आक), चन्द्रमाके लिये पलाश, मंगलके लिये खैर, बुधके लिये चिचिड़ा (अपामार्ग), बृहस्पतिके लिये पीपल, शुक्रके लिये गूलर, शनैश्चरके लिये शमी और राहु—केतुके लिये दूर्वा एवं कुशका प्रयोग होता है|
इस प्रकार पूजा करनेसे ये ग्रह सन्तुष्ट हो जाते हैं और किसी प्रकारका अनिष्ट न करके सब प्रकारके इष्टसाधन करते हैं|
नवग्रह की दोष—शान्तिके लिये रत्न धारण किये जाते हैं—सूर्यके लिये माणिक्य, चन्द्रमाके लिये मोती, मंगलके लिये प्रवाल (मूँगा), बुधके लिये मरकतमणि (पन्ना), बृहस्पतिके लिये पुष्पराग, शुक्रके लिये हीरा, शनिके लिये नीलकान्तमणि, राहुके लिये गोमेद और केतुके लिये वैदूर्यमणि | इनके धारण करनेसे ग्रहोंके दोषकी शान्ति हो जाती है| *
जो लोग पुराणोंकी कथा सुनते हैं, इष्टदेवकी आराधना करते हैं, भगवान्के नामका जप करते हैं, तीर्थोंमें स्नान करते हैं, किसीको पीड़ा नहीं पहुँचाते हैं, सबका भला करते हैं, सदाचारकी मर्यादाका उल्लंघन नहीं करते तथा शुद्ध हृदयसे अपना जीवन व्यतीत करते हैं, उनपर अनिष्ट ग्रहोंका प्रभाव नहीं पड़ता|
उनको पीड़ा न पहुँचाकर वे उन्हें सुखी करते हैं| उस श्लोकका अन्तिम चरण यह है
नो कुर्वन्ति कदाचिदेव पुरुषस्यैवं ग्रहाः पीडनम् ||
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वैदिक ज्योतिष में नवग्रह पीढ़ाहर स्तोत्र
ग्रहोंके द्वारा उत्पन्न पीड़ाका निवारण करनेके लिये ब्रह्माण्डपुराणोक्त इस स्तोत्रका पाठ लाभदायक है, इसमें सूर्यादि नौ ग्रहोंसे क्रमशः एक—एक श्लोकके द्वारा पीड़ा दूर करनेकी प्रार्थना की गयी है
ग्रहाणामादिरादित्यो लोकरक्षणकारकः | विषमस्थानसम्भूतां पीडां हरतु मे रविः || 1 ||
रोहिणीशः सुधामूर्तिः सुधागात्रः सुधाशनः | विषमस्थानसम्भूतां पीडां हरतु मे विधुः || 2 ||
भूमिपुत्रो महातेजा जगतां भयकृत् सदा | वृष्टिकृद् वृष्टिहर्ता च पीडां हरतु मे कुजः || 3 ||
उत्पातरूपो जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युतिः | सूर्यप्रियकरो विद्वान् पीडां हरतु मे बुधः || 4 ||
देवमन्त्री विशालाक्षः सदा लोकहिते रतः | अनेकशिष्यसम्पूर्णः पीडां हरतु मे गुरुः || 5 ||
दैत्यमन्त्री गुरुस्तेषां प्राणदश्च महामतिः | प्रभुः ताराग्रहाणां च पीडां हरतु मे भृगुः || 6||
सूर्यपुत्रो दीर्घदेहा विशालाक्षः शिवप्रियः | मन्दचारः प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनिः || 7 ||
अनेकरूपवर्णैश्च शतशोऽथ सहस्त्रदृक् | उत्पातरूपो जगतां पीडां हरतु मे तमः || 8 ||
महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबलः | अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च पीडां हरतु मे शिखी || 9 ||
ग्रहोंमें प्रथम परिगणित, अदितिके पुत्र तथा विश्वकी रक्षा करनेवाले भगवान् सूर्य विषमस्थानजनित मेरी पीड़ाका हरण करें || 1 || दक्षकन्या नक्षत्ररूपा देवी रोहिणीके स्वामी, अमृतमय स्वरूपवाले, अमृतरूपी शरीरवाले तथा अमृतका पान करानेवाले चन्द्रदेव विषमस्थानजनित मेरी पीड़ाको दूर करें || 2 || भूमिके पुत्र, महान् तेजस्वी, जगत्को भय प्रदान करनेवाले, वृष्टि करनेवाले तथा वृष्टिका हरण करनेवाले मंगल [ग्रहजन्य] मेरी पीड़ाका हरण करें || 3 || जगत्में उत्पात करनेवाले, महान् द्युतिसे सम्पन्न, सूर्यका प्रिय करनेवाले, विद्वान् तथा चन्द्रमाके पुत्र बुध मेरी पीड़ाका निवारण करें || 4 || सर्वदा लोककल्याणमें निरत रहनेवाले, देवताओंके मन्त्री, विशाल नेत्रोंवाले तथा अनेक शिष्योंसे युक्त बृहस्पति मेरी पीड़ाको दूर करें || 5 || दैत्योंके मन्त्री और गुरु तथा उन्हें जीवनदान देनेवाले, ताराग्रहोंके स्वामी, महान् बुद्धिसम्पन्न शुक्र मेरी पीड़ाको दूर करें || 6 || सूर्यके पुत्र, दीर्घ देहवाले, विशाल नेत्रोंवाले, मन्दगतिसे चलनेवाले, भगवान् शिवके प्रिय तथा प्रसन्नात्मा शनि मेरी पीड़ाको दूर करें || 7 || विविध रूप तथा वर्णवाले, सैकड़ों तथा हजारों आँखोंवाले, जगत्के लिये उत्पातस्वरूप, तमोमय राहु मेरी पीड़ाका हरण करें || 8 || महान् शिरा (नाड़ी) से सम्पन्न, विशाल मुखवाले, बड़े दातोंवाले, महान् बली, बिना शरीरवाले तथा ऊपरकी ओर केशवाले शिखास्वरूप केतु मेरी पीड़ाका हरण करें || 9 ||
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