वर्षा कब होगी: स्मरण कीजिये अतीतके उन तपः पूत प्राचीन खगोलवेत्ता ऋषि-मुनियोंको, जिनके पास आजकी तरह न तो विकसित वेधशालाएँ थीं और न ये आधुनिकतम सूक्ष्म परिणाम देनेवाले वैज्ञानिक उपकरण ।

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फिर भी अपने अनुभव तथा अतीन्द्रिय ज्ञान और छोटे-मोटे उपकरणों (बाँस-नलिकाओं आदि) – के सहारे वे आकाशीय ग्रह-नक्षत्रों आदिका अध्ययन करके मौसमका वर्षोंपूर्व पूर्वानुमान कर लेते थे।

शनैः शनैः इस विज्ञानने गति प्राप्त की और प्रारम्भ हुआ नयी खोजोंका युग। राजा – महाराजाओंके संरक्षणमें निर्मित हुई नयी-नयी वेध शालाएँ। सम्राट् विक्रमादित्यके समयमें तो यह विज्ञान चरमोत्कर्षपर रहा। सवाई महाराज जयसिंहद्वारा निर्मित दिल्लीमें जन्तर-मन्तर और जयपुर, उज्जैन तथा वाराणसीकी वेधशालाएँ आज भी भारतवर्षके स्वर्णिम अतीतका गुणगान कर रही हैं।

गर्ग, पराशर आदिके समय तो यह विज्ञान गुरु-शिष्य-परम्परामें रहा। कालान्तरमें अनेक ज्योतिर्विदोंद्वारा उसे सर्वसुलभ कराया गया।

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यद्यपि वैदिक-संहिताओं, पुराणों, स्मृतियोंमें इस विज्ञानका उल्लेख मिलता है, फिर भी आचार्य वराहमिहिरका इसमें विशेष योगदान रहा है।

वर्षा कब होगी के बारे में उन्होंने अपने ग्रन्थ बृहत् – संहितामें इस विषयपर विस्तारसे प्रकाश डाला है। इसके अतिरिक्त संहिताग्रन्थोंमें ग्रहण, संक्रमण, ग्रह-युद्ध, अतिचार, मन्दचार, वक्रत्व, मार्गत्व आदि विभिन्न ग्रह-गतियोंका मौसमपर क्या प्रभाव पड़ता है ? विस्तारसे बतलाया गया है।

वर्षा कब होगी  के विषय में इन संहिताग्रन्थों में तो ऐसे मन्त्रोंका भी विधान है, जिनके द्वारा यथेच्छ रूपसे वर्षाका आयोजन और निवारण किया जा सकता है।

ऋतु – चक्रका प्रवर्तक सूर्य होता है। सूर्य जब आर्द्रा नक्षत्र (सौर-गणना) – में प्रवेश करता है, तभीसे औपचारिक रूपसे वर्षा ऋतुका प्रारम्भ माना जाता है। भारतीय – पंचांगकार प्रतिवर्ष आर्द्रा- प्रवेश – कुण्डली बनाकर भावी वर्षाकी भविष्यवाणी करते हैं। आर्द्रासे 9 नक्षत्रपर्यन्त वर्षाका समय माना जाता है।

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वर्षा कब होगी वर्षा कितनी होगी  जानने के लिए  ग्रहोंके गोचरसे बननेवाले कुछ योग– नारदपुराणमें त्रिस्कन्ध ज्योतिषका विशद वर्णन उपलब्ध है। वहाँ वर्षाविषयक अनेक योग दिये गये हैं। यथा

  1. वर्षाकालमें आर्द्रासे स्वातीतक सूर्यके विचरण करनेपर चन्द्रमा यदि शुक्रसे सप्तम स्थान अथवा शनिसे पंचम नवम या सप्तम स्थानपर हो तथा उसपर शुभ ग्रहकी दृष्टि हो तो उस समय अवश्य वर्षा होती है।
  2. यदि बुध और शुक्र एक ही राशिमें समीपवर्ती हों तो तत्काल वर्षा होती है, किन्तु इन दोनोंके बीच यदि सूर्य आ जाय तो वर्षा नहीं होगी।
  3. यदि मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा नक्षत्रों में सूर्यके विचरणके समय शुक्र पूर्व दिशामें उदित हो तथा स्वाती, विशाखा, अनुराधा नक्षत्रोंमें सूर्यके विचरणके समय शुक्र पश्चिममें उदय हो तो निश्चय वर्षा होती है। इससे विपरीत होनेपर वर्षाका अभाव होता है।
  4. दक्षिण गोल (तुलासे मीनतक) के सूर्यके रहते यदि शुक्र सूर्यसे वाम भागमें पड़े तो अवश्य वर्षा होती है।
  5. यदि सूर्यके पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में प्रवेशके समय आकाश मेघोंसे आच्छन्न हो तो आर्द्रासे मूलपर्यन्त प्रतिदिन वर्षा होती है।
  6. यदि रेवतीमें सूर्यके प्रवेश करते समय वर्षा हो जाय तो उससे दस नक्षत्र (रेवतीसे आश्लेषा)-तक वर्षा नहीं होती।
  7. चन्द्रमण्डलमें परिवेष (घेरा) हो और उत्तर दिशामें बिजली चमके या मेढकोंका शब्द सुनायी पड़े तो निश्चय ही वर्षा होती है।

वर्षा कब होगी वर्षा कितनी होगी : मेघों का गर्भधारण

यद्यपि मेघोंके गर्भधारणके समयमें विद्वानों में मतैक्य नहीं है तथापि गर्गाचार्यके इस मतको अधिकांश विद्वानोंने मान्यता दी है- मार्गशीर्ष शुक्ल पक्षमें जिस दिन चन्द्रमा पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में प्रवेश करता है, उस दिन मेघ गर्भधारण करते हैं। उससे 195 दिन पश्चात् प्रसव होता है, यदि बीचमें गर्भपात (वर्षा) न हो।

विद्युत्के वर्णसे भी वर्षा आदिका अनुमान इस प्रकार किया जाता है-

वाताय कपिला विद्युदातपायाति लोहिता।
पीता वर्षाय विज्ञेया दुर्भिक्षाय सिता भवेत् ॥

कपिला (भूरी) वर्णवाली बिजली वायु लानेवाली, अत्यन्त लोहित (लाल) वर्णवाली धूप निकालनेवाली, पीतवर्ण वृष्टि लानेवाली और सिता (श्वेत) दुर्भिक्षकी सूचना देनेवाली होती है।

संहिता ग्रन्थों में वर्षाका अनुमान कई प्रकारसे किया गया है, जिनमें कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं-

  1. नक्षत्रोंकी स्त्री-पुरुष संज्ञाद्वारा।
  2. सूर्य-चन्द्रनाड़ीद्वारा।
  3. नक्षत्र-वाहनद्वारा
  4. त्रिनाड़ीद्वारा।
  5. सप्त नाड़ीद्वारा।

वर्षा कब होगी के बारे में नरपति नामक ज्योतिषीने 12वीं शताब्दीमें नरपतिजयचर्या नामक ग्रन्थमें वर्षाके विभिन्न योगोंका वर्णन किया है। सूर्यके आर्द्रा नक्षत्रमें प्रवेशके बाद गोचरवश चन्द्रमासे इसका उपयोग किया जाता है। इसमें 28 नक्षत्रोंसे वर्षाका अनुमान किया जाता है।

क्रम संख्या

नाड़ी

स्वामी ग्रह

नक्षत्र

फल

1

चण्डा

शनि

कृत्तिका, विशाखा, अनुराधा, भरणी

प्रचण्ड वायु

2

वायु

सूर्य

रोहिणी, स्वाती, ज्येष्ठा, अश्विनी

केवल तेज हवा

3

दहना

मंगल

मृगशिरा, चित्रा, मूल, रेवती

तापमान में वृद्धि

4

सौम्य

गुरु

आर्द्रा, हस्त, पूर्वाषाढा, उ०भा०

बादल

5

नीर

शुक्र

पुनर्वसु, उ० फा०, उत्तराषाढा, पू०भा०

जल से भरे मेघ

6

जल

बुध

पुष्य, पू०फा०, अभिजित, शतभिषा

सामान्य वर्षा

7

अमृता

चन्द्र

श्लेषा, मघा, श्रवण, धनिष्ठा

भारी वर्षा

वर्षा कब होगी तथा अन्य मौसम-सम्बन्धी जानकारी के लिये उपर्युक्त विधि सर्वाधिक उपयोगी मानी जाती है क्योंकि इसमें वायु तापमान, वर्षाकी जानकारी एक साथ की जा सकती है। प्रत्येक नाड़ी अपने नामके अनुसार फल देनेवाली होती है। इसे देखनेके कुछ सूत्र इस प्रकार हैं-

  1. यदि एक भी ग्रह अपनी नाड़ीमें हो तो फल देनेवाला होता है। केवल मंगल जिस नाड़ीमें होता है, उसीके अनुसार फल देता है।
  2. यदि कई ग्रह विभिन्न नाड़ियोंमें हों तो उस नाड़ीके अनुसार फल देते हैं।
  3. यदि जल नाड़ीमें चन्द्र हो तो वर्षा होती है। अमृता नाड़ीमें अच्छी वर्षा होती है।
  4. याम्य नाड़ी (चण्डा, वायु, दहना) में क्रूर ग्रहोंका योग अनावृष्टिका सूचक है।
  5. यदि एक नाड़ीमें चन्द्र, मंगल और गुरु हों तो भूमि जलमय हो जाती है।
  6. यदि सूर्य, चन्द्र, मंगल एक नाड़ीमें हों तो अच्छी वर्षा होती है।
  7. शुक्र, बुध, चन्द्र और गुरु एक नाड़ीमें हों तो अतिवृष्टि होती है।

भद्रबाहुसंहितामें सूर्य-परिवेष तथा चन्द्र परिवेषका प्रत्येक नक्षत्र में अलग-अलग वर्षापर पड़नेवाले प्रभावका विस्तृत वर्णन मिलता है। प्रत्येक नक्षत्रमें प्रथम वर्षाका प्रभाव तथा माप भी बताया गया है। अर्थात् किस नक्षत्र में कितने से०मी० वर्षा होगी, इसकी भविष्यवाणीकी जा सकती है।

मेघोंके प्रकार, वर्ण तथा उद्गम-दिशासे भी वर्षाका अनुमान किया जा सकता है-

कृष्णानि पीतताम्राणि श्वेतानि च यदा भवेत् ।
तयोनिदेशमाश्रित्य वर्षदानि शिवानि च ॥

(भo वाo संo 6।4)

यदि बादल काले, पीले, ताम्र और श्वेत वर्णके हों तो अच्छी वर्षाके परिचायक हैं।

इसी प्रकार मेघोंके उद्गमके विषय में कहा गया है-

शुक्लानि स्निग्धवर्णानि विद्युच्चित्रघनानि च ।
सद्यो वर्षा समाख्यान्ति तान्यप्राणि न संशयः ॥

(भo वाo संo 6।6)

यदि मेघ श्वेत वर्णके हों, स्निग्ध हों तथा विद्युत् सदृश कपोतवर्णी हों तो तत्काल वर्षा देनेवाले होते हैं।

दिशाओंके आधारपर मेघोंसे वर्षाका योग इस प्रकार वर्णित है-

उदीच्यान्यच पूर्वाणि वर्षदानि शिवानि च।
दक्षिणाण्यपराणि स्युः समूत्राणि न संशयः ॥

(भoवाoसंo 6 । 2)

उत्तर तथा पूर्व दिशासे उठनेवाले बादल सदा वर्षा देनेवाले होते हैं, किंतु दक्षिण तथा पश्चिम दिशाओंके बादल अल्प वर्षाकारक होते हैं।

कुछ अन्य वर्षांके योग- आचार्य वराहमिहिरका यह श्लोक वर्षके लिये विशेष रूपसे प्रसिद्ध है-

प्रायो ग्रहाणामुदयास्तकाले समागमे मण्डलसङ्क्रमे च ।
पक्षक्षये तीक्ष्णकरायनान्ते वृष्टिगतेऽकें नियमेन चार्द्राम् ।।

(बृहत्संहिता 28।20)

  1. जब कोई ग्रह उदय अथवा अस्त हो रहा हो।
  2. दो ग्रहोंकी युति होनेपर
  3. चन्द्रमाके किसी मण्डलके प्रथम नक्षत्रमें प्रवेश करनेपर।
  4. पक्षक्षय अर्थात् अमावस्या और पूर्णिमाके समय।
  5. सायन सूर्यके 21 जूनको दक्षिण अयनमें और 22 दिसम्बरको उत्तर अयनमें प्रवेशके समय
  6. सूर्यके आर्द्रा नक्षत्र (21 / 22 जून) प्रवेशके समय।

इसके अतिरिक्त कुछ योग और भी हैं, जो वर्षामें सहायक हैं

  1. यदि शुक्रके उदय अथवा अस्तके समय आगे बुध हो ।
  2. यदि शुक्र और चन्द्र 180 अंशकी दूरी पर हों।
  3. यदि गुरु अथवा चन्द्रमासे शुक्र सप्तम स्थानपर हो।
  4. यदि चन्द्रमा और शुक्र एक ही राशिपर हों।
  5. शनिसे 5, 7, 9वें भावमें चन्द्रमाके आनेपर वर्षाकी सम्भावना हो जाती है।
  6. बुध-शुक्र, बुध-गुरु, गुरु-शुक्रकी युति वर्षाकारक होती है।
  7. जब एक ही राशिमें चार अथवा पाँच ग्रह एक साथ हों तो वर्षा अथवा उत्पातके सूचक हैं।

अतिशीघ्र वर्षाके लक्षण – बृहत्संहिताके 28वें

अध्यायमें 22 श्लोकोंमें अतिशीघ्र वर्षाके लक्षण दिये गये हैं। ये लक्षण वर्षाकालके ही हैं। अन्य ऋतुओंके लिये नहीं। ‘तदहनि कुरुतेऽम्भस्तोयकाले’ (बृहत्संहिता 28 । 3) अर्थात् उसी दिन 24 घण्टेके अन्दर वर्षाकालमें ही प्रभावी होंगे, जिनमें कुछ इस प्रकार हैं-

  1. जल स्वादहीन हो जाय । 2 नमक पसीजने लगे। 3. आकाश कौओंके अण्डोंसदृश हो जाय । 4. दिशाएँ गौओंके नेत्र समान हो जायँ 5. उदय होता हुआ सूर्य अत्यधिक तेजके कारण देखा न जा सके। 6. चींटियाँ अण्डे लेकर भागने लगें। 7. मेढक बोलने लगें । 8. मछलियाँ जलसे बाहर उछलने लगें। 9. चिड़ियाँ धूलमें स्नान करने लगें । 10. पपीहा रात्रिमें बोले। 11. मयूर सामूहिक रूपसे बोलें। 12. चन्द्रके आसपास वलय हो । 13. बिल्ली नाखूनसे धरती कुरेदे। 14. कुत्ते घरकी छतपर चढ़कर आकाशकी ओर देखें। 15. तीतरके पंखोंके समान मेघोंका वर्ण हो ।

वर्षाप्रतिबन्धक योग-

  1. यदि सूर्यके आगे मंगल हो तो वर्षा नहीं होती है।
  2. बुध और शुक्रके साथ सूर्य हो तो भयंकर गर्मी पड़ती है।
  3. मंगलके मार्गी होनेके समय सूर्य राशिपरिवर्तन करे तो तुषारापात होता है।
  4. जब मंगल स्वाती, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, आर्द्रा, रोहिणी, उoफाo नक्षत्रमें हो तो वर्षा नहीं होगी।
  5. यदि शुक्रके आगे मंगल, बुध, शनि हों तो तेज हवा चलती है, वर्षा नहीं होती।
  6. यदि माघ मासमें पाला न पड़े, फाल्गुनमें पवन प्रवाहित न हो, चैत्रमें बादल न हों, वैशाखमें उपलवृष्टि न हो, ज्येष्ठमें सूर्य न तपे अर्थात् अधिक गर्मी न पड़े तो वर्षा ऋतुमें अल्प वर्षा होती है । (मयूरचित्रक)

देश, काल, परिस्थितिके अनुसार इनमें शोध करके परिवर्तन तथा परिवर्धनकी आवश्यकता है; क्योंकि जब ये योग संकलित किये गये थे, तबसे अब भौगोलिक तथा खगोलीय परिस्थितियाँ काफी बदल गयी हैं।

अतः वर्षा कब होगी तथा वर्षा कितनी होगी के बारे में काफी जानकारी यहाँ आपको दी गयी है किन्तु अपने अनुभव की कसौटी पर प्रत्येक ज्योतिषी को इसको परख कर देखना चाहिए |