पंचक शांति पूजन विधि- पंचक क्या है

धनिष्ठाका उत्तरार्ध, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद तथा रेवती-इन पाँच नक्षत्रोंको पंचक कहते हैं। पंचकमें निषिद्ध कर्मोंको निरूपित करते हुए बताया गया है

धनिष्ठापञ्चके त्याज्यस्तृणकाष्ठादिसङ्ग्रहः । त्याज्या दक्षिणदिग्यात्रा गृहाणां छादनं तथा ॥

(शीघ्रबोध 2 । 77)

अर्थात् पंचकमें तृण-काष्ठादिका संचय, दक्षिण दिशाकी यात्रा, गृह छाना, प्रेतदाह तथा शय्याका बीनना – ये कार्य निषिद्ध हैं

इसी बातको ज्योतिर्विदाभरण (2 । 19) में इस प्रकार बताया गया है।

आयु निर्णय ज्योतिष:https://askkpastro.com/%e0%a4%86%e0%a4%af%e0%a5%81-%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a3%e0%a4%af-%e0%a4%9c%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%b7/

प्रेतं नयेत्पितृवनं न चौकसो
न गोपनं दारुतृणौघसङ्ग्रहः ।
यानं यमाशां ग्रथनं न रज्जुभि-
र्भपञ्चकेऽस्मिन्विदधीत शायनम् ॥

अर्थात् धनिष्ठा आदि पाँच नक्षत्रोंमें (मृतशरीर, शव) – को श्मशान नहीं ले जाना चाहिये। गृहका छादन, लकड़ीका संग्रह, दक्षिण दिशामें यात्रा तथा रस्सीसे चारपाईकी बुनाई नहीं करनी चाहिये।

मुहूर्तमार्तण्ड (8 । 4)-में कहा गया है-

‘प्रेतज्वालनशय्यकावितनने स्तम्भोच्छ्रयं याम्यदिक्
यानं काष्ठतृणोच्चयं परिहरेत्कुम्भद्वयस्थे विधौ ।’

चन्द्रमा कुम्भ और मीनमें हो तो अर्थात् धनिष्ठासे रेवतीतक 5 नक्षत्रोंमें शवका जलाना, शय्या (खाट, चटाई, पलंग आदि) का बीनना, घरमें स्तम्भ आदि गाड़ना, दक्षिण दिशाकी यात्रा, लकड़ी, जलावन, तृण आदिका संग्रह सर्वथा त्याज्य है।

इन पाँच नक्षत्रोंमें मृत्यु होनेपर दोषनिवारणार्थ शान्ति करनेका विधान है, जिसे पंचकशान्ति कहा जाता है। निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धुके आधारपर विशेष बात यह बतायी गयी है कि यदि मृत्यु पंचकके पूर्व हो गयी हो और दाह पंचकमें होना हो तो पुत्तलदाहका विधान (पुत्तलदाह) करे, शान्तिकर्म करनेकी आवश्यकता नहीं रहती। इसके विपरीत यदि पंचकमें मृत्यु हो गयी हो और दाह पंचकके बाद हुआ हो तो पंचकशान्तिकर्म करना चाहिये ।

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यदि मृत्यु भी पंचकमें हुई हो और दाह -कर्म भी पंचकमें हुआ हो तो पुत्तलदाह तथा शान्ति- दोनों कर्म करे। पंचकशान्ति इसलिये भी आवश्यक है कि इसका प्रभाव पारिवारिक लोगोंपर भी पड़ता है। पंचकशान्ति सूतकान्तमें बारहवें दिन, तेरहवें दिन या धनिष्ठा आदि पाँच नक्षत्रोंमें करनी चाहिये। पंचकमें मरण होनेपर पुत्तलदाहका विधान है, जो इस प्रकार है-

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यदि कोई पंचकमें मर जाता है तो वह वंशजोंको भी मार डालता है। त्रिपुष्कर और भरणी नक्षत्रसे भी यही अनर्थ प्राप्त होता है, ऐसी स्थितिमें अनिष्टके निवारणके लिये कुशोंकी पाँच प्रतिमा (पुत्तल) बनाकर सूत्रसे वेष्टितकर जौके आटेकी पीठीसे उसका लेपनकर उन प्रतिमाओंके साथ शवका दाह करे। पुत्तलोंके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं- प्रेतवाह, प्रेतसखा, प्रेतप, प्रेतभूमिप तथा प्रेतहर्ता |

पुत्तलदाहका संकल्प- अद्य शर्मा / वर्मा/ गुप्तोऽहम् गोत्रस्य (गोत्रायाः) प्रेतस्य (प्रेतायाः ) धनिष्ठादिपञ्चकजनितवंशानिष्टपरि हारार्थं पञ्चकविधिं करिष्ये । – ऐसा संकल्पकर पाँचों पुतलोंका निम्न रीतिसे पूजन करे

प्रेतवाहाय नमः, प्रेतसखाय नमः, प्रेतपाय नमः, प्रेतभूमिपाय नमः, प्रेतहर्त्रे नमः । इमानि गन्धाक्षतपुष्पधूपदीपादीनि वस्तूनि युष्मभ्यं मया दीयन्ते युष्माकमुपतिष्ठन्ताम् ।

—ऐसा बोलकर पाँचों प्रेतोंको गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप तथा दीप आदि वस्तुएँ प्रदानकर उनका पूजन करे।

पूजनके बाद प्रेतवाह नामक पहले पुतलेको शवके सिरपर, दूसरेको नेत्रोंपर, तीसरेको बायीं कोखपर, चौथेको नाभिपर और पाँचवेंको पैरोंपर रखकर ऊपर लिखे नाममन्त्रोंसे क्रमपूर्वक पाँचोंपर घीकी आहुति दे। जैसे

( 1 ) प्रेतवाहाय स्वाहा, (2) प्रेतसखाय स्वाहा, ( 3 ) प्रेतपाय स्वाहा, (4) प्रेतभूमिपाय स्वाहा और (5) प्रेतहर्त्रे स्वाहा ।

इसके बाद शवका दाह करे ।

ज्योतिष में शकुन अपशकुन:https://askkpastro.com/%e0%a4%9c%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%b7-%e0%a4%b6%e0%a4%be%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%b6%e0%a4%95%e0%a5%81%e0%a4%a8/

नवग्रह- कवच

नीचे ‘यामलतन्त्र’ का एक ‘नवग्रह कवच’ दिया जा रहा है। इसके श्रद्धापूर्वक पाठ करने तथा ताबीजमें रखकर भुजामें धारण करनेसे बहुत लाभ होता है

ॐ शिरो मे पातु मार्तण्डः कपालं रोहिणीपतिः । मुखमङ्गारकः पातु कण्ठं च शशिनन्दनः
बुद्धिं जीवः सदा पातु हृदयं भृगुनन्दनः । जठरं च शनिः पातु जिह्वां मे दितिनन्दनः ॥
पादौ केतुः सदा पातु वारा: सर्वाङ्गमेव च । तिथयोऽष्टौ दिशः पान्तु नक्षत्राणि वपुः सदा॥
अंसौ राशिः सदा पातु योगश्च स्थैर्यमेव च । सुचिरायुः सुखी पुत्री युद्धे च विजयी भवेत् ॥
रोगात्प्रमुच्यते रोगी बन्धो मुच्येत बन्धनात् । श्रियं च लभते नित्यं रिष्टिस्तस्य न जायते।
यः करे धारयेन्नित्यं तस्य रिष्टिर्न जायते ॥
पठनात् कवचस्यास्य सर्वपापात् प्रमुच्यते । मृतवत्सा च या नारी काकवन्ध्या च या भवेत् । जीववत्सा पुत्रवती भवत्येव न संशयः ॥
एतां रक्षां पठेद् यस्तु अङ्गं स्पृष्ट्वापि वा पठेत् ॥