आयु निर्णय ज्योतिष:  ज्योतिष में आयु निर्णय कैसे देखते हैं

आयु निर्णय ज्योतिष में आयु निर्णय कैसे देखते हैं जानिये इस पूर्ण मौलिक और तथ्यपरक ज्योतिष लेख में |

मन है कोई प्रश्न १ सवाल पूछें:https://askkpastro.com/product/ask-1-question/

भविष्यके बारेमें जाननेसे पहले आयुके बारेमें जानना अत्यन्त आवश्यक एवं प्रयोजनकारी है। यदि आयु नहीं है तो अन्य लक्षणोंसे क्या प्रयोजन ? शास्त्रकारोंने ठीक ही कहा है

पूर्वमायुः परीक्षैव पश्चाल्लक्षणमुच्यते ।
आयुर्विना नराणां तु लक्षणैः किं प्रयोजनम् ॥

अवस्थाके अनुसार मनुष्यकी आयुकी तीन अवस्थाएँ मानी जाती हैं

1 – अल्पायु – जन्मसे आरम्भ करके 33 वर्षतक।

2 – मध्यमायु – 33 वर्षसे 64 वर्षतक और

3 – सम्पूर्णायु – 65 वर्षसे 100 वर्षतक।

100 वर्षसे 120 वर्षोंतककी आयु दीर्घायु मानी जाती है। 120 वर्षके आगे जितने वर्ष मनुष्य जीवित रहेगा, उसे विपरीत आयु माना जाता है।

गौ माता का महत्त्व:https://askkpastro.com/%e0%a4%97%e0%a5%8c-%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%9c%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%b7-%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a5%81/

जन्मकुण्डली देखकर आयुका निर्धारण करते समय सर्वप्रथम आयु निर्णय ज्योतिष में  जन्मकुण्डलीकी ग्रहस्थितिके आधारपर उस जन्मकुण्डलीके व्यक्तिकी अल्प, मध्यम एवं पूर्ण आयुका निर्धारण किया जाता है। इस आयुनिर्धारणके आधारपर ही जीवनमें आनेवाली मारक दशाओंका निर्णय किया जाता है। फिर किस मारक दशामें कौन-सा ग्रह किस रूपमें काम करता है, निर्णय किया जाता है।

के पी प्रश्न द्वारा उत्तर जानिये:https://askkpastro.com/product/kp-prashna-report/

जन्मलग्नसे अष्टम स्थान आयुका स्थान है। जन्मलग्नसे तृतीय स्थान भी आयुस्थानके रूपमें माना जाता है। दशम स्थान भी आयुस्थानके रूपमें माना जाता है। इसलिये जन्मकुण्डलीके 3, 8, 10 स्थान आयुस्थान हैं। आयुनिर्धारण करते समय 3, 8, 10 स्थानोंका विशेष निरीक्षण करना चाहिये किसी भी भावका निरीक्षण करते समय उस भावके लिये जिम्मेदार ग्रहका सर्वप्रथम निरीक्षण करना चाहिये। आयुके लिये जिम्मेदार ग्रह शनि है। आयु निर्णय ज्योतिष में जन्मकुण्डली में शनिका बल अधिक होना चाहिये अर्थात् शनि अपने स्थानमें या उच्च स्थानमें या अपने मित्रक्षेत्रमें होना चाहिये। उस रूपमें होनेपर पूर्णायु प्राप्त होगी। शनिके नीच स्थानमें या शत्रुक्षेत्र में या अन्य पापग्रहोंके साथ मिलनेपर अल्पायु प्राप्त होगी। शनिके सम क्षेत्रों में रहनेपर मध्यमायु प्राप्त होगी।

समस्त नक्षत्रों की जानकारी:https://askkpastro.com/%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a4-%e0%a4%a8%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%a5%8d%e0%a4%aa%e0%a5%82/

आयु निर्णय ज्योतिष में जन्मकुण्डलीमें अल्प, मध्यम, पूर्णायु कौन-सी है, इसका पता लगाते समय नैसर्गिक शुभग्रहस्थितिके बारेमें तथा नैसर्गिक पापग्रहस्थितिके बारेमें जानना भी आवश्यक है। नैसर्गिक शुभग्रह किसी भी स्थानके अधिपति होनेपर भी केन्द्रस्थितिमें होनेपर आयुर्वृद्धिमें साथ देंगे। उसी रूपमें नैसर्गिक पापग्रह केन्द्रमें रहनेपर आयु क्षीण करेंगे। वे ग्रह कोणोंमें रहनेपर उससे थोड़ा कम नुकसान पहुँचाते हैं अर्थात् कोणमें रहनेपर मध्यमायु प्रदान करते हैं। नैसर्गिक पापग्रह विशेष रूपसे शनिके तृतीय, अष्टम स्थान में रहनेपर आयुर्वृद्धि प्राप्त होगी।      आयु निर्णय ज्योतिष में पराशरसिद्धान्त, वराहमिहिरसिद्धान्त एवं सत्याचार्यसिद्धान्तके अनुसार आयुके सन्दर्भमें ग्रहों के उच्च-नीच, शत्रु तथा ऋजु और वक्र गुणका निरीक्षण करना भी आवश्यक है। आयुसे सम्बन्धित कुछ विवरण निम्नांकित हैं:

आयु निर्णय ज्योतिष में पूर्णायु विवरण

1- आयुकी वृद्धिमें मदद करनेवाले शनिके अष्टम स्थानमें रहनेपर नैसर्गिक शुभ ग्रह गुरु, शुक्र, चन्द्र एवं बुधके केन्द्र या त्रिकोणमें रहनेपर तथा अष्टमाधिपतिके केन्द्र या कोणमें रहनेपर पूर्णायु प्राप्त होगी।

जन्म कुंडली के भाव:https://askkpastro.com/%e0%a4%9c%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a5%81%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a5%88%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%96%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a5%81/

2- अष्टमाधिपति शनि लाभस्थानमें होनेपर केन्द्र एवं त्रिकोणमें शुभ ग्रहके होनेसे पूर्णायु प्राप्त होगी। रवि अष्टमाधिपतिस्थान में रहते समय केन्द्रमें गुरु, शुक्र, चन्द्र के होनेसे पूर्णायु प्राप्त होगी।

3- गुरु अष्टमाधिपतिके रूपमें स्वक्षेत्रमें, नैसर्गिक पापग्रह लाभस्थानमें और नैसर्गिक शुभग्रह केन्द्र में रहनेसे पूर्णायु प्राप्त होगी।

4- रवि और शनि एकादश स्थानमें और नैसर्गिक शुभ ग्रह केन्द्र में होनेसे पूर्णायु प्राप्त होगी।

5- रविके दूसरे और छठे स्थानमें तथा शनिके एकादश स्थानमें रहनेपर पूर्णायु प्राप्त होगी। इसके अतिरिक्त नैसर्गिक शुभ ग्रहके केन्द्र तथा त्रिकोणमें रहनेपर और लाभस्थानमें शुभ ग्रहोंके होनेसे पूर्णायु प्राप्त होगी।

ग्रहों के मंत्र:https://askkpastro.com/%e0%a4%b5%e0%a5%88%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%95-%e0%a4%9c%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%b7-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%b9%e0%a5%8b%e0%a4%82/

6- अष्टम स्थानाधिपति शनिके लाभस्थानमें रहनेसे और केन्द्रमें नैसर्गिक शुभ ग्रहोंके होनेसे पूर्णायु प्राप्त होगी।

7- लग्न, भाग्य, राज्याधिपति तीनोंके स्वक्षेत्रमें या उच्च स्थानमें रहनेसे पूर्णायु प्राप्त होगी। नैसर्गिक शुभ ग्रहके लग्न, भाग्य, केन्द्रमें रहनेपर पूर्णायु प्राप्त होगी।

आयु निर्णय ज्योतिष में मध्यम आयुयोग

1- अष्टमेश तथा लाभाधिपति नैसर्गिक शुभ ग्रहके भाग्यमें या लाभस्थानमें रहनेसे मध्यमायु प्राप्त होगी।

2- लग्नाधिपतियोंके परिवर्तन होनेसे एवं लग्नमें नैसर्गिक शुभ ग्रहोंके होनेसे मध्यमायु प्राप्त होगी।

3- धनुर्लग्नके लिये अष्टमाधिपति चन्द्रके स्वक्षेत्रमें रहनेपर, शनि-बुध या शनि केतु, शनि-गुरु, शनि-शुक्र, शनि-रवि या शनि कुजके लाभस्थानमें रहनेपर मध्यमायु प्राप्त होगी।

4- केन्द्रमें शुभ ग्रहोंके होनेपर आयुके लिये जिम्मेदार शनिके 3, 6 स्थानों में होनेपर मध्यमायु प्राप्त होगी।

5- राज्यमें लाभाधिपति तथा लाभमें अष्टमाधिपतिके रहनेसे मध्यमायु प्राप्त होगी। अष्टमाधिपति नैसर्गिक शुभ ग्रहोंके साथ मिलकर एकादश स्थानमें होनेपर, रवि लाभमें तथा नैसर्गिक पापग्रह त्रिकोणमें होनेसे मध्यमायु प्राप्त होगी।

आयु निर्णय ज्योतिष में अल्पायु योग

1- केन्द्र एवं कोणमें एक भी नैसर्गिक शुभ ग्रहोंके न होनेसे, नैसर्गिक पापग्रह केन्द्र एवं त्रिकोणमें होनेसे और चन्द्रके लाभस्थानमें रहनेपर अल्पायु प्राप्त होगी।

2- चन्द्र के नैसर्गिक पाप ग्रहोंसे मिलकर केन्द्रमें या कोणमें रहनेपर, बाकी ग्रह दुर्बल होनेसे अल्पायु प्राप्त होगी।

3-केन्द्र एवं त्रिकोणमें नैसर्गिक पापग्रहों के होनेपर और चन्द्रके षष्ठ या अष्टममें होनेसे अल्पायु प्राप्त होगी।

4-लग्नाधिपति या अष्टमाधिपति चन्द्रके व्ययभावमें रहनेपर, केन्द्र एवं त्रिकोणमें नैसर्गिक पाप ग्रहोंके होनेसे. अल्पायु प्राप्त होगी।

5- नैसर्गिक शुभ ग्रहोंके तृतीय, षष्ठ, अष्टम तथा व्यय स्थानमें रहनेपर, नैसर्गिक पापग्रहोंके साथ मिलनेपर अल्पायु प्राप्त होगी।

आयु निर्णय ज्योतिष के अनुसार मृत्युसम्बन्धी जानकारी

मानवके जीवनमें मृत्यु अत्यन्त महत्त्व रखती है। ज्योतिषशास्त्रियोंने मृत्युके बारेमें अनेक स्थापनाएँ की हैं। अष्टमाधिपति तथा अष्टम स्थानमें स्थित ग्रहोंसे मृत्यु कैसे होगी, इसे जाना जा सकता है, यथा

1- रवि – अग्निसे, उष्ण बुखारोंसे, मूत्रका बन्द हो जाना आदि रोगोंसे पीड़ित होकर मृत्यु होती है।

2- चन्द्र – जलसे सम्बन्धित दुर्घटनाओं अर्थात् जलसंकट अथवा क्षय, खाँसी, फेफड़ोंसे सम्बन्धित बीमारियोंसे मृत्यु होती है।

3- कुज- आगकी दुर्घटनाएँ, व्रण, स्फोटक फोड़े, शस्त्रचिकित्सा, चमड़ीके रोग, वाहनोंसे प्राप्त होनेवाली आकस्मिक दुर्घटनाएँ ऊँचे प्रदेशोंसे गिर जाना, जादू टोना, पीलिया आदिसे मृत्यु प्राप्त होती है।

4- बुध- पक्षाघात, वात, पोलियो, नसोंकी कमजोरी, अण्डकोशसे सम्बन्धित दोष, विषैले बुखार, अपच आदिके द्वारा मृत्यु प्राप्त होती है।

5- गुरु– आकस्मिक हृदयसम्बन्धी रोग, बुखार, शारीरिक दुर्बलता आदिके कारण मृत्यु होती है।

6 शुक्र— यौनसे सम्बन्धित बीमारियाँ, मूत्रसे सम्बन्धित व्याधियाँ, श्लेष्म व्याधियोंसे सम्बन्धित, भूख और उदरसे सम्बन्धित रोगोंसे मृत्यु होती है।

7- शनि- वातरोग, व्रण, विषैले बुखारोंसे मृत्यु होती है।

इसी प्रकार जन्मलग्नकी अष्टमराशिके अनुसार मृत्युसम्बन्धी विचार भी होता है।

आयु निर्णय ज्योतिष में नेत्रसम्बन्धी रोगोंके लिये रवि, शुक्र और राहु जिम्मेदार हैं। मीन लग्नमें नेत्रस्थानमें माने जानेवाले द्वितीय स्थान मेषमें शुक्रके होनेसे उस शुक्र दशामें नेत्रोंका रोग होगा। केतु ग्रह भी नेत्ररोगकारक है।

जन्मकुण्डलीमें रोगोंके बारेमें जानकारी प्राप्त करनेके लिये 3,6,8 स्थानोंके आधारपर उन स्थानों में ग्रहों की गतिके आधारपर, उन ग्रहोंसे सम्बन्धित रोग उन ग्रहोंकी दशाओंमें प्राप्त होंगे। स्त्रियोंके प्रसवसे सम्बन्धित रोगोंके विषयमें पंचम स्थानमें रहनेवाले ग्रहोंके अनुसार तथा पंचम स्थानके अनुसार जान सकते हैं। अष्टम स्थानमें दो-तीन ग्रह मिलकर रहनेसे दो-तीन प्रकारके रोग एक ही समयमें हो सकते हैं।

आयु निर्णय ज्योतिष में रवि रक्तसे सम्बन्धित रोगोंके लिये कारक है। शनि नसोंसे सम्बन्धित रोगोंके लिये कारक है। रवि और शनि दोनों मिलकर अष्टम स्थानमें रहनेसे, उनकी दशाओंके चलनेसे पक्षाघातसे तथा नसोंसे सम्बन्धित रक्तचापसे मृत्यु प्राप्त होगी। शनि और शुक्र मिलकर अष्टम स्थानमें रहनेसे हृदयसे सम्बन्धित रोगोंसे, दमेसे, राजयक्ष्मा आदि फेफड़ोंसे सम्बन्धित रोगोंसे मृत्यु प्राप्त होगी।

दाँतों, कानों तथा सिरसे सम्बन्धित रोगोंके लिये कुज और शनि कारक हैं। स्त्रियोंके रोगोंके लिये भी ये दोनों जिम्मेदार कारक हैं। सभी वातरोगोंके लिये शनि जिम्मेदार कारक है। बाँझपनके लिये शनि, कुज, शुक्र, बुध जिम्मेदार कारक हैं।