जन्म कुंडली कैसे देखें:कुंडली के १२ घर 

जन्म कुंडली का  प्रथम भाव

जन्म कुण्डली का पहला भाव ‘जन्मभाव’ “लग्न” कहलाता है। जन्मसे जो-जो वस्तुएँ मनुष्यको प्राप्त होती हैं, उनका विचार प्रथम भावसे किया जाता है, जैसे- जाति, रंग, रूप, कद, जन्म-स्थान, जन्म-समयकी बातें आदि।

प्रथम भावसे जातककी हैसियत, मकानकी चारदीवारी, जमीनके बारेमें ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। प्रथम भावसे व्यक्तिकी परोपकारी प्रवृत्ति एवं उसके शील स्वभावके बारेमें जाना जा सकता है। इन बातोंकी जानकारीमें नौवाँ भाव भी सहायक है।

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प्रथम भाव व्यक्तिकी आयुके पहले भागको दर्शाता है। प्रथम भावसे प्रारब्धका फल, जो इस जन्ममें भोगना है, पता चलता है। इसी प्रकार प्रथम भाव ‘पूर्वदिशा’ का भी कारक है अर्थात् यदि जातकका सूर्य कुण्डलीमें अच्छा है तो उसके लिये पूर्वदिशाका मकान शुभ होगा।

प्रथम भावका कारक ग्रह ‘सूर्य’ है। सूर्य यहाँ उच्च फल तथा शनि नीच फल देता है। कालपुरुषकी कुण्डलीके अनुसार प्रथम भावका स्वामी ग्रह ‘मंगल’ है, अतः मंगल भी यहाँ शुभ होता है।

प्रथम भावका कारक सूर्य होनेके कारण सूर्य कुण्डली में किस अवस्थामें है-यह देखकर भी प्रथम भावके बारेमें बहुत कुछ पता चलता है। प्रथम भाव आजीविकाको भी दर्शाता है अर्थात् धनकी स्थिति भी बताता है, वह धन जो जातक अपने परिश्रमसे अर्जित करता है।

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प्रथम भाव (लग्न)

कुदरती जन्म कुंडली कुंडली में प्रथम भाव में मेष राशि आती हैं इस राशि का स्वामी मंगल हैं । इस भाव पर मेष राशि और मंगल ग्रह दोनों का प्रभाव पाया जाता है ।

शरीर के हिस्से – मस्तिष्क, सर और पूरा शरीर

कार्य – यह भाव सर से संबंधित हैं, अतः मस्तिष्क के जरिये होनेवाले सभी कार्य इसी भाव से देखें जाते हैं । मस्तीष्क का पहला काम हैं सोचना, अतः सोचने का तरीका, स्वभाव, सोच का स्तर इसी भाव से देखा जाता हैं । सोच द्वारा ही बर्ताव, पसंद-नापसंद, मन का झुकाव और आदते बनती हैं, अतः इन के लिए भी लग्न भाव को देखा जाता हैं । साधारणत: पूरा शरीर भी इसी भाव के अधिकार में हैं, अतः बल, शक्ति, धीरज, हौसला, नेतृत्त्व, प्रतिरोध शक्ति, प्रतिरोध का तरीका, स्वास्थ्य, रोगप्रतिरोध, आयु, रूवाब, अधिकार, साधारण सफलता और असफलता के लिए इस स्थान को देखा जाता है।

जातक से संबंधित लोगों को मिलने वाला फल – किसी इन्सान की कुंडली द्वारा जातक से संबंधित लोगों का भविष्य भी बताया जा सकता है । किंतु एक ही कुंडली द्वारा उस इन्सान से संबंधित सभी लोगों का भविष्य कथन ना करे, क्योंकि हर शास्त्र की अपनी मर्यादा होती हैं। साथ ही हमारी सोच भी एक हद से आगे नहीं जा सकती । जब बेहद जरूरी हो, तभी यह तरीका अपनाए । हर इन्सान की जन्म कुंडली अथवा प्रश्नकुंडली देखकर भविष्य बताना, सबसे बेहतर होगा ।

कुंडली के विशिष्ट भाव द्वारा जातक से संबंधित लोगों के बारे में बताया जाता है, उस भाव को उस संबंधित इन्सान का लग्न स्थान मानकर फलादेश बताए ।

लग्न भाव से स्वयं जातक को देखा जाता हैं. द्वितीय भाव से पूरा परिवार, तृतीय भाव से छोटे भाई बहन और पड़ोसी देखें जाते हैं, अतः तृतीय स्थान को छोटे भाई-बहन और पड़ोसी का लग्न स्थान मान ले । इसी प्रकार चतुर्थ स्थान माँ का लग्न, पंचम स्थान संतान का लग्न, षष्ठ स्थान नौकर और मामा का लग्न, सप्तम पति अथवा पत्नी और प्रतिस्पर्धी का लग्न, अष्टम स्थान ससुराल का परिवार, नवम स्थान पिता, गुरू या अनजान इन्सान का लग्न, दशम स्थान अधिकारी या शासक का लग्न और लाभस्थान बड़े भाई और दोस्त का लग्नस्थान मान ले ।

इस प्रकार संबंधित लोगों के लग्न भाव तय कर लिए जाये तो जातक का लग्न उस इन्सान का कौनसा भाव हैं, यह देखकर जातक के लग्न भाव से संबंधित लोगों को मिलनेवाले फल बताए जा सकते हैं ।जातक का लग्न भाव छोटे भाई-बहन के लग्न स्थान से लाभ स्थान होगा, अतः छोटे भाई वहन और पड़ोसी के सारे फायदे, अधिक आमदनी और प्रगति इस भाव से देखी जाती हैं। माता के लग्न स्थान से अर्थात् चतुर्थ स्थान से दे भाव, दशम भाव होगा, अतः माता की प्रसिद्धि प्रमोशन, कारोबार अथवा राजनीति में प्रतिष्ठा जातक के लग्न भाव से देखी जाती हैं। इसी प्रकार संतान की उच्च शिक्षा, विदेशगमन, सफर और नौकरी या कारोबार में बदलाव, मामा अथवा नौकर के साथ होनेवाली दुर्घटनायें, ऑपरेशन, मन अथवा शरीर से जुड़ी तकलीफें सजा और चोरी पिता, गुरु अथवा अनजाने इन्सान की नौकरी में बदलाव, प्यार, स्वास्थ्य, रेस, सट्टा आदि के प्रति आकर्षण, साथ ही कला, वड़े भाई बहन अथवा दोस्तों की नज़दीकी यात्रा, शिक्षा में आनेवाली तकलीफें, घर, बाहन आदि में बदलाव जैसी बातों की जानकारी जातक के लग्न भाव द्वारा प्राप्त हो सकती हैं।

विरोधी फल – लग्नस्थान धन और परिवार स्थान का व्ययस्थान होने के कारण परिवारिक धन और परिवार स्थान का व्यवस्थान होने के कारण पारिवारिक समस्या तथा धन से जुड़ी समस्या आती हैं, धन कमाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती हैं, परिवार बढ़ नहीं पाते, दुष्मनी पैदा होती हैं।

देश-प्रदेश – क्षेत्र से संबंधित कुंडलीयों में देश-प्रदेश की जनसंख्या, लोगों का बर्ताव, सोच संस्कृति आदि के लिए लग्न भाव को देखा जाता हैं ।

घर में स्थान – दरवाजा |

जन्म कुंडली का  द्वितीय भाव

प्रथम भावमें मनुष्यको शरीर तो मिल गया, परंतु खाद्य पदार्थ न मिले तो शरीर नहीं चल सकता, यही कारण है कि खाद्य सामग्री, कोष एवं धनादिका सम्बन्ध द्वितीय भावसे है। लग्न (प्रथम भाव) अर्थात् प्रथम अंग सिरका प्रतिनिधि है तो द्वितीय भाव-द्वितीय अंग अर्थात् मुख, मुखकी शोभा, बनावट, आँखों आदिका। जन्म कुंडली के  द्वितीय भावका कारक ग्रह बृहस्पति है, परंतु काल-पुरुषकी कुण्डलीके अनुसार द्वितीय भावमें वृषराशि है, इसका स्वामी शुक्र होता है एवं चन्द्रमा यहाँ उच्चका माना जाता है। दूसरा भाव जातककी प्रतिष्ठा एवं संचित धन को दर्शाता है। दूसरे भावके घनका अर्थ है, जो सात्विक ढंगसे बचाया गया हो। मकान (पैतृक सम्पत्ति) या दूकान आदिका भी निर्धारण इसी भावसे होता है। बृहस्पतिके इस घरके कारक होनेके कारण यह भाव प्रारम्भिक आयुके ज्ञानको दर्शाता है। यह भाव मिट्टी, खेती एवं उड़नेवाली गैसोंसे भी सम्बन्ध रखता है। इसके अतिरिक्त द्वितीय भाव कुमारावस्था, रूप-लावण्य, वाणी- विकार, प्रबल वाक्शक्ति, संगीत कला ज्ञान, अन्धापन, संन्यास, मारक दशा, गोद लिया जाना, साम्राज्य शासन, प्रारम्भिक शिक्षा आदिका भी द्योतक है। प्राथमिकताके गुणके कारण लग्नसे जन्मकालीन तथा शैशवकालीन बातोंका विचार किया जाता है, इसी आधारपर द्वितीय भावसे शैशवावस्थाके तुरन्त बादकी अवस्था कुमारावस्थाका विचार किया जाता है। यह भाव ‘उत्तर पश्चिम दिशाको दर्शाता है।

द्वितीय भाव (धन स्थान)

कुदरती जन्म कुंडली में द्वितीय भाव में शुक्र की वृषभ राशि आती हैं, अतः इस भाव पर इन दोनों का प्रभाव होता है

शरीर के हिस्से – गला, गर्दन, स्वरयंत्र, जीभ, आँखें (पुरुषों की दाहिनी, स्त्रीयों को बायीं), ढुड्डी और दाँत ।

कार्य – ऊपर बताए गए हिस्सों द्वारा होनेवाली क्रियाओं से संबंधित फल द्वितीय भाव से बताया जाता हैं। जैसे खाने पीने की आदतें, तरीके, पसंद नापसंद, बातचीत के तरीके, विषय, आवाज़ की मधुरता, गंभीरता, वक्तृत्व पर प्रभुत्व, आवाज में लचीलापन, संगीत, कला आदि के लिए यह भाव देखा जाता है।

इस भाव को कुटुंबस्थान के रूप में देखा जाता है, अतः कई लोगों का परिवार में शामिल होना, परिवार का बढ़ना या कम होना इस भाव से देखा जाता है ।

इस भाव को धन स्थान कहा गया है, अत: जातक की सांपत्तिक स्थिति, धन कमाने या खर्चने के तरीके, जातक के पास जमा धन, पैसा, गहने, जवाहरात, बॉण्ड्स शेअर आदि संपत्ति देखी जाती हैं।

इस भाव से आँखें, आँखों की खूबसूरती नज़र आदि की जानकारी मिलती हैं।

अन्य जानकारी – बैंक, रेवेन्यू अकाउंट, खाने-पीने की चीजें, हीरे जवाहरात, कीमती धातु आदि।

विरोधी फल – यह स्थान तृतीय स्थान का व्यय स्थान है, अतः सफर में परेशानियाँ आती हैं, जातक परिवार के साथ ही रहता है।

संबंधित लोगों को मिलनेवाले फल – छोटे भाई-बहनों की विदेश यात्रा. निवेश, कर्जा चुकाना, जेल सजा, माता का फायदा, संतान का सम्मान, बढ़ोत्तरी, मामा की यात्रा, उच्च शिक्षा, पति अथवा पत्नी का ऑपरेशन, दुर्घटना, परेशानियाँ, पिता या गुरू की बीमारियों, नौकरी, ऋण, धन कमाना, बड़े भाई-बहन या दोस्त की शिक्षा, घर और माँ का प्यार आदि ।

घर में स्थान – तिजोरी, रसोई घर, डायनिंग टेबल

देश-प्रदेश के बारे में – देश के माली हालात, धन कमाना और खर्चना, रेवेन्यू डिपार्टमेंट, टैक्स और टैक्स की वसूली जनता का आपसी सहयोग, जन संख्या बढ़ना या घटना, वित्त संस्था

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जन्म कुंडली का  तृतीय भाव

बिना परिश्रमके न तो धन उत्पन्न होता है, न टिक ही सकता है, अतः तृतीय भाव परिश्रम, बल, बाहु, पराक्रम आदिका है। जन्म कुंडली के तीसरे भावसे जातकके जिम्मेदार होने, फर्ज निभाने, दूसरोंकी सहायता करनेकी हदका पता चलता है। उत्साह, स्फूर्ति दृष्टिके प्रभावशाली होने, चोरी एवं बीमारीका सम्बन्ध भी इसी भावसे है। जातक के जीवन में उतार-चढ़ावको भी यही घर दिखाता है। तीसरे घरका कारक ग्रह मंगल एवं राशि स्वामी बुध ग्रह है, परंतु मंगलका ज्यादा अधिकार होने के कारण बुध यहाँ शुभ फल नहीं देता, क्योंकि मंगल बुधको कमजोर कर देता है। यह भाव ‘दक्षिण दिशा’ को व्यक्त करता है। इस भावमें मेष, वृश्चिक एवं मकर राशिका मंगल अति शुभ होता है। तीसरे भावसे छोटे भाई-बहनों का पता चलता है। यदि यह भाव शुभ होगा तो भाई-बहनोंसे सम्बन्ध एवं उनकी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होगी। इसके अतिरिक्त तीसरे भावसे जातका निजत्व, आत्मघात, मित्रता, लेखन-कला, हाथ, पर्याप्त धन, छोटी-छोटी पात्राएँ, हवाई यात्रा, गहरी खोज आदिका भी पता है। रिश्तेदारोंकी आर्थिक स्थिति भी यह भाव दर्शाता है। मकानके अन्दर रखे सामान को यह भाव दर्शाता है। यदि इस भाव में अशुभ ग्रह हो तो जातक को परिश्रम का पूरा फल कभी नहीं मिलता| तृतीय भाव आँख की पलकों, जिगर, खूनकी मात्रा एवं अन्य प्रकार के रक्तदोषों को भी बताता है। यह भाव जातककी आयु (यौवन) भी दर्शाता है।

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तृतीय स्थान (पराक्रम स्थान)

कुदरती जन्म कुंडली में बुध की मिथुन राशि इस भावारंभ में आती हैं, अतः मिथुन राशि और बुध ग्रह इन दोनों का इस भावपर अमल हैं।

शरीर के हिस्से – श्वसन संस्था, हाथ, कंधे, हाथों का ऊपरी हिस्सा, ऊँगलिया, मज्जा संस्था, शरीर की सभी उत्सर्जन, वहन तथा अभिसरण क्रियायें, कान और श्रवणेंद्रीय

कार्य – श्वसन संस्थापर इस भाव का अधिकार होता है अतः श्वसन क्रिया, हाथों से संबंधित अतः भुजाओं का बल अर्थात् पराक्रम, वीरता, मज्जा संस्था से संबंधित अतः सजगता, चतुराई, मिथुन के वायु तत्त्व के कारण कल्पनाशक्ति, अच्छा आकलन; बुध के कारण बुद्धि का स्तर एवम् तेज बुद्धि,ऊँगलियों से संबंधित अत: लिखना, लिखने की कला, लेखन के विषय, अक्षरों का घुमाव हस्ताक्षर ।

विरोधी फल – तृतीय भाव अर्थात् चतुर्थ स्थान से व्यय अथवा बारहवा स्थान अतः चतुर्थ भाव से प्राप्त होने वाले फलों से संबंधित विरोधी अथवा बदलाव को निर्देशित करनेवाला फल मिलता है। जैसे शिक्षा में अटकाव, घर या जमीन पर से अधिकार खो देना, घर बदलना या बेचना, घर से दूर जाना और माता के सुख से वंचित

अन्य जानकारी – कुदरती तौर पर यह भाव बुध से संबंधित हैं, साथ ही वायु तत्व की वहनशील मिथुन राशि इस भावारंभ में होने के कारण लेखन, लेखन साधन, कागज़, कलम, पेन्सिल, छपाई, छपाई यंत्र, स्याही, फोटो, कॅमेरा, छपी चीजें, खत, तार, फोन, पोस्ट ऑफिस, तार ऑफिस, टेलिफोन एक्सचेंज, समाचार, आकाशवाणी, दूरदर्शन, समाचार पत्र अफवाह, करार, हस्ताक्षर, साक्षात्कार, इश्तेहार, अँड. एजन्सी, होर्डिंग, इश्तेहार के बोर्ड, इश्तेहार देनेवाले रिपोटर, दलाल, दलाली, संदेश, सिग्नल, दूरसंचार, किताबें, लाइब्रेरी, किताबों के खाने, हर तरह के करारनामे, कॉन्ट्रक्ट, सर्टीफिकेट, दाखिले, दो पहियोंवाले वाहन, नज़दीको यात्रा, यात्रा संस्थायें, एस. टी. बस, ट्राम, रेल बुध गणिती अतः हिसाब रखनेवाले, गणितीय, ज्योतिषी भाषा विशेषज्ञ, लेखक, प्रकाशक, ग्रंथ बेचनेवाले, श्रवणयंत्र, ध्वनि मुद्रित करवाना, जानकारी एवम् प्रसारण ।

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इस भाव से पड़ोसी और छोटे भाई बहन देखें जाते हैं ।

संबंधित लोगों को मिलनेवाले फल – छोटे भाई-बहनों का स्वास्थ्य, माता की विदेश यात्रा, संतान के लाभ, मामा की तरक्की, पिता का कारोबार या मृत्यु, बड़े भाई-बहन अथवा दोस्त का प्यार, नौकरी में बदलाव, स्वास्थ्य |

देश प्रदेश – पड़ोसी देश, देश की यातायात संस्थायें, औरों से होनेवाले करारनामे, देश में फैलनेवाली खबरे, देश की बुद्धि से जुड़ी तरक्की तथा संदेश यंत्रणा ।

घर में स्थान – किताबों की अलमारी या खाने, लेटर बॉक्स, खिड़किं, झरोके, पंखे, लिखने या पढ़ने के स्थान, टेबुल, झूले|

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जन्म कुंडली का  चतुर्थ भाव

शरीर धन तथा परिश्रम तभी सार्थक है, जब कार्य करनेकी रुचि एवं भावना हो। अतः भावनाओं कामनाओंका विचार जन्म  कुण्डली के चतुर्थ भावमें रखा गया है। कालपुरुषके चतुर्थ अंग-वक्षःस्थल एवं हृदयसे भी इसका सम्बन्ध है। इस भावमें कर्कराशि पड़ती है। अतः चन्द्रमा चतुर्थ भावका स्वामी है। बृहस्पति इस भावमें उच्च फल देता है। स्त्रियोंको कुण्डलीमें यह भाव पेटके अन्दरूनी हिस्सों अर्थात् गर्भको दर्शाता है। इस भावका कारक ग्रह भी चन्द्रमा है, अतः यह जलका स्थान कहलाता है। सर्द तासीर, मनकी शान्ति इसी भावसे देखी जाती है। चतुर्थ भावमें अशुभ ग्रह होनेसे जातकके आत्मविश्वासमें कमी आ जाती है एवं माताको सेहतपर भी बुरा प्रभाव रहता है। यह भाव उत्तर-पूर्व दिशाको दर्शाता है। दूधका सम्बन्ध भी इसी भावसे है, अतः दूध देनेवाले जानवर गाय, भैंस भी इसी भावसे सम्बन्ध रखते हैं। ननिहालकी आर्थिक स्थिति (मामाकी) इसी भावसे पता चलती है। चौथे भावका सम्बन्ध जीवनके दूसरे हिस्सेके सुख अर्थात् गृहस्थीके सुख एवं युवावस्था आदिसे है क्योंकि इस घरका कारक एवं स्वामी ग्रह चन्द्रमा है, अतः इस भावका रात्रिसे गहरा सम्बन्ध है, यदि इसमें शुभ ग्रह हो तो नींद अच्छी आयेगी एवं शुभ समाचार भी बहुधा रात्रिमें ही मिलेगा एवं विपरीत स्थिति होनेपर स्थितियाँ उलट जायेंगी। पागलपन, भय, मिरगीरोग, माता, रोग-योग वाहन जन-सेवा एवं नेतृत्व, स्थानानतरण, खेती जयदाद, शत्रुता एवं स्वार्थपरायणता भी इसी भावको दर्शाते हैं।

चतुर्थ स्थान (सुख स्थान)

कुदरती जन्म कुंडली में चतुर्थ स्थान में चंद्रमा की कर्क राशि हैं, अतः इस भाव पर इन दोनों का प्रभाव दिखता है ।

शरीर के हिस्से – वक्षस्थल छाती ।

कार्य – छाती (सीना) को आत्मा का निवास माना गया है, अतः हमारा निवास अर्थात् हमारे घर के लिए यह स्थान देखा जाता हैं। साधारण इन्सान के लिए अपना घर ही सुख का स्थान होता है, अतः इस स्थान को सुख स्थान भी कहा गया है। घर के सुख के साथ ही वाहन सुख, जमीन, खेती, बगीचे आदि बातें इसी स्थान से देखी जाती हैं। यह स्थान मातृसुख का हैं क्यों कि चंद्रमा के पास मातृत्त्व का गुण है। हमारी हिंदू प्रणाली में पंचम स्थान से शिक्षा के बारे में देखा जाता है, किंतु कृष्णमूर्ति प्रणाली में चतुर्थ स्थान से स्कूल या कोलेज की शिक्षा देखी जाती हैं। हर किसी का पहला गुरू माँ होती हैं, अतः शिक्षा मातृस्थान से ही देखना पर्याप्त हैं, यह कहना ठीक होगा ।

वैसे देखा जाये, तो तृतीय, चतुर्थ और पंचम यह तीनों स्थान बुद्धि, शिक्षा और ज्ञान से संबंधित हैं । यह तीनों शब्द एक समान प्रतीत होते हैं, किंतु उनमें काफी फर्क हैं। जो बुद्धिमान है, वो शिक्षा प्राप्त करेगा, यह जरूरी नहीं, जिसके पास शिक्षा हैं वो ज्ञानी हो, यह जरूरी नहीं। पंचम स्थान से ज्ञान देखा जाता है । ज्ञान अर्थात् अनुभुति, ईश्वर की पहचान और आत्मा और ईश्वर के मिलन से जो परमात्मा का ज्ञान होता हैं, वो ज्ञान पंचम द्वारा मिलता है। इस ज्ञान का और स्कूल कॉलेज से मिलनेवाली शिक्षा में कोई समानता नहीं ।

जिन महान ऋषियों ने हमारे हिंदू ज्योतिष शास्त्र की जानकारी दी, वे सभी आध्यात्म के मामले में महान थे। अतः उन्होंने जो बताया उसमें आध्यात्म दिखाई देता हैं। आत्मा को परमात्मा का ज्ञान होना ही सच्चा ज्ञान हैं, यह उनका मानना था किंतु बाद में किताबी शिक्षा को ज्ञान मानकर, पंचम स्थान से शिक्षा को देखना शुरू हुआ। किंतु इस तरीके को गलत मानते हुए कृष्णमूर्तिजीने विचारवंतों से इस मामले में अधिक सोचने का आवाहन किया है। हिंदू ज्योतिष प्रणाली की जानकारी मिले, इसलिए मैंने इस बात को यहाँ स्पष्ट किया है।

अन्य बातें – इस स्थान से घर देखा जाता है, साथ ही बगीचे, खेती, उत्पाद, पानी, कन्स्ट्रक्शन, सिमेंट, रेती आदि शिक्षा से संबंधित अत: स्कूल, कॉलेज, क्लासेस, शिक्षा संस्था, शिक्षा मंडल, परिक्षा वाहन से संबंधित अत: गाड़ियाँ, मोटरें, हवाई जहाज, जहाज आदि से जुड़ी संस्थायें कर्क राशि जल से संबंधित अतः पानी, दूध, शरबत आदि । कुल मिलाकर वाहन, शिक्षा, घर, जमीन, जगह, खेती आदि चतुर्थ से देखें जाते हैं।

संबंधित लोगों को मिलनेवाले फल – छोटे भाई-बहनों के माली हालात और कमाई, माता का स्वास्थ्य, संतान का विदेशगमन, पति, पत्नी या पार्टनर का लाभ, पिता की दुर्घटना, ऑपरेशन, तकलीफें बड़े भाई-बहन या दोस्तों की बीमारियाँ धनकामना, ऋण आदि ।

विरोधी फल – यह स्थान पंचम का व्यवस्थान होने के कारण पंचम से देखें जानेवाले संतान और प्यार के मामले में विरोधी फल देता हैं। जैसे गर्भपात, संतान से बिछडना, जुए में असफलता, प्यार में असफलता आदि ।

देश प्रदेश – देश में होनेवाले कन्स्ट्रक्शन गृहनिर्माण, शिक्षा संस्थायें, शिक्षा में प्रगति, सिंचाई, ड्रम योजना, जलाशय, कृषि विभाग खेती, उत्पाद, बाहन, हवाई जहाज, जहाज, रॉकेट्स आदि का निर्माण, बारिश की मात्रा और जलाशय ।

घर में स्थान – स्टडी रूम, पानी रखने की जगह, कुए आदि|

सुख स्थान चतुर्थ भाव स्वामी का अन्य भावों में फल:https://askkpastro.com/4th-house-lord/

जन्म कुंडली का  पंचम भाव

व्यक्तिके पास शरीर, धन, परिश्रम, इच्छाशक्ति सब कुछ हो, परंतु यदि उसको कार्यविधिका जान अर्थात् विचारशक्ति प्राप्त न हो तो जीवन आगे नहीं चल सकता। अतः  जन्म  कुंडली का पंचम  भाव (विचारशक्ति) को चतुर्थभाव (मन) के अनन्तर स्थान दिया जाना विकास-क्रमके अनुरूप ही है। पंचम भावका विशेष सम्बन्ध सन्तान से है। शरीरके अंगोंमें पेट एवं पीठका विचार इसी भावसे किया जाता है। कालपुरुषकी कुण्डलीके अनुसार पंचम भावमें सिंहराशि पड़ती है, जिसका स्वामी ग्रह सूर्य है, अतः इस भावका प्रकाशसे भी गहरा सम्बन्ध है। मकानके अन्दर रोशनी एवं हवा कितनी आती है, यह सूर्यकी स्थितिको देखकर पता चलता है। दिशाओंमें यह पूर्वदिशाका द्योतक है। इस भावका स्वामी सूर्य है। अतः चमक विशेषतया जातकके जीवनमें स्थान रखती है, जैसे सन्तान एक सुखमय गृहस्थके जीवनका तेज है| भाग्य एवं कमाईकी चमक इत्यादि। यदि इस भावमें अशुभ ग्रह हों तो उपर्युक्त सभी परेशानियोंका कारण बन जाते हैं।

बृहस्पति इस भावका कारक है, अतः विद्या, ज्ञान एवं मानसिक प्रभाव भी देखा जाता है। मानसिक चेतनता, मनकी ईमानदारी, लोगोंके दिलमें जातकके लिये सम्मान भी इसी भावसे देखा जाता है। इसके अतिरिक्त जातकके इष्टदेव, मन्त्री पद, पुत्रप्राप्ति, प्रेम, मनोविनोद, प्रतियोगी परीक्षाएँ, लाटरी, सट्टासे धन, राजयोग एवं बालारिष्ट भी इस भावसे देखे जाते हैं।

पंचम स्थान (सुतस्थान)

कुदरती जन्म कुंडली में पंचम स्थान में रवि की सिंह राशि आती हैं, पंचम पर इन दोनों का प्रभाव दिखता है।

शरीर के हिस्से – दिल और रीढ़ की हड्डी, साथ ही संत ज्ञानेश्वर के कहेनुसार दिल में अँगूठे जितनी आत्मज्योति होती हैं, अतः अदृश्य रूप में स्थित आत्मा या आत्मतेज पंचम से देखा जाता है।

कार्य – एक आत्मा से दूसरे आत्मा का निर्माण अर्थात् संतान: अतः संतान से जुड़े सभी सवाल पंचम स्थान से देखें जाते हैं। आत्मा अर्थात ईश्वर का अंश जो प्रेम का महासागर है, अत: इसी तरह का सच्चा प्यार पंचम से देखा जाता है । अर्थात प्यार के मामले से जुड़े सारे सवालों के लिए यह स्थान देखा जा सकता है। पूरे तन-मन से साधना, मंत्र तंत्र साधना पंचम से देखी जाती है। किसी के मन अथवा आत्मा को ईश्वर भक्ति में खुशी मिलती है, तो कोई नाटक, फिल्म, खेल या से खुश होता है, अत: नाटक, फिल्म, कलाकार, डायरेक्टर, प्रोड्युसर, मन को खुश करनेवाली कुदरत, फूल, पत्ते, रंग चित्र आदि के लिए पंचम को देखा आता है। पंचम स्थान से रीढ़ की हड्डी, आत्मा और हृदय देखा जाता है, यह तीनो जब एक होकर काम करते हैं, तब ईश्वर की सच्ची साधना होती है, अतः साधना भी इसी से देखी जाती है। हर तरह के जुए, शेअर मार्केट में सफलता असफलता के लिए यह भाव देखा जाता है।

अन्य बातें – इस भाव से हर तरह के नाटक, फ़िल्मे, नृत्य आदि कला और उनसे संबंधित कसेट्स, वी.डी.ओ फिल्म, नाटक, फिल्म तथा नृत्य के मंच, हर के खेल खेल के मैदान, खेल के साधन, यंत्र, खिलौने, फूल, फूल के पौधे, इत्र, नर्म कपड़े, जुए के लिए इस्तेमाल किए जानेवाले ताश के पत्ते, रेसकोर्स, जुए के अड्डे, फासे, रंग, चित्र, पेटिंग्ज, प्यार, प्यार के मामले, समझौता, वेद, वेदशास्त्र, तंत्र साधक, साधना, ईश्वरी ज्ञान, पाप, पुण्य की कल्पना, संतान का प्यार आदि ।।

संबंधित लोगों को मिलने वाला फल – छोटे भाई बहनों की यात्रा और शिक्षा में आनेवाली बाधाए, माता का धन, परिवार में वृद्धि तथा मृत्यु स्थान, संतान का स्वास्थ्य, करतब, पति-पत्नी के लाभ, पिता की विदेश यात्रा, कोर्ट-कचहरी के फैसले, बड़े भाई-बहन और दोस्तों के कारोबार, विवाह, मारक स्थान ।

कैसा रहने वाला है आपका करियर लीजिये यह रिपोर्ट:https://askkpastro.com/product/career-report-1-year/

देश विदेश – अन्य देशों के साथ रिश्ते, विदेशों को सहायता, देश की धार्मिक उन्नति और स्थिति, बाल संगोपन केंद्र, खेल कूद में तरक्की, कला के प्रति ऋण के तौर पर दिया गया व्याज, देश के कुदरती हालात ।

घर में स्थान – रसोईघर या रसोईघर का स्थान ।

विरोधी फल – यह भाव षष्ठ स्थान का व्यय स्थान हैं, अतः पष्ठ स्थान से देखी जानेवाली नौकरी, धन कमाना, प्रतियोगिता में सफलता और बीमारियाँ इन मामलों में विरोधी फल मिलता है। जैसे नौकरी में बदलाव, नौकरी जाना, नौकरी न मिलना, धन की हानि, पार्टनर धोखा देता है, बीमारी ठीक हो जाना, अच्छा स्वास्थ्य आदि फल मिलते हैं।

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जन्म कुंडली का षष्ठ भाव

यदि शरीर, धन, परिश्रम, इच्छाशक्ति, विचारशक्ति सब कुछ हो, परंतु मनुष्य सांसारिक विरोधी शक्तियों, अड़चनों, कठिनाइयोंसे बाहर न निकल सके तो उसको कुशलता एवं सफलता नहीं प्राप्त हो सकती, अतः जन्म कुंडली के  षष्ठ भाव को कठिनाइयों, अड़चनों अर्थात् शत्रुताका स्थान माना गया है। छठा भाव शत्रु-स्थान कहलाता है। अन्य जाति एवं विदेशी वस्तुओंका विचार भी इसी भावसे होता है। ऋणका सम्बन्ध भी इसी भावसे है, क्योंकि कर्ज हमेशा हम अपनोंसे नहीं परायोंसे लेते हैं। शत्रुका पहला काम चोट पहुंचाना एवं चिन्ता देना है-दोनों ही रोगके स्वरूप हैं, अतः रोग भी इसी भावसे देखा जाता है। घरके अन्दर स्टोररूम या तहखाना इसी श्रेणी में आते हैं। जातकके अन्दरूनी अंग जैसे आँत, कमर, पुठ्ठे आदि इस भावके अन्तर्गत आते हैं।

कालपुरुषकी कुण्डलीके अनुसार इस भावमें कन्याराशि पड़ती है, अतः इस भावका स्वामी एवं कारक ग्रह बुध है। शुक्र यहाँ नीच फल देता है। शरीरकी गर्मी या रूखापन एवं दूरदर्शिता इसी भावसे देखी जाती है, क्योंकि बुध त्वचा एवं बुद्धि दोनोंका प्रतिनिधित्व करता है। बुध ग्रहके कारण इसे व्यापारका भाव भी माना जाता है। यह भाव अपमान, अवनति एवं भाग्यकी गिरावटको दिखाता है, इसके अतिरिक्त इस भावसे विपरीत राजयोग, चोटका योग, चोरीका योग, हिंसात्मक प्रवृत्ति मामाके सम्बन्ध में विरोध एवं विशेष कष्टको जाना जा सकता है।

षष्ठ स्थान (रोग अथवा रिपु स्थान)

कुदरती कुंडली में बुध की कन्या राशि षष्ठ भाव में आती हैं, अतः इन दोनों का प्रभाव इस भाव पर होता हैं।

शरीर के हिस्से – पेट, जठर, पचन संस्था ।

कार्य – आयुर्वेद में कहा गया है कि पेट ठीक तो स्वास्थ्य ठीक । सभी रोगों का मूल पाचन संस्था हैं, अतः इस स्थान को रोग स्थान कहा गया हैं। रोग शरीर का पहला शत्रू अथवा रिपु है । बीमारियों से जुड़े सभी सवाल, जैसे बीमारी कब होगी, किस प्रकार की बीमारी होगी, इस बारे में जानने के लिए षष्ठ स्थान को देखा जाता है। षष्ट स्थान से नौकर देखें जाते हैं। साथ ही जातक का सेवा भाव, काम के प्रति समर्पण, काम करने का तरीका, नौकरी में कायम रहना, नौकरी से मिलनेवाला वेतन, खाने-पीने की आदतें आदि के लिए षष्ठ स्थान को देखा जाता है ।

पष्ठ स्थान सप्तम का व्यय स्थान हैं। जातक जिसके लिए काम करता है, उस संस्था का मालिक या प्रमुख, जातक के बिजनेस पार्टनर, जातक जिनसे धन से जुड़ी लेन-देन करता है, वो लोग और पति या पत्नी आदि लोग सप्तम से देखें जाते हैं, अर्थात् उपर बताए हुए सभी लोगों का व्यय स्थान है। इन सब लोगों का व्यय ही जातक का धन कमाने का जरिया होता है, अतः पार्टनर से मिलनेवाले लाभ, औरों के साथ लेन देन से होनेवाला मुनाफा, पति अथवा पत्नी से मिलनेवाला धन पष्ठ से देखा जाता हैं। इसीलिए पष्ठ महत्त्वपूर्ण धन स्थान हैं। इसी स्थान से बड़ा धनलाभ, ऋण, मुनाफा आदि देखा जाता है ।

प्रतिस्पर्धी भी सप्तम से ही देखें जाते हैं, अतः षष्ठ स्थान जीवन में आनेवाले सभी प्रतिस्पर्धियों का व्यय स्थान होता हैं। इसलिए प्रतियोगिताओं में मिलनेवाली सफलता चुनाव में जीत, प्रतियोगिता परिक्षाओं की सफलता, कोर्ट कचहरी में जीत आदि बातें इस भाव से देखी जाती हैं ।

अन्य बातें – सफाई, सफाई विभाग, मजदूर युनियन, नौकर, नौकरी, दुनी परेशानिया, ऋण, ओवर ड्राफ्ट, प्रतियोगिता में सफलता, पालतू जानवर जैसे- गाय, भैंसें, भेड़, बकरी आदि ।

संबंधित लोगों को मिलनेवाले फल – छोटे भाई बहनों की शिक्षा, घर या वाहन खरीदना, माता की यात्रा घर बदलना, संतान की धनप्राप्ति, पति या पत्नी की विदेश यात्रा या धन नाश, पिता का मान सम्मान, शोहरत, बड़े भाई बहन या दोस्त की दुर्घटना, ऑपरेशन या परेशानियाँ आदि ।

देश-प्रदेश – देश में स्वास्थ्य का अभाव, रोग, विदेशों से मिलनेवाला ऋण, कारोबार में मुनाफा, विश्व स्तर पर कामयाबी, युद्ध में दुष्मन पर जीत, अनाज़ के गोदाम, मज़दूर, गाय-बैल जैसे जानवर, कृषि उत्पाद, यंत्र से जुड़ी तरक्की ।

घर में स्थान – अनाज या पका हुआ खाना रखने की जगह, नौकर का कमरा, गाय-बैलों का तबेला ।

विरोधी फल – यह स्थान सप्तम का व्यय स्थान होने के कारण सप्तम से देखें जानेवाले विवाह और पार्टनरशिप आदि मामलों में विरोधी फल मिलते हैं। पारिवारीक मुख की कमी, पति पत्नी का बिछड़ना या तलाक, पार्टनरशिप टूट जाना, घर का किराएदार चला जाना आदि बातें देखी जाती है।

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सप्तम भाव

यदि मनुष्य में वीर्यशक्ति तथा दूसरोंसे मिलकर चलनेकी इच्छाशक्ति न हो तो भी वह संसारमें असफल समझा जायगा। अतः जीवनसाथी भागीदार, वीर्य आदिका विचार सप्तम भावसे किया जाता है। कालपुरुषकी कुण्डलीके अनुसार सप्तम भावमें तुलाराशि पड़ती है, अतः शुक्र ग्रह इस भावका स्वामी एवं कारक भी है। व्यापारिक भागीदारीके कारण बुध ग्रह भी इस भावका कारक होता है। इस भावमें शनि ग्रह उच्च फल देता है एवं सूर्य ग्रह नीच फल देता है। इस भावको मैदानी संसार कहा जाता है; क्योंकि यह जीवनका वह क्षेत्र होता है, जिसमें काम एवं सम्पत्तिके बारेमें जातक संघर्ष करता है। इस भावसे जातकके जन्म समयके स्थानके बारेमें जाना जा सकता है। यह भाव विशेष तौरपर पत्नीका कारक (स्त्रीकी कुण्डलीमें पतिका कारक) है। पुत्री, पौत्री एवं बहनका सम्बन्ध भी इसी भावसे देखा जाता है। जातकके विवाह कितने होंगे, यह भी जानकारी इस भावसे मिलती है। इस भावका सम्बन्ध दूरदर्शितासे है। पूर्वजन्मके भाग्यका कितना अंश हम इस जन्ममें लेकर आये हैं, यह सातवें भावमें उपस्थित ग्रहके शुभ-अशुभ होनेसे पता चलता है। इसके अतिरिक्त यह भाव वैवाहिक सुख, समृद्ध घरानेमें विवाह, बहुविवाह, प्रेमविवाह, तलाक, विवाहसमय, कामातुरता एवं मारकेशको भी दर्शाता है।

सप्तम स्थान (विवाह स्थान)

कुदरती जन्म कुंडली में सप्तम स्थान में शुक्र की तुला राशि आती हैं। इन दोनों का प्रभाव सप्तम भाव पर दिखता है ।

शरीर के हिस्से – पेट का निचला हिस्सा, मूत्राशय, मूत्रपिंड, वीर्य और शुक्र जंतु ।

कार्य – इस स्थान से विवाह सुख देखा जाता हैं। विवाह और उससे जुड़े सवाल जैसे क्या शादी होगी? कब होगी ? क्या प्रेम विवाह होगा ? साथी का स्वभाव कैसा होगा ? उम्र में कितना फासला होगा? पारिवारिक सुख कैसा होगा? इस तरह के सभी सवालों के जवाब सप्तम स्थान से मिलते हैं। इसी भाव से यौन सुख और यौन सुख लेने के तरीके भी पता चलते हैं।

इसी स्थान से हर तरह की आर्थिक लेन-देन, धंदा, कानूनी बंधन, यात्रा में आनेवाली परेशानी आदि के बारे में देखा जाता हैं।

कानूनी पार्टनर और कारोबार में लेन-देन के बारे में जानकारी मिलती है।

इसी भाव से चोर, दुष्मन अथवा प्रतिस्पर्धी का ब्योरा मिलता है। यह एक मारक स्थान है, अतः मृत्यु के लिए भी यह स्थान देखा जाता हैं।

अन्य बातें – कानूनी बंधन, नोटिस, कोर्ट-कचहरी, यात्रा और शिक्षा में अटकाव, सभा, विदेश में प्रतिष्ठा, यौन सुख के प्रति लगाव, कारोबारी संस्था, विवाह मंडल, विवाह स्थल, व्यापार केंद्र |

संबंधित लोगों को मिलने वाले फल – छोटे भाई-बहन के प्यार के मामले, शिक्षा में रूकावटें, कला, माता के घर और वाहन को खरीदना, संतान की यात्रा, घर के स्थान में बदलाव और शिक्षा में परेशानियाँ, पत्नी का स्वास्थ्य, पिता का लाभ, बड़े भाई-बहन की शोहरत (दोस्त की भी), प्रमोशन

देश-प्रदेश – विदेश व्यापार, विश्व स्तर पर कानूनी मर्यादायें, उन्नत्ति रूकावटें और दुष्मन देश

घर में स्थान – बड़े कमरे, पलंग, गद्दा रखने के स्थान

विरोधी फल – यह स्थान अष्टम का व्यय हैं, अतः अष्टम स्थान से देखा जानेवाला इन्शुरन्स का मुनाफा, वारिस के तौर पर मिलनेवाला धन, नुकसान भरपाई, नौकरी में मिलनेवाला बोनस, फंड, ग्रॅज्युइटी मिलने में आनेवाली मुश्किलें सप्तम देखी जाती हैं।

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जन्म कुंडली का  अष्टम भाव

मनुष्यके उपर्युक्त सभी गुण और मोक्षप्राप्तिकी साधनाएँ निष्फल हो जायेंगी, यदि वह दीर्घायु न हो, अतः आयुका विचार अष्टम भावसे किया जाता है। यह भाव जातकके जीवनमें आनेवाले अशुभ हालात तथा मुसीबतोंको दर्शाता है। जन्म कुंडली के अष्टम भावसे जातककी आयुका पता चलता है। इस भावको संन्यास अवस्थाका भाव भी कहा गया है; क्योंकि इसका कारक शनिग्रह होता है। कालपुरुषकी कुण्डलीके अनुसार अष्टम भावमें वृश्चिक राशि पड़ती है, जिसका स्वामी मंगल है, अतः मंगल भी इस भावमें कारक माना जाता है। जातकका मकान अच्छी या बुरी किस जगहपर होगा- यह इस भावसे पता चलता है। रोगोंमें पूर्वजन्मके, इस जन्मके, रोगका आरम्भ, रोगवृद्धि आदि इस भावसे जाना जाता है। इस भावसे यह पता चलता है कि जातककी मृत्यु किस प्रकारसे होगी। विपरीत राजयोग एवं प्रचुर धन सम्पदा (गड़ा हुआ धन) आदि भी इस भावसे सम्बन्ध रखते हैं। अष्टम भाव गूढ़ अन्वेषणवाला भाव है; क्योंकि खतरोंमें पड़कर ही खोज एवं आविष्कार होते हैं। अष्टम भावसे पत्नी या पतिकी वाणीका पता भी चलता है। इसके अतिरिक्त विदेशयात्रा, आत्मघात आदिका पता भी इस भावसे चलता है।

अष्टम स्थान (मृत्युस्थान)

क़ुदरती जन्म कुंडली में इस भाव में मंगल की वृश्चिक राशि आती है, अतः इन दोनों का अमल इस भाव पर होता है।

शरीर के हिस्से – बाहरी लिंग, गुदाद्वार, आंत्रपुच्छ

कार्य – मलमूत्र उत्सर्जन क्रिया और उससे जुड़ी समस्यायें अष्टम से देखी जाती है। इस भाव में विषैली और गुप्तता की दर्शक वृश्चिक राशि आती हैं, अतः कार्यवाही करना, साजिश रचना, छुपी योजनाए, प्यार के छुपे मामले आदि दुर्घटना, जलना, ऑपरेशन, गर्भपात, हमले, मारपीट, परेशानी, अविचार, महिलाओं को मासीक धर्म में तकलीफ हो सकती हैं। हर तरह की हानि, नुकसान, शरीर के हिस्से बेकार हो जाना आदि बातें होती हैं। नैतिक अध:पतन, अपमान आदि का अनुभव आता है। इस स्थान को मृत्यु स्थान कहा गया है, किंतु इस स्थान से मृत्यु के समय शरीर की स्थिति और मृत्यु के कारण की जानकारी मिलती हैं।

हर तरह की दुख देनेवाली घटनाओं का अनुभव इस भाव में होता है अतः इस भाव को नाकामयाबी का भंडार भी कहा जाता है ।

इस भाव से धन प्राप्त होता है, लेकिन उसके पीछे कोई न कोई दुख होता हैं, वेदना होती हैं या फिर कुछ त्यागना पड़ता हैं । घड़ा भर दुख के बाद चुटकी भर धनलाभ हैं। जैसे पिता की मृत्यु के बाद वारिस के तौर पर धन मिलना, नौकरी छूटने के बाद फंड, ग्रॅच्युइटी, शरीर का हिस्सा बेकार होने के बाद नुकसान भरपाई मिलना आदि। दहेज भी इसी स्थान से देखा जाता हैं। (इसमे भी तो अपमान होता है।)

अन्य बातें – इस भाव से गुप्तता का बोध होता हैं, अत: गुप्तता से जुड़ा पुलिस विभाग, जासूसी, ऑडिट डिपार्टमेंट, पूछताछ यंत्रणा, अग्निशमन दल, गुप्त स्थान, गटर, मल निसारण केंद्र, सफाई विभाग, सर्जन, नाई, जल्लाद, जहरीली चीजें, जहरीले जानवर, जहर, मृत्यु दर्ज कराने का दफ्तर, जहर देना, खून, मारपीट, दंगे, बड़ी असफलता, आर्थिक हानि इसी स्थान से बीमा, बीमा एजेंट देखें जाते हैं, जानवरों को हलाल करने के स्थान, अमानवी सजा आदि के लिए अष्टम स्थान को देखा जाता है। साथ ही हथियार, बंदूक, बम विस्फोटक सामग्री आदि ।

संबंधित लोगों को मिलनेवाले फल – छोटे भाई बहनों के स्वास्थ्य में खराबी, नौकरी, धन कमाना और ऋण, माँ की नौकरी में बदलाव, स्वास्थ्य, संतान की शिक्षा, घर और वाहन खरीदना, पति, पत्नी या पार्टनर का धन कमाना, पिता का नुकसान, मोक्ष, मृत्यु, बड़े भाई-बहन या दोस्त का प्रमोशन, मशहूरी, मानसम्मान |

देश प्रदेश – देश में गुंडागर्दी, छुपी साजिशें, दुर्घटना, अराजक, नेताओं की हत्या, युद्ध, अधोगति साहूकार का पीछे पड़ना, विस्फोटक, बेवक्त मृत्यु ।

विरोधी फल – यह भाव नवम का व्यय स्थान है, अत: नवम से देखी जानेवाली उच्च शिक्षा, ईश्वर के प्रति लगाव, लोगों में घुल-मील जाना, दूर की यात्रा आदि के मामले में मुश्किलें अथवा विरोध का सामना करना पड़ता हैं और उससे उच्च शिक्षा और अनुसंधान में अड़चने आती हैं। यात्रा में कई वजहों से मुश्किलें या असफलतायें मिलती हैं, ईश्वर से श्रद्धा हटने लगति हैं, किसी पर यकीन नहीं करते, समाज में बदनाम होते हैं।

घर में स्थान – बाथरूम, शौचालय, ड्रेनेज पाइप|

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जन्म कुंडली का  नवम भाव

शास्त्रों में आयुको धर्मकी देन माना गया है। अतः नैतिक जीवन तथा आध्यात्मिक उन्नति ही दीर्घजीवनका मूल है, अतः विकास क्रममें नवम स्थान धर्मको दिया गया है। जन्म कुंडली का नवम भाव जातकका भाग्य है, इस भावकी शुभ स्थिति जातकके सम्पूर्ण भाग्य (जीवन) का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण है। नवम भाव परोपकार करने की क्षमताका कारक है। यदि यह भाव अशुभ हो तो जातककी आयुका एक बड़ा हिस्सा बेकार चला जाता है; क्योंकि यह भाव जीवन संघर्ष एवं व्यस्तताका भाव भी है। जातककी जाग्रत् अवस्था एवं इच्छाशक्तिको भी यह भाव दर्शाता है। इस भावका कारक बृहस्पति है। कालपुरुषकी कुण्डलीके अनुसार नवम भावमें धनुराशि पड़ती है, जिसका स्वामी बृहस्पति है। यह भाव घरके उस हिस्सेसे सम्बन्ध रखता है, जहाँ बैठकर धर्मकार्य होता है अर्थात् पूजास्थल यह भाव बुजुर्ग लोगों (घरके एवं बाहरके सभी) से सम्बन्धित है। यदि अशुभ स्थिति हो तो बुजुर्ग नाराज रहते हैं। जातकके उसके पितासे सम्बन्ध, लाभ एवं आर्थिक स्थिति (पिताकी) का पता चलता है। इस भावसे जातकको वैद्य (डॉक्टर), उपचार किस स्तरका मिलेगा यह भावको शुभाशुभ स्थितिपर निर्भर करता है। इसके अतिरिक्त राज्य उपभोगका योग, प्रभुकृपा, राजयोग, लम्बी यात्रा (देशमें), पैसा, दूसरी पत्नी एवं उससे पुत्रप्राप्ति (चूँकि पंचम भावसे पाँचवा भाव, नवम भाव पड़ता है, यदि यह बलवान् हो तो अवश्य पुत्र सुख (मिलेगा) आदि भी इस भावसे देखे जाते हैं।

नवम स्थान (भाग्य स्थान)

कुदरती जन्म कुंडली में नवम स्थान में गुरू की धनु राशि आती हैं। इन दोनों का प्रभाव नवम पर दिखता हैं।

शरीर के हिस्से – पैरों का ऊपरी हिस्सा

कार्य – कुदरती कुंडली के अनुसार इस भाव पर गुरू का अधिकार होता है अतः गुरू मार्गदर्शक, देवता, देवालय, मंदीर, मस्जिद, चर्च, धार्मिक स्थान, यात्रा, प्रार्थनास्थान, ईश्वरी शक्ति, पवित्रस्थान आदि नवम से देखें जाते हैं। गुरु न्याय का कारक अतः न्यायाधिश, अदालतें कानून और कोर्ट कचहरी, इन्साफ, केस का फैसला नवम से देखा जाता हैं ।

हमारे परंपरागत हिंदू ज्योतिष शास्त्र में इस स्थान को भाग्य स्थान कहा गया। हैं। इस बात को आध्यात्म से भी आधार मिलता है। मानव का भाग्य होता हैं ईश्वर का दर्शन, ईश्वर तक पहुँचना, इसी लिए नवम को भाग्य स्थान कहा गया है ।

ईश्वर तक पहुँचना अर्थात् दूर की यात्रा, अतः दूर की यात्रा, विदेश यात्रा के लिए नवम स्थान देखा जाता है। नवम स्थान नई खोज का स्थान हैं, अतः बड़े ग्रंथ, थिसीस, पी.एच.डी. जैसी डिग्रीज नवम से देखी जाती हैं ।

अन्य बातें – बड़े पैमाने पर इश्तेहार, बड़े धर्म ग्रंथ, पूर्वजन्म का पुण्य, प्रिय देवता, लोगों में इमेज. जनता का साथ, धर्मशास्त्र, वेदशास्त्र, ईश्वर की सेवा, भक्ति, ईश्वर ज्ञान, ईश्वर के संकेत आदि ।

संबंधित लोगों को मिलने वाले फल – छोटे भाई-बहनों के विवाह और कारोबार माता की बीमारियों, धन कमाना, संतान का स्वास्थ्य, कला में प्रगति, पति अथवा पत्नी की यात्रा, रहने के स्थान में बदलाव, पिता का स्वास्थ्य बड़े भाई-बहन या दोस्त का मुनाफा ।

देश-प्रदेश – देश में स्थित धार्मिक स्थान, धर्माचरण, संशोधन संस्थायें और संसोधन, न्याय संस्था, कानून का दायरा, घटना और घटना में बदलाव ।

विरोधी फल – नवम स्थान दशम का व्यय है, अतः नौकरी या कारोबार में बदलाव, प्रमोशन में रूकावटें, अधिकार योग में रूकावटें ।

घर में स्थान – पूजाघर, देव देवताओं की तस्वीरें|

भाग्य भाव नवम भाव स्वामी का अन्य भावों में फल:https://askkpastro.com/9th-house-lord/

जन्म कुंडली का  दशम भाव

निःस्वार्थ जीवन-शैली तथा परोपकारमय कर्मों के बिना धर्म टिक नहीं सकता, अतः कुण्डली विकास क्रममें ‘कर्म’ का स्थान दसवाँ रखा गया है। जन्म कुंडली में दसवाँ भाव जातकके कर्मक्षेत्रको प्रदर्शित करता है, इसका सम्बन्ध राज्य, व्यापार एवं नौकरीमें कैसे लोगोंसे सामना होगा एवं उनके साथ कैसे सम्बन्ध होंगे इन बातोंको बताता है। दशमभाव शुभ कर्मों के साथ जीविकाका भाव भी है; क्योंकि दशम भाव केन्द्र (1, 4, 7, 10 भाव) में होनेके कारण उसका प्रभाव लग्नपर पड़ता है क्योंकि लग्न आजीविका बतलाता है, अतः लग्नपर पाये गये प्रभावद्वारा आजीविकाकी सिद्धि दशम भावके ग्रहाद्वारा युक्तियुक्त है। इस भावके शुभ होनेसे व्यावसायिक क्षेत्रमें सफलता आसानी से मिलती है। पिताकी आर्थिक स्थितिका पता दशम भावसे चलता है। कालपुरुषकी कुण्डलीके अनुसार दशम भावमें मकर राशि पड़ती है, जिसका स्वामी शनि है, मंगल ग्रह इसमें उच्च फल देता है एवं बृहस्पति ग्रह नीच फल देता है। सूर्य इस भावका कारक ग्रह है। शरीरके बारेमें यह भाव स्वास्थ्यसे सम्बन्ध रखता है। इस भावसे श्वासरोग एवं खाँसीका पता चलता है। जातकको कितना यश मिलेगा, कितना अपयश- यह भाव बतलाता है। जातक (मानसिक अवस्था) के कर्मोंमें होशियारी, चालाकी एवं दूसरोंको धोखा देने अर्थात् शुभाशुभ कर्मोंका पता भी इस भावसे चलता है। इसके अतिरिक्त इस भावसे साम्राज्ययोग, जीवनकी ऊँचाई, राज्यकृपा एवं शुभ कर्म भी देखे जाते हैं।

दशम स्थान (कर्म स्थान)

कुदरती जन्म कुंडली में दशम स्थान में शनि की मकर राशि आती हैं। इन दोनों का प्रभाव इस भाव पर दिखता है।

शरीर के हिस्से – घुटने|

कार्य – शनि कर्म निर्देशन करनेवाला ग्रह हैं। इस भाव से जातक का कार्यक्षेत्र, नाम, मशहूरी, प्रमोशन, नौकरी का कारोबार आदि की जानकारी मिलती हैं। काम में सफलता, मंज़िल को पाने की चाह, काम किस तरह का होगा आदि के लिए दशम को देखना जरूरी हो जाता है। हर तरह के मान सम्मान, सफलता, अधिकारी वृत्ति, हुकूम, हुकूमत, राज्य का अधिकार मंत्री का पद आदि ।

अन्य बातें – अधिकारी, अधिकारी का सिक्का, (सील) राज्य, राजा प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, सरकार, सरकारी अधिकारी, सरकारी दफ्तर ।

संबंधित लोगों को मिलनेवाले फल – छोटे भाई बहनों के साथ होनेवाली दुर्घटना, परेशानियाँ, ऑपरेशन, माता का कारोबार, मृत्यु, मारकस्थान, नौकरी, पिता का धन, मृत्यु, संतान की बीमारियाँ, पति या पत्नी का वाहनसुख, घर खरीदना, शिक्षा, बड़े भाई-बहन या दोस्तों की विदेश यात्रा ।

घर में स्थान – घर की छत ।

देश-प्रदेश – देश की राजनीति, राजनीति की व्यवस्था, कारोबार में तरक्की|

दशम भाव कर्म स्थान स्वामी का अन्य भावों में फल:https://askkpastro.com/%e0%a4%a6%e0%a4%b6%e0%a4%ae-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b5-%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a5%80/

जन्म कुंडली का  एकादश भाव

शुभ एवं यज्ञीय कर्मोंका एक निष्ठाकी हदतक पहुंचना, जहाँ शुभता स्वाभाविक तथा पूर्णतया प्राप्त हो जाय, एकादश स्थान अथवा प्राप्तिस्थानका कार्य है। इस प्रकार कुण्डली विकास क्रममें एकादशभावको प्राप्तिस्थानकी संज्ञा दी गयी है। प्राप्ति, आय, आमदनी आदि सब अलग-अलग शब्द हैं, परंतु अर्थ एक ही है। इस भावको अवसर (Opportunity) भी कहते हैं। यदि यह भाव शुभ हो तो जातक जीवनमें (शुभ) अवसर हमेशा प्राप्त करता है। एकादश भाव किस्मत की ऊँचाईका कारक है। जातक अपने जीवनमें किस बुलन्दीपर पहुँच सकता है यह भाव बतलाता है। एकादश भाव लालचका भी प्रतीक है। जातक दूसरोंकी परवाह किये बिना किस सीमातक अपना लाभ कर सकता है-यह भाव दर्शाता है। कालपुरुषकी कुण्डलीके अनुसार एकादशभावमें कुम्भराशि पड़ती है, जिसका स्वामी ग्रह शनि है एवं कारक ग्रह बृहस्पति है। कुछ सीमातक शनि भी कारक है। शरीरकी सक्रियताको भी यह भाव दर्शाता है। रिश्तोंमें यह बड़े भाई बहनोंका कारक है, शरीरमें यह बायें हाथको दर्शाता है। इसके अतिरिक्त एकादश भावसे ससुरालसे धनप्राप्ति, बड़े भाईकी स्थिति, हवाई यात्रा, हिंसक प्रवृत्ति, चोटके योग, माता तथा बहनोंके सुखमें कमी, बाहुल्यता, राज्यका अर्थ तथा गृहकी मूल्यवृद्धिका भी पता चलता है।

एकादश स्थान (लाभ स्थान)

कुदरती जन्म कुंडली में लाभस्थान में शनि की कुंभ राशि आती हैं। इन दोनों का प्रभाव इस भाव पर होता है ।

शरीर के हिस्से – कान (पुरूषों का दाहिना, स्त्रीयों का बाया.) पैरों का ऊपरी हिस्सा।

कार्य – कृष्णमूर्ति प्रणाली में लाभ स्थान को महत्त्वपूर्ण माना गया है। लगभग हर इच्छा पूरी होने के मामले में लाभ स्थान को देखा जाता है। लाभ स्थान से दोस्त, परिवार, हर तरह के लाभ, इच्छापूर्ति प्राप्ति, आवक, दया, सलाहगार, अनुयायी, चाहनेवाले, दोस्ती, शुभचिंतक, पुनर्मिलन और बड़े भाई-बहन देखें जाते हैं। लाभ स्थान कुंडली के सभी भावों का मेल हैं।

संबंधित लोगों को मिलनेवाले फल – छोटे भाई-बहनों की उच्च शिक्षा, विदेश यात्रा माता के साथ होनेवाली दुर्घटना, परेशानी, ऑपरेशन, पिता की यात्रा तथा स्थान और वाहन में बदलाव, संतान के कारोबार, मारक स्थान पति अथवा पत्नी का स्वास्थ्य, संतान लाभ, दोस्त और बड़े भाई-बहन का स्वास्थ्य

देश-प्रदेश – देश का उत्पाद, टैक्स के रूप में आनेवाला धन, सफलता, दोस्ती, सुलह, मित्र देश और लाभ ।

विरोधी फल – यह स्थान लगभग सभी बातों के लिए देखा जाता है। यह स्थान व्यय स्थान का अर्थात् द्वादश स्थान से व्यय स्थान हैं। व्यय स्थान से जेल, सजा, अकेलापन, अस्पताल में रहना जैसी बुरी, दुखदायी बातें देखी जाती हैं। इनका विरोधी फल अर्थात् कोर्ट केस से बाइज्जत बरी होना, गुमशुदा या खोए हुए लोग या भागे हुए लोगों का परिवार में लौटना, बीमारी ठीक होना इस प्रकार मिलता हैं। यह फल विरोधी होने पर भी जातक के लिए खुशी देनेवाले ही हैं ।

घर में स्थान – बरामदा या टेरेस|

लाभ भाव स्वामी का अन्य भावों में फल:https://askkpastro.com/11th-house-lord/

जन्म कुंडली का  द्वादश भाव

सब कुछ पानेके बाद मनुष्य जीवनमें मोक्ष प्राप्ति ही रह जाती है, अतः विकास क्रममें मोक्ष प्राप्तिको द्वादश स्थान दिया जाता है। द्वादश स्थानको भोग-स्थान एवं व्यय स्थानकी संज्ञा भी दी जाती है। द्वादश स्थान भोग-स्थान है, अत: जातक अपनी पति/पत्नीसे कितना सुख पायेगा यह भाव दर्शाता है। कालपुरुषकी कुण्डलीके अनुसार द्वादश भावमें मीनराशि पड़ती है, जिसका स्वामी बृहस्पति है। बुध यहाँपर नीच फल देता है एवं शुक्र उच्च फल देता है। शुक्रके उच्च फल देनेके कारण ही यह स्थान भोग-विलाससे सम्बन्ध रखता है; क्योंकि शुक्र भोग-विलासप्रिय ग्रह है। कालपुरुषकी कुण्डलीमें द्वादश स्थान पाँव (पैरों) को दर्शाता है। जातकको बाय आँखकी स्थितिका पता भी इसी भावसे चलता है। इस भावसे जातकके सोने एवं स्वप्न देखनेका सम्बन्ध है घरका अन्दरूनी हिस्सा कैसा होगा, यह पता चलता है, शुभ ग्रह हो तो चहल-पहलवाला घर, अशुभ ग्रह हो तो वीराने-जैसा घर दर्शाता है। यह भाव पड़ोसकी हालतको दर्शाता है, यदि शुभ हो तो पास पड़ोस अच्छा (आर्थिक रूपसे), अशुभ हो तो विपरीत स्थिति होगी। द्वादश भाव जातकके दिमागमें उत्पन्न होनेवाले उन विचारोंसे सम्बन्धित होता है, जो स्वयंको सोचसे नहीं, अपितु माहौलसे उत्पन्न होते हैं, अतः इस भावको आशीर्वाद एवं शापका घर भी कहते हैं। शरीरमें यह वातरोगका कारक है। रात्रिके समय (शयन) जातक कितना आराम पायेगा- यह द्वादश भाव बतलाता है एवं पड़ोसीसे व्यवहारको भी इस भावसे जाना जा सकता है। इसके अतिरिक्त दृष्टिहानि, शुक्रकी स्थिति धनयोग, पैरोंमें चोट, जलसे हानि, गुणोंका अतिव्यय, जीवनसाथीका अन्यत्र लगाव एवं मोक्ष भी द्वादश भावसे सम्बन्ध रखते हैं।

इस प्रकार जन्मके समय जातकको प्रभुकृपासे प्राप्त सर्वोत्कृष्ट मनुष्य शरीर मिलता है, जिसके द्वारा वह द्वादश स्थान अर्थात् मोक्षतक पहुँचता है, इस जीवनरूपी यात्रा में उत्तरोत्तर विकासके लिये जिन-जिन वस्तुओंकी मनुष्यको आवश्यकता पड़ती है, वे सब बीचवाले अर्थात् दोसे ग्यारहतकके भावोंसे दर्शायी गयी हैं। इस प्रकार कुण्डलीके द्वादश भावोंसे पूर्वजन्म, इस जन्म तथा भावी स्थितिके बारेमें विचार होता है।

द्वादश स्थान (व्यय स्थान)

कुदरती जन्म कुंडली में व्यय स्थान में गुरु की मीन राशि आती है। इन दोनों का प्रभाव इस भाव पर दिखता है।

शरीर के हिस्से – पैरों के तलवे, आँखें ( पुरूषों की दाहिनी, स्त्रीयों की बायीं)

कार्य – व्यय स्थान से मोक्ष, विदेश, विदेश यात्रा, जेल में सजा, भाग जाना, अस्पताल में रहना, निवेश और हर तरह के व्यय, धन की चिंता, ऋण चुकाना, दान, डर, शक, नुकसान, घोखाधडी, दुष्मन की साजिश, अनबन, असफलता, त्याग, हर तरह की खरीदारी, पाप कर्म, प्रायश्चित पछतावा आदि बातों को देखा जाता है।

अन्य बातें – विदेश, अस्पताल, जंगली जानवर, गुप्त स्थान, गुप्त विद्या, गुप्त और कड़ी साधना, गरीबी, दुख, मुश्किलें, शमशान, निर्जन स्थान, जंगल, गुफा, जेल, फाँसी का स्थान, त्याग, परलोक, साधना, मृत्यु ।

संबंधित लोगों को मिलने वाला फल – छोटे भाई-बहनों का प्रमोशन, मानसम्मान, अधिकार योग, माता की विदेश यात्रा, संतान की परेशानी, दुर्घटना ऑपरेशन, पति या पत्नी की बीमारी, नौकरी, पिता का घर या वाहन खरीदना, दोस्त और बड़े भाई-बहनों का धनस्थान |

जीवन की हर प्रतियोगिता का प्रतिस्पर्धी सप्तम स्थान से देखा जाता हैं । व्यय स्थान सप्तम से षष्ठस्थान हैं। षष्ठ स्थान से हर तरह की सफलता देखी जाती है। जातक की कुंडली में व्यय स्थान ही सभी प्रतिस्पर्धियों का षष्ठ स्थान अर्थात् विजय दर्शक स्थान हैं, अतः सभी प्रतिस्पर्धियों की जीत इस स्थान से देखी जाती हैं। अर्थात् जातक की असफलता इस स्थान से दिखती हैं ।

देश-प्रदेश – देश में मृत्यु का प्रमाण (मात्रा), जंगल, सुखा, अकाल, देश की हर तरह की हानि, दुष्मनों की साजिशें, हार, विदेशी संस्था, ऋण चुकाना, देश का निवेश, विदेशी दुतावास, सागर ।

घर के स्थान – जंगल, घर के आसपास की जगह, गुप्त स्थान

विरोधी फल – यह स्थान कुंडली के प्रथम भाव का व्यय स्थान हैं, अतः जातक जो करना चाहे, उसमे बाधा आती हैं। जातक अपने कर्तव्य से चूकता है, आलसी, स्वार्थी बनता हैं। कार्य शक्ति तथा रोग प्रतिकार शक्ति कम होती है।

व्यव मोक्ष भाव स्वामी का अन्य भावों में फल :https://askkpastro.com/12th-house-lord/